इंडिया न्यूज़ (गांधीनगर, Scientific reason of Cable bridge collapse): गुजरात के मोरबी में बीते रात पुल हादसे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। मुश्किल से 100 लोगों की क्षमता वाले इस केबल पुल पर रविवार की शाम करीब 500 लोग तक आ गए थे। स्कूल में फिजिक्स की किताबों में बढ़ाया जाता है की किसी भी ब्रिज पर सैनिक कदम मिलाकर नही चलते है। आखिर इसके पिछले के क्या वैज्ञानिक कारण होते है। आइये आपको बताते है।
इतिहास की बात करे तो इंग्लैंड में 1825-26 के समय में केबल पुल बनाने का काम शुरू हो गया था। साल 1830 -31 में ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी एक केबल पुल से होकर गुजरी रही तभी ब्रिज ढह गया। इस घटना के बाद वहां की सेना ने आदेश दिया की पुल पार करते समय जवान कदमताल करते हुए नही जाएंगे। साल में 1850 में केबल पुल गिरने की घटना फ्रांस में हुई जब सेना के जवान पुल से गुजर रहे थे। हादसों की जांच हुई तब इसके वैज्ञानिक कारण सामने आये।
जैसे घड़ी का पेंडुलम रिपीट होता है। वैसे ही हर चीज की अपनी एक स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी होती है। अगर आप उस चीज देंगे को उसकी अपनी स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी से ऑसीलेट (दोलन) करेगी। यह बात जरूरी नहीं कि सारे ऑसीलेट इंसानो को दिखाए दे। सीमेंट यह लोहे से बने केबल पुल की अपनी स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी होती है। चलने या दौड़ने पर यह फ्रीक्वेंसी आप महसूस कर पाते होंगे।
उदहारण के लिए, अगर किसी पुल से 50-100, 200 लोग आते जाते हैं। पुल दोलन यानी ऑसीलेट करता है लेकिन कोई हादसा नही होता क्योंकि सभी लोगों के चलने की टाइमिंग अलग-अलग होती है। ऐसे में उन सभी लोगों का फोर्स पुल पर एकसाथ नहीं पड़ता है। लेकिन जब सेना के जवान चलते है या बहुत सारे लोग एक साथ चलते है तो सभी की फ्रीक्वेंसी एक हो जाती है। जब पुल पर बन रही दबाव की फ्रीक्वेंसी उसके स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी के बराबर होती है तो कम्पन होता है।
कम्पन की स्थिति में पुल पर खिंचाव या तनाव काफी दूरी तक पैदा होता है। जब तनाव काफी ज्यादा हो जाता है तब पुल टूट जाता है। साल 1940 में अमेरिका के वॉशिंगटन में बना टैकोमा ब्रिज भी केबल ब्रिज था। तेज हवाओं में लहराते-लहराते यह पुल गिर गया था। इसका सीधा मतलब है अगर किसी भी चीज की फ्रीक्वेंसी अगर स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी के बराबर हो तो यह टूट जाएगा और उसे नुकसान होगा।
जब सेना के जवान एक पुल पार करते है तो एक यांत्रिक अनुनाद होता है। आप देख पाएंगे जब सेना कोई पुल करती है तो सैनिक कदम मिलाकर कभी नहीं चलते हैं क्योंकि सैनिकों के कदमों की फ्रीक्वेंसी पुल की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर हो जाएगी तो पुल टूटने का खतरा बढ़ जाएगा।
दूसरे शब्दों में कहें, तो एक समय ऐसा आएगा जब ब्रिज भी मार्चिंग स्टेप की रिदम के अनुरूप ऑसिलेट करना शुरू कर देगा। यह ऑसिलेशन जब पीक पर पहुंचेगा तो पुल खड़ा नहीं रह पाएगा।
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