शरद यादव को था गठबंधन बनाने में महारथ हासिल, गैर-कांग्रेसी सरकार बनाने के थे चैंपियन

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : कद्दावर समाजवादी नेता शरद यादव का गुरुवार की देर रात गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया। मालूम हो, शरद यादव को दिल्ली में उनके छतरपुर स्थित आवास से अस्पताल ले जाया गया था। यादव लंबे अरसे से गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे और नियमित रूप से डायलिसिस करवा रहे थे। आपको बता दें, शरद यादव का जन्म 1 जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बाबई गांव में हुआ था। सियासत की शुरुआत उन्होंने जबलुपर से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने बिहार को अपनी कर्मभूमि बना लिया। लगभग पांच दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में, शरद यादव ने केंद्रीय मंत्री, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक और जनता दल-यूनाइटेड के सहयोगी के रूप में काम किया।
अगर शरद यादव को गठबंधन सरकार का चैम्पियन कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सरकार बनाने के लिए वह दोस्त और अपने दुश्मन भी बदल देते थे। या यूं भी कह सकते हैं कि वह लिबास की तरह पार्टी बदलते रहे। मालूम हो, अपने आखिरी दिनों में वह राजग सरकार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन को मजबूत करने के लिए काम कर रहे थे, जबकि कभी उन्होंने ही राजग को खड़ा किया था।

कांग्रेस विरोधी आंदोलन से मिली समाजवादी नेता के रूप में पहचान

जानकारी दें, 1970 के दशक में कांग्रेस विरोधी आंदोलन के दौरान शरद यादव के राजनीतिक करिअर की शुरूआत हुई थी। वह दिवंगत मुलायम सिंह यादव और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे अन्य समाजवादी नेताओं के समानांतर समाजवादी ब्लॉक के मुखिया थे। साल 1974 में कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने मध्य प्रदेश के जबलपुर से लोकसभा उपचुनाव जीती थी, जिससे तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ अपनी राजनीतिक लड़ाई को मजबूत करने में उन्हें मदद मिली। देश में इमरजेंसी के बाद, उन्होंने 1977 में फिर से जीत हासिल की और आपातकाल विरोधी आंदोलन से बाहर आने वाले कई नेताओं में खुद को शुमार कर लिया।

बिहार में लालू को धोबीपछाड देकर पहुंचे राजनीती के चरमोत्कर्ष पर

फिर साल 1979 में शरद यादव लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए। नौ साल बाद, 1988 में वी.पी. सिंह की अल्पकालिक गठबंधन सरकार (1989-90) में कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के प्रमुख के रूप में कैबिनेट में शामिल हुए। शरद यादव ने 1989 में वीपी सिंह सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया, लेकिन उनकी राजनीति को चरमोत्कर्ष 1990 के दशक के अंत में आया, जब वे मधेपुरा में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ मैदान में थे। यहां उन्होंने यादव जाति, और यादवबाद वाले लालू प्रसाद को पछाड़ दिया जिसके बाद उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री पद दिया गया।

पहली बार राजग की सरकार बनाने में शरद यादव की थी खास भूमिका

वहीँ, 1997 में शरद यादव जनता दल के अध्यक्ष बने। हालाँकि, 1999 में उन्होंने जनता दल को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का एक घटक बनने के लिए मंजूरी दे दी, जिसका जनता दल नेता एच.डी. देवेगौड़ा ने कड़ा विरोध किया और जनता दल को छोड़कर एक नई पार्टी बनाई जो जनता दल (सेक्युलर) या जद (एस) के रूप में सामने आई। यादव अपने जनता दल गुट के प्रमुख बने रहे। उन्होंने एनडीए कैबिनेट में नागरिक उड्डयन, श्रम और उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री के रूप में कार्य किया।

दोस्त को दुश्मन बनाने में नहीं करते थे देर

फिर 2003 में छोटे दलों के विलय के बाद जद (यू) को एक नई पार्टी के रूप में पुनर्गठित किया गया। साल 2006 में, शरद यादव पार्टी अध्यक्ष चुने गए। 2009 में वे फिर से मधेपुरा से लोकसभा के लिए चुने गए, लेकिन 2014 के आम चुनावों में जद (यू) की हार के बाद, शरद यादव के नीतीश कुमार के साथ संबंधों में खटास आ गया। 2017 के बिहार विधानसभा चुनावों में, जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में जद (यू) ने भाजपा के साथ गठबंधन किया (दोनों दल 2004 और 2009 के आम चुनावों में भागीदार थे), शरद यादव ने इसका विरोध किया। जिसके बाद शरद यादव ने अपनी खुद की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल बनाई, जिसका मार्च 2020 में लालू यादव के संगठन राजद में विलय हो गया, जिसे उन्होंने एकजुट विपक्ष की ओर पहला कदम बताया था।

शरद यादव की जिंदगी 50 साल तक राजधानी के लुटियंस जोन में गुजरी

मालूम हो, शरद यादव बिहार के मधेपुरा लोकसभा से चार बार सांसद रहे। वहीँ, मध्यप्रदेश के जबलपुर से दो बार सांसद चुने गए थे। वह उत्तर प्रदेश के बदायूं से भी एक बार लोकसभा सदस्य रहे हैं। शरद यादव तीन बार राज्यसभा के भी सदस्य चुने गए। वह 2003 में JDU गठन के बाद से 2016 तक इसके अध्यक्ष रहे.यादव करीब 50 साल राजधानी के लुटियंस जोन में रहे। नई दिल्ली के तुगलक रोड 307 नंबर बंगला लंबे अरसे तक उनका आवास रहा, जहां उन्होंने 23 साल का लम्बा वक़्त गुज़ारा, हालाँकि कानूनी प्रक्रिया की वजह से पिछले वर्ष मई में यह सरकारी आवास उन्हें खाली करना पड़ा था।
Ashish kumar Rai

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