इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : कोरोनाकाल जैसे गंभीर आर्थिक संकट से उबरकर तेज विकास हासिल करने की तरफ बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की राह में इस समय सबसे बड़ा रोड़ा अमेरिका डॉलर बना हुआ है।ज्ञात हो, तमाम ग्लोबल और लोकल परिस्थितियों की वजह से भारतीय मुद्रा इस समय दबाव में चल रही है और डॉलर के मुकाबले अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर है। लेकिन, इस स्थिति को अगर ग्लोबल कैनवास पर देखें तो रुपया सिर्फ अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ही कमजोर हुआ है, जबकि दुनिया की अन्य बड़ी करेंसियों को उसने साल 2022 में जबरदस्त पटखनी दी है।
आपको बता दें, डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 22 अक्तूबर, 2022 को 82.52 के भाव पर चल रहा था। अगर इसे 2022 की शुरुआत में देखें तो जनवरी में एक डॉलर के मुकाबले रुपये का वजन 73.81 के स्तर पर था। यानी इस साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा पर 8.71 रुपये का बोझ बढ़ा। अगर प्रतिशत में देखें तो ये 10 फीसदी भी थोड़ा ज्यादा है। वैसे तो किसी भी मुद्रा में 10 फीसदी की कमजोरी को सही नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन जिस तरह से अमेरिकी डॉलर अभी दुनियाभर की करेंसी पर हावी है, यह भारत के लिए ज्यादा चिंताजनक स्थिति नहीं है।
कमोडिट एक्सपर्ट और केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया का कहना है कि डॉलर अभी अपने 22 साल के उच्चतम स्तर पर है और अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व फिलहाल न तो अपने विकास दर की ज्यादा चिंता कर रहा है और न ही उसे महंगाई की पड़ी है। जिसका मकसद उसका पूरा जोर सिर्फ डॉलर को मजबूत बनाए रखने पर है। ऐसा इसलिए हो पा रहा है, क्योंकि अभी दुनियाभर में होने वाले कुल व्यापार के लेनदेन में 40 फीसदी हिस्सेदारी डॉलर की है। भारत पर तो इसका काफी असर पड़ रहा, क्योंकि हमारा पूरा अंतरराष्ट्रीय लेनदेन अमेरिकी डॉलर में होता है।
अमेरिकी डॉलर को छोड़ दिया जाए तो वर्ल्ड की अन्य बड़ी करेंसियों के मुकाबले अभी भारत की स्थिति बेहतर है। 22 अक्तूबर को यूरोप की मुख्य करेंसी यूरो के मुकाबले भारतीय रुपया 81.55 के स्तर पर था, जो जनवरी की शुरुआत में 84.75 पर रहा था। इस तरह यूरोप के मुकाबले 2022 में भारतीय मुद्रा 3.2 रुपये मजबूत हुई है। इसी तरह, ब्रिटिश पाउंड की तुलना में 22 अक्तूबर को रुपया 93.42 के स्तर पर था, जो जनवरी की शुरुआत में 101.47 के भाव चल रहा था। यानी पाउंड भी इस साल 8.05 रुपये कमजोर पड़ा है।
ऑस्ट्रेलियन डॉलर भी जनवरी की शुरुआत में भारतीय रुपये के मुकाबले 53.74 के स्तर पर था, जो 22 अक्तूबर तक कमजोर होकर 53.84 पर आ गया है। जापान की मुद्रा येन भी रुपये के मुकाबले जनवरी में 0.64 थी, जो 22 अक्तूबर को गिरकर 0.56 रुपये प्रति येन आ गई है। चीन की करेंसी युआन का मूल्य भी भारतीय मुद्रा के सामने 22 अक्तूबर को 11.42 रहा गया है, जो जनवरी की शुरुआत में 11.7 रहा था।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अगर दुनिया की अन्य बड़ी मुद्राओं को देखें तो साल 2022 में अलग ही तस्वीर नजर आती है। इसमें पाकिस्तानी रुपया जहां सबसे ज्यादा 26.17 फीसदी कमजोर हुआ है, वहीं ब्रिटिश पाउंड की हालत भी 20.9 फीसदी गिरावट के साथ पतली हुई है। जापानी मुद्रा येन इस साल डॉलर के मुकाबले 20.05 फीसदी नीचे आई है, जबकि यूरोप 14.9 फीसदी टूट गया है। ऑस्ट्रेलियन डॉलर भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 10.4 फीसदी कमजोर हुआ है। इस तरह देखा जाए तो साल 2022 में भारतीय मुद्रा न सिर्फ डॉलर के सामने अन्य करेंसी के मुकाबले डटकर खड़ी है, बल्कि दूसरी मुद्राओं के सामने मजबूत भी हो रही है।
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