इंडिया न्यूज़ (मथुरा, mathura court order official survey of Shahi Idgah complex): मथुरा कोर्ट ने मथुरा में शाही ईदगाह परिसर का आधिकारिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है। अब मामले में सुनवाई की अगली तारीख 20 जनवरी, 2023 है।
कृष्णा जन्मभूमि भूमि विवाद मामला
इस पूरे विवाद की कहानी 1670 से शुरू होती है. मुगल शासक औरंगजेब ने 1670 में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया. जिस मंदिर को ध्वस्त किया गया, उसे 1618 में बुंदेला राजा यानी ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने 33 लाख मुद्राओं में बनवाया था।
मुगल दरबार आने वाले इटालियन यात्री निकोलस मनुची ने अपनी किताब ‘Storia do Mogor’ यानी ‘मुगलों का इतिहास’ में बताया है कि कैसे रमजान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त किया गया और वहां ईदगाह मस्जिद बनाने का फरमान जारी हुआ.
मुगलों का राज होने की वजह से यहां हिंदुओं के आने पर रोक लगा दी गई. नतीजा ये हुआ कि 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई. इसमें मराठाओं की जीत हुई. इसके बाद वहीं पर मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण किया.
13.37 एकड़ जमीन को लेकर है विवाद
मराठाओं ने ईदगाह मस्जिद के पास ही 13.37 एकड़ जमीन पर भगवान केशवदेव यानी श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया। लेकिन धीरे-धीरे ये मंदिर भी जर्जर होता चला गया। कुछ सालों बाद आए भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया और जमीन टीले में बदल गई।
1803 में अंग्रेज मथुरा आए और 1815 में उन्होंने कटरा केशवदेव की जमीन को नीलाम कर दिया। इसी जगह पर भगवान केशवदेव का मंदिर था। बनारस के राजा पटनीमल ने इस जमीन को खरीदा. बताया जाता है कि उन्होंने ये जमीन 1,410 रुपये में खरीदी थी। राजा पटनीमल इस जगह पर फिर से भगवान केशवदेव का मंदिर बनवाना चाहते थे।
लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके। 1920 और 1930 के दशक में जमीन खरीद को लेकर विवाद शुरू हो गया। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि अंग्रेजों ने जो जमीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का भी था। फरवरी 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने राजा पटनीमल के वारिसों से ये जमीन साढ़े 13 हजार रुपये में खरीद ली। आजादी के बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और ये 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण मंदिर के लिए इस ट्रस्ट को सौंप दी गई।
1968 में हुआ विवादित समझौता
अक्टूबर 1953 में मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ और 1958 में पूरा हुआ। इस मंदिर के लिए उद्योगपतियों ने चंदा दिया। ये मंदिर शाही ईदगाह मस्जिद से सटकर बनाया गया।
1958 में एक और संस्था का गठन हुआ, जिसका नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान था। कानूनी तौर पर इस संस्था का 13.37 एकड़ जमीन पर कोई हक नहीं था। लेकिन 12 अक्टूबर 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया।
इसमें तय हुआ कि 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे। इस समझौते को श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट नहीं मानता है। वो इस समझौते को धोखा बताता है। ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है।