इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया आज रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। जानकारी के अनुसार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसमें सात पैसे की गिरावट आई है और यह 80.05 पर आ गया है, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। कल रुपया 79.97 पर बंद हुआ था। बता दें कि अमेरिकी डॉलर इस वर्ष अब तक भारतीय रुपए के मुकाबले 7.5 फीसदी ऊपर है।
बता दें कि कल डॉलर इंडेक्स एक सप्ताह के निचले स्तर पर फिसलकर 107.338 पर पहुंच गया था। वहीं पिछले सप्ताह डॉलर इंडेक्स बढ़कर 109.2 हो गया था, जो सितंबर 2021 के बाद सबसे ज्यादा है। दरअसल डॉलर कभी भी इतना महंगा नहीं था। बाजार की भाषा में इस कहा जा रहा कि रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर यानी अब तक के सबसे लो लेवल पर पहुंच गया है। मुद्रा का दाम हर दिन घटता बढ़ता रहता है। डॉलर की जरूरत बढ़ती चली गई। इसकी तुलना में बाकी दुनिया में हमारे सामान या सेवा की मांग नहीं बढ़ी जिससे डॉलर महंगा होता चला गया।
डॉलर महंगा होने से दाल और तेल के लिए आपको ज्यादा खर्च करने पड़ेगा, जिसका असर इनके दामों पर होगा। इन चीजों के महंगा होने से आपकी रसोई का बजट बिगड़ सकता है। इसके अतिरिक्त कंप्यूटर, दलहन, सोना, दवा, भारी मशीन, लैपटॉप, खाद्य तेल, कच्चा तेल, विदेश यात्रा और विदेश में पढ़ाई, व रसायन और उर्वरक आदि आयात होने वाली चीजें महंगी हो सकती हैं।
गौरतलब है भारत मोबाइल, लैपटॉप के अलावा इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी व भारी मात्र में कई तरह की दवाएं आयात करता है। देश में ज्यादातर गैजेट व मोबाइल चीन व अन्य पूर्वी एशियाई सिटीज से किया जाता है। बता दें कि ज्यादातर कारोबार डॉलर में होता है और अगर रुपए में गिरावट इसी तरह जारी रही तो देश में आयात महंगा हो जाएगा।इसका अर्थ साफ है कि मोबाइल व अन्य गैजेट्स पर महंगाई बढ़ेगी और आपको अब अधिक खर्च करना होगा।
बता दें कि भारत 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। इसके महंगा होने से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे तो मतलब साफ है कि माल ढुलाई महंगी हो जाएगी। ऐसे में रुपए के कमजोर होने से रसोई से लेकर घर के यूज की रोजमर्रा की चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं। पेट्रोल-डीजल महंगा होने से किराया भी बढ़ सकता है जिससे यात्रा भी महंगी हो सकती है। भारत खाद्य तेल का 60 प्रतिशत आयात विदेशों से करता है और इसकी खरीद डॉलर में होती है। ऐसे में रुपया कमजोर होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के दाम बढ़ सकते हैं। हाल ही में सरकार ने खाद्य तेलों को सस्ता करने के लिए आयात शुल्क खत्म किया था।
बता दें कि भारतीय कंपनियां विदेश से सस्ती दरों पर भारी मात्रा में ऋण लेती हैं। रुपए में गिरावट होने पर भारतीय कंपनियों के लिए विदेश से ऋण लेना महंगा हो जाता है। इससे उनकी लागत बढ़ जाती है और नतीजतन वह कारोबार के विस्तार की योजना को टाल देती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि देश में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं। विदेश में पढ़ने वाले कर भारतीय छात्रों रहने से लेकर फीस वगैरह सभी डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे में रुपए में गिरावट से उन्हें पहले के मुकाबले ज्यादा पैसा खर्च करना होगा। परिहन की लागत भी बढ़ेगी। विदेश यात्रा भी महंगी हो जाएगी।
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