India News (इंडिया न्यूज़), Nobel Peace Prize: महात्मा गांधी जिन्हें हम बापू के रूप में भी जानते हैं। 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है। गांधी जी सत्य और अहिंसा के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हैं, उन्होंने अहिंसा के माध्यम से देश को अंग्रेजों के शासन से आजाद कराया और अपनी जगह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता के रूप में बनाई। महात्मा गांधी के इस संघर्ष और सफलता ने उन्हें विश्वभर में अहिंसा का प्रतीक बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए 5 बार नॉमिनेट किया गया, लेकिन उन्हें कभी इस पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया।
1937 में पहली बार गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था लेकिन उन्हें इस पुरस्कार से वंचित कर दिया गया था क्योंकि एक समिति के सदस्य ने गांधी जी के खिलाफ राय दी थी। Nobelprize.org पर दी गई जानकारी के अनुसार जैकब वार्म-मूलर ने लिखा था कि गांधी जी का व्यक्तित्व निस्संदेह एक अच्छे, महान और तपस्वी व्यक्ति का है। भारत की जनता से उन्हें बहुत प्यार और सम्मान मिलता है, लेकिन गांधी जी हमेशा अहिंसा की नीति पर कायम नहीं रहे।
जैकब वार्म-मूलर ने चौरी चौरा (जब भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी) का उदाहरण देते हुए लिखा था कि अंग्रेजों के खिलाफ उनके कई आंदोलन (शांतिपूर्ण आंदोलन) कभी भी हिंसा का रूप ले सकते हैं। उन्होंने गाँधी जी को लेकर यह भी लिखा कि उनके सभी आंदोलन केवल भारतियों के हित में होते है। उन्होंने अश्वेत समुदाय के लिए कुछ नहीं किया जिनकी दशा भारतियों से भी बुरी थी।
1938 और 1939 में भी गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया, लेकिन उन्हें इस पुरस्कार की योग्यता के लिए गाँधी जी को चुनने में कमेटी को 10 साल लग गए।
1947 में, जब भारत आजाद हो गया, तब प्रीमियर गोविंद वल्लभ पंत, प्राइम मिनिस्टर बीजी खेर, और स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर ने भी गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया, लेकिन उन्हें यह नहीं मिला। तत्कालीन नोबेल कमेटी के प्रमुख गुन्नर जान ने अपनी डायरी में लिखा कि जेन्स अरुप सीप की रिपोर्ट गांधी के अनुकूल है परन्तु पूरी तरह से उनके पक्ष में नहीं है। पकिस्तान के साथ हालत गंभीर होने के बाद गाँधी जी ने कहा कि वे हर युद्ध के विरुद्ध है लेकिन पकिस्तान के कान पर जू नहीं रेंगी तो भारत को उसके खिलाफ युद्ध करना चाहिए। जिस ब्यान को लेकर उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला।
1948 में, जब गांधी जी को फिर से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया, तो उनकी हत्या हो चुकी थी, और इसके कारण उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिला।
नोबेल समिति ने बाद में इस फैसले को गलत माना और स्वीकार किया कि महात्मा गांधी को शांति पुरस्कार न देना उनकी एक चूक थी। उनके अहिंसावादी और शांति के प्रति समर्थन के बावजूद, उन्हें इस पुरस्कार का सम्मान नहीं मिला, जो आज भी उनकी महानता को याद दिलाता है।
महात्मा गांधी की यह अद्भुत कहानी हमें याद दिलाती है कि वे एक अद्वितीय नेता थे, जिन्होंने अहिंसा और सत्य के माध्यम से दुनिया को प्रेरित किया और अपने आदर्शों के साथ एक नए भारत की नींव रखी। उनके योगदान को सलाम!
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