इंडिया न्यूज, Cloudburst : अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से जल प्रलय आ गया। जिसकह चपेट में आने से 16 लोगों की मौत हो गई। वहीं 40 से ज्यादा लोगों के फंसे होने की आशंका है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अमरनाथ गुफा के पास शुक्रवार शाम करीब 5 बजे अचानक बारिश शुरू हुई। लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही बारिश ने विकराल रूप ले लिया और पहाड़ों के ऊपर से पानी के साथ मिलकर मलबा अमरनाथ गुफा के बाहर बने कैंपों और लंगरों को बहाकर ले गया।
इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता पानी कई लोगों को बहाकर ले गया। जिसके बाद एनडीआरएफ की टीम, मिलट्री और स्थानीय लोग बचाव के कार्य में जुट गए। कई लोगों को बचाया गया वहीं कई लोग अभी भी लापता हैं। यहां सवाल यह उठता है कि जिस घटना को हम बादल फटना कहते हैं क्या वाकई में ऐसा होता भी है। क्या सच में बादल फटता है ? वहीं बादल का फटना कैसा होता है ? इन सवालों का जवाब आपको इस आर्टिकल में मिलेगा।
एक छोटे से इलाके में कुछ ही समय में तेज और बहुत ज्यादा बारिश होने को बादल फटना कहा जाता है। इसमें बादल फटने जैसा कुछ नहीं होता। हां जब एकदम से इतनी तेज बारिश होती है तो उसे बादल फटने का नाम दे दिया जाता है। बारिश ऐसे होती है कि मानो किसी बहुत बड़े पॉलिथिन को आसमान में फिट कर दिया गया हो और वो एकदम से फट जाए।
इसे हिंदी में बादल फटना और अंगे्रजी Cloudburst में कहते हैं। बादल फटने के गणित को समझें तो मौसम विभाग के अनुसार जब 20-30 वर्ग किलोमीटर के एरिया में एक घंटे से भी कम समय में 100 एमएम से ज्यादा बारिश हो तो वह बादल फटने की श्रेणी में आ जाता है। वहीं कई बार यह बारिश घंटों के लिए न होकर कुछ मिनट्स के लिए भी हो सकती है। बादल फटने का अनुमान पहले से लगाना संभव नहीं है।
आसान शब्दों में समझने के लिए पहले आपको बारिश को मापने की गणना के बारे में समझना होगा। इसक ेलिए पहले 1 एमएम बारिश का मतलब समझें। जब 1 वर्ग मीटर लंबे और चौड़े एरिया में 1 लीटर पानी बरसता है तो उसे 1 एमएम बारिश कहते हैं। वहीं इसी तरह जब भी 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े इलाके में 100 लीटर या उससे ज्यादा पानी बरस जाए। वह भी एक घंटे से कम समय में तो उसे बादल फटना कहा जा सकता है।
अब यह तो रही एक वर्ग मीटर की बात। वहीं अगर 1 वर्ग किलोमीटर में इस फार्मुला को फिट कर दिया जाए तो सोचिए स्थिति कितनी भयावह होगी। जब भी 1 वर्ग किलोमीटर एरिया में 1 घंटे से भी कम समय में 10 करोड़ लीटर पानी बरस जाए तो समझिए वहां बादल फटा है।
अमरनाथ में 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में एक घंटे से भी कम समय में 200 से 300 करोड़ लीटर से ज्यादा पानी बरस गया होगा। आम भाषा में समझाएं तो भारत में 170 लीटर प्रति व्यक्ति औसतन पानी की खपत है। अमरनाथ में बरसा पानी इतना ज्यादा था कि 20 लाख लोग रोज उसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
अगर एक वर्ग किलोमीटर एरिया में एक घंटे से कम समय में 100 एमएम से ज्यादा बारिश होती है तो उसे बादल फटना कहते हैं। तेज बारिश और बादल फटना दोनों एक ही जैसे हैं। हां, दोनों में अंतर की बात करें तो बारिश का अनुमान पहले लगाया जा सकता है, लेकिन बादल फटने का नहीं। जब भी बादल फटेगा तो एक दम से तेज बारिश होगी। आमतौर पर बादल पहाड़ी इलाकों में फटता है।
बादल फटने से पहले ये जानिए कि बादल होते क्या हैं। बादल एक तरह की गैस होते हैं जो समुद्र के ऊपर सूरज की गर्मी के करण बन जाती है। समुद्र की नमी आसमान में जमा हो जाती है और बादल कर रूप ले लेती है। जिसके बाद जब यह समुद्र से धरती की तरफ पहुंचती है तो उसे मानसून कहा जा सकता है। अब समझिए कि बारिश कैसे होती है। फ्रिज के ठंडे पानी को जब गिलास में डालते हैं तो उसके बाहरी सतह पर पानी आ जाता है।
ऐसे ही आसमान के ऊपरी वातावरण में बादल ठंडे होते हैं। जो बारिश के रूप में बरसते हैं। बादल हवा के साथ हिमालय से टकराकर धीरे-धीरे भारी मात्रा में जमा हो जाते हैं और एक ऐसा समय आता है कि जब बादलों को बरसने के लिए और हिलने के लिए जगह नहीं मिलती। ऐसे में वो पहाड़ों से टकराकर बरसने लग जाते हैं। जिसे बादल फटना कहते हैं।
केदारनाथ धाम, हेमकुंड साहिब, अमरनाथ और बद्रीनाथ समुद्र तल से काफी ऊपर हैं। मानसूनी बादलों को जब आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलता तो वह हिमालय से टकराकर एक जगह एकत्रित हो जाते हैं। जिससे बादल फटने के ज्यादा चांस बन जाते हैं। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि बादल मैदानी इलाकों में नहीं फटते। कई बार मैदानी इलाकों में भी बादल फटने की घटनाएं सामने आती हैं।
मानसून भारत के दक्षिण राज्य केरल में जून के महीने में पहुंचता है। जिसके बाद नमी और बादलों वाली हवाएं जुलाई में हिमालय तक पहुंच जाती है। जुलाई, अगस्त और सितंबर में मानसून सबसे ज्यादा एक्टिव रहता है। जिसके चलते सबसे ज्यादा बादल फटने की घटनाएं जुलाई, सितंबर और अक्बूटर में होती हैं।
बादल फटना कोई नई बात नहीं है। पहले भी बादल फटने की कई घटनाएं सामने आई हैं। अगर क्लाइमेट चेंज को बादल फटने की एक वजह माना जाए तो इस बारे में कई स्टडीज भी दावा करती हैं। क्लाइमेट चेंज की वजह से बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है।
वर्ल्ड मिटियोरॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन ने मई 2021 में एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें बताया गया था कि आने वाले 5 साल में धरती का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। वहीं तापमान बढ़ने की वजह से बादल फटने की घटनाएं भी बढ़ेंगी। जिससे तेज बारिश होगी। बादल फटने से पहाड़ दरक सकते हैं। बाढ़ आ सकती है। बादल फटने की बढ़ती घटनाओं के चलते अचानकर बाढ़ आना, पहाड़ दरकना, मिट्टी का कटान और जमीन धंसने के मामले भी बढ़ते जाएंगे।
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