इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : भारत और चीन के सैनिकों के बीच अरुणाचल प्रदेश में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर खूनी झड़प हुई। इस झड़प में भारत के 6 और कई चीनी सैनिकों घायल हुए हैं। 9 दिसंबर को 600 चीनी सैनिक तवांग के यंगस्टे के 17 हजार फीट ऊंचाई पर भारतीय पोस्ट को हटाने के लिए घुसपैठ करने की तैयारी में थे। सैनिकों को रोकने के लिए भारतीय सेना ने जवाब में लाठी-डंडों का इस्तेमाल किया।
तवांग एक मौका भर है, लेकिन चीन की पूरी नजर अरुणाचल प्रदेश पर है। कई मौकों पर चीन की रणनीति जगजाहिर भी हुई है। 2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर गए और 4 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास किया तो चीन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह विवादित इलाका है। इस हिस्से में किसी तरह की गतिविधि सरहद पर तनाव की स्थिति बना सकती है।
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख लोबसांग सांग्ये ने अप्रैल 2021 में खुलासा करते हुए कहा था कि तिब्बत एक जरिया है, चीन का असली मकसद हिमालयी क्षेत्र में फाइव फिंगर कहे जाने वाले हिस्सों पर कब्जा जमाना है. चीन, तिब्बत पर कब्जे के बाद भारत की तरफ आगे बढ़ रहा है. यही वजह है कि वो अब भारत के साथ सीमा विवाद बनाए रखना चाहता है.
जानकारी दें, 1940 के दशक में चीन के दिग्गज नेता रहे माओ ने सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, भूटान, नेपाल औऱ लद्दाख को अपने दाएं हाथ की पांच उंगलियां बताईं। तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन का मकसद अरुणाचल को हासिल करना रहा। चीन अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत कहते हुए अपना हिस्सा बताता है। इस सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन के बीच कई बैठकें हुईं लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला।
इस विवाद की वजह है चीन का अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा को खारिज करना। चीन और भारत के बीच एक अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा है, जिसे मैकमोहन रेखा कहते हैं। चीन इस रेखा को नहीं मानता। चीन ने मई, 1951 में तिब्बत पर कब्जा किया। भारत और तिब्बत में इसे काला दिन कहा गया। चीन दावा करता है कि यह शांति की एक पहल थी, लेकिन 23 मई, 1951 को ड्रैगन के दबाव में आकर तिब्बत ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस तरह चीन का तिब्बत पर कब्जा हो गया था। ज्ञात हो, भारत और चीन के बीच 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा है। इसी सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच 1962 में जंग हुई, लेकिन विवाद आज भी जारी है।
जानकारी हो, अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में अरुणाचल को भारत का हिस्सा माना गया है। चीन, तिब्बत के साथ अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है। शुरुआती दौर में शुरू में चीन अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी हिस्से तवांग को लेकर दावा करता था, जहां भारत का सबसे विशाल बौद्ध मंदिर है। बाद में पूरे राज्य को अपना बताने लगा। एक बार फिर तवांग के सहारे चीन अरुणाचल प्रदेश को हथियाने की तैयारी में है।
1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के बाद अक्साई चीन के करीब 38 हजार वर्ग किमी इलाकों को अपने क्षेत्र में मिला लिया था। ये लद्दाख से जुड़े थे। भारत इसे अवैध मानता है।
मालूम हो, 1912 तक तिब्बत और भारत के बीच साफतौर पर कोई सीमा रेखा नहीं खींची गई थी। भारत और तिब्बत के लोग भी सीमा रेखा को लेकर जागरूक नहीं थे। तवांग में जब बौद्ध मंदिर मिलने की पुष्टि हुई तो सीमा रेखा का आकलन शुरू हुआ। 1914 में शिमला में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों की मीटिंग में सीमा रेखा का निर्धारण किया गया।
वहीँ, 1914 में तिब्बत बेशक स्वतंत्र मुल्क था लेकिन ब्रिटिश शासकों ने तवांग और तिब्बत के दक्षिणी हिस्से को भारत का अभिन्न हिस्सा माना। तिब्बतियों ने भी इस पर रजामंदी जताई। चीन इसी बात इतना नाराज हुआ कि उसके प्रतिनिधि बैठक छोड़कर चले गए। 1935 के बाद से यह पूरा इलाक़ा भारत के मानचित्र में आ गया। हालांकि चीन ने तिब्बत को कभी भी स्वतंत्र देश नहीं माना। अब तवांग के जरिए चीन अरुणाचल के हिस्सों पर धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए कब्जा करना चाहता है।
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