इंडिया न्यूज, New Delhi News। Hearing on Free Election Scheme : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गरीबी में फंसे लोगों के लिए मुफ्त योजनाएं जरूरी हैं। दरअसल राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त सुविधाएं देने के वादे पर मंगलवार को सुनवाई हुई थी और इसी दौरान कोर्ट ने कहा, गरीबी के दलदल में फंसे इंसान के लिए मुफ्त सुविधाएं और चीजें देने वाली योजनाएं महत्वपूर्ण हैं। शीर्ष कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा, सवाल यह है कि यह फैसला कौन लेगा कि क्या चीज मुफ्तखोरी के दायरे में आती है और किस चीज को जनकल्याणकारी माना जाएगा।
वहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि हम चुनाव आयोग को इस मामले में अतिरिक्त शक्ति नहीं दे सकते। अदालत बुधवार को फिर इस मामले पर सुनवाई करेगी। कोर्ट ने कहा मुफ्त उपहार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इस पर बहस किए जाने की जरूरत है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा, माना कि यदि केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाती है जिसके अंतर्गत राज्यों को मुफ्त उपहार देने पर रोक लगा दी जाती है, तो क्या हम यह कह सकते हैं कि ऐसा कानून न्यायिक जांच के लिए नहीं आएगा। उन्होंने कहा, ऐसे में हम देश के कल्याण के लिए इस मामले को सुन रहे हैं।
बता दें कि वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस मामले में याचिका दायर की है और इसी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में चुनावों के दौरान मुफ्त सुविधाओं का वायदा करने वाली राजनीतिक पार्टियो की मान्यता रद करने की मांग की है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, कोर्ट के पास आदेश जारी करने की शक्ति है, लेकिन कल को किसी योजना के कल्याणकारी होने पर कोर्ट में कोई आता है कि यह सही है, ऐसे में यह बहस खड़ी हो जाएगी कि आखिर न्यायपालिका को क्यों इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था हम यह फैसला करेंगे कि मुफ्त की सौगात क्या है। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और पीने के पानी तक पहुंच को मुफ्त सौगात माना जा सकता है। उन्होंने कहा, हमें यह परिभाषित करने की जरूरत है कि एक मुफ्त सौगात क्या है।
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, क्या हम किसानों को बच्चों को मुफ्त शिक्षा के वादे व फ्री में खाद आदि के वादे को मुफ्त सौगात कह सकते हैं। मुख्य तौर पर देखना यह होगा कि सार्वजनिक धन खर्च करने का सही तरीका क्या है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते बुधवार को कहा था कि राजनीतिक दलों के साथ ही लोगों को भी संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता। साथ ही फ्रीबीज (मुफ्त सौगात) शब्द और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर को समझना होगा।
कोर्ट ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का उल्लेख किया और कहा कि मतदाता मुफ्त सौगात नहीं चाह रहे, बल्कि वे अवसर मिलने पर गरिमामय तरीके से आय अर्जित करना चाहते हैं।
सुनवाई के दौरान वकील विकास सिंह ने जब कहा कि मुफ्त वादों के चलते देश दिवालिया होने की स्थिति में है। इस पर मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा मान लीजिए कोई वादा कर दूं कि चुनाव जीतने पर लोगों को सिंगापुर भेज दूंगा, तो चुनाव आयोग इस पर कैसे रोक लगा सकता है।
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