India News (इंडिया न्यूज़), Supreme court Article 142, दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह विवाह के टूटने के मामलों में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनााया। जस्टिस संजय किशन कौल , संजीव खन्ना, अभय एस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निर्धारित छह महीने की अवधि को समाप्त किया जा सकता है।
- 2016 को मामला गया था
- कई बड़े वकीलों ने दी दलील
- धारा 13-बी को थी चुनौती
खंडपीठ ने कहा , “अनुच्छेद 142 को मौलिक अधिकारों के तहत माना जाना चाहिए। इसे संविधान के एक गैर-अपमानजनक कार्य का उल्लंघन करना चाहिए। शक्ति के तहत न्यायालय को पूर्ण न्याय करने का अधिकार है।”
धारा 13-बी को चुनौती
यह फैसला हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत निर्धारित अनिवार्य अवधि की प्रतीक्षा के बिना दो पक्षों के बीच विवाह को भंग करने से सबंधित थी। इसको लेकर शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं आई थी। अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत को ऐसे मामलों में आदेश पारित करने का अधिकार देता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामलों में “पूर्ण न्याय करने” के लिए आवश्यक हैं।
2016 को मामला गया था
इस मामले को लगभग पांच साल पहले 29 जून, 2016 को जस्टिस शिव कीर्ति सिंह और आर भानुमति (दोनों सेवानिवृत्त) की खंडपीठ ने एक स्थानांतरण याचिका में पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ को भेजा था। दलीलें सुनने के बाद संविधान पीठ ने 29 सितंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कई वकीलों ने की जिरह
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, वी गिरी, कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और मीनाक्षी अरोड़ा को इस मामले में अदालत की सहायता के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता वी मोहना और जय सावला और अधिवक्ता अमोल चितले भी पेश हुए। मामले को शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन के नाम से जाना गया।
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