इंडिया न्यूज़ (दिल्ली): सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के गोधरा दंगो के दौरान बिलकिस बानों के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामलें के 11 आरोपियो को छोड़ने के लिए गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और यह भी निर्देश दिया कि ग्यारह दोषियों को इस मामले में पार्टी बनाया जाएं। कोर्ट ने कहा, “हम नोटिस जारी करते है। आप अपना जवाब दाखिल करें। हम 11 दोषियों को मामले में पार्टी बनाने का निर्देश देते हैं।”
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि उसे इस बात पर विचार करना है कि क्या गुजरात के नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार हैं और क्या इस मामले में छूट किसी मानसिकता दे तहत दी गई.
कोर्ट ने पूछा, “हमें यह देखना होगा कि क्या इस मामले में छूट देते किसी ख़ास मानसिकता को ध्यान में रखा गया या नही, क्या आप कह रहे हैं कि छूट नहीं दी जा सकती।”
याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, “हम केवल यह देखना चाहते हैं यह छूट देने की क्या मानसिकता है”
कपिल सिब्बल ने आगे कहा की “कृपया याचिका देखें। सांप्रदायिक दंगों में बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई। दाहोद जिले के लिमखेड़ा गांव में भी आगजनी, लूटपाट और हिंसा हुई। बिलकिस बानों और शमीन अन्य लोगों के साथ भाग रहे थे। शमीम ने एक बच्चे को जन्म दिया..जब समूह के समूह ने 25 लोगों ने अभियोक्ता और अन्य को भागते देखा, उन्होंने कहा मुसलमानो को मारो। 3 साल की बच्ची का सिर जमीन पर पटक दिया गया, गर्भवती के साथ बलात्कार किया गया।”
जिन 11 दोषियों को रिहा किया गया है उनमें नाम है – जसवंत नई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेशम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना.
सुप्रीम कोर्ट के सामने माकपा नेता सुभासिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार और फिल्म निर्माता रेवती लौल और पूर्व दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर और कार्यकर्ता रूप रेखा वर्मा ने याचिका दायर की थी.
गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने कथित तौर पर कहा था कि दोषियों को “14 साल जेल में पूरे होने” और अन्य कारकों जैसे “उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार आदि” के कारण रिहा किया गया है.
1. 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और गुजरात में दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में भीड़ द्वारा मारे गए बारह लोगों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.
2. बानो के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से संपर्क करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का आदेश दिया था.
3. बानो ने आरोपियों द्वारा जान से मारने की धमकी की शिकायत की, तो 2004 में शीर्ष अदालत ने मुकदमे को गुजरात के गोधरा से महाराष्ट्र स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था.
4. जनवरी 2008 में, सीबीआई की एक विशेष अदालत ने तेरह आरोपियों को दोषी ठहराया, जिनमें से ग्यारह को सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
5. मई 2017 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सजा के आदेश को बरकरार रखा था। 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात राज्य को बानो को ₹50 लाख मुआवजा प्रदान करने का भी निर्देश दिया.
6. भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की पीठ ने राज्य सरकार को उन्हें सरकारी नौकरी और आवास प्रदान करने का निर्देश दिया था.
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