होम / जानिए बाबरी के अलावा दुनिया के 5 मस्जिदों के संदर्भ में, जो दूसरे धर्मों के 'मंदिरों – पूजा स्थलों' को ध्वस्त कर इबादतगाह के लिए खड़े किए गए

जानिए बाबरी के अलावा दुनिया के 5 मस्जिदों के संदर्भ में, जो दूसरे धर्मों के 'मंदिरों – पूजा स्थलों' को ध्वस्त कर इबादतगाह के लिए खड़े किए गए

Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : December 6, 2022, 10:55 pm IST

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : इस्लामी आक्रांताओं द्वारा अन्य धर्मों के मंदिरों और पूजा स्थलों को तोड़ने का लंबा इतिहास रहा है। न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के कई देश इस्लामवादियों की इस हरकत का शिकार रहे हैं। ज्ञात हो, भारत आने से पहले इस्लामवादियों ने विश्व के कई देशों का इस्लामीकरण करने का प्रयास किया था।

भारत आने के बाद इस्लामी आक्रांताओं का यह प्रयास जारी रहा। वास्तव में इस्लामवादियों ने पूरी दुनिया का इस्लामीकरण करने का लक्ष्य बनाया था, जिसमें भारत भी शामिल था। उनके लिए, इस निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे आसान तरीका भारत में हिंदुओं द्वारा बनाई गए पवित्र स्थानों और प्रमुख हिंदू पूजा स्थलों को नष्ट करना था। इसके चलते, मुगल आक्रांता बाबर के शासन में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर साल 1527 में बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। इसके अलावा, कई अन्य हिंदू मंदिरों और हिंदुओं द्वारा निर्मित खास जगहों को ध्वस्त कर इस्लामी पूजा स्थलों में परिवर्तित कर दिया गया था। ऐसी ही एक मस्जिद है ‘देवल मस्जिद’, जो तेलंगाना के निजामाबाद जिले के बोधन इलाके में स्थित है।

हिंदू मंदिर तोड़ बनाई गई देवल मस्जिद ऐसा दावा

रिपोर्ट्स के अनुसार, देवल मस्जिद की संरचना मूल रूप से एक हिंदू-जैन मंदिर थी जिसे राष्ट्रकूट राजा इंद्रवल्लभ (इंद्र तृतीय) द्वारा 10वीं शताब्दी के आसपास बनवाया गया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार कल्याणी चालुक्य शासक सोमेश्वर के समय में हुआ था। राजा सोमेश्वर ने इसका नाम ‘इंद्रनारायण स्वामी मंदिर’ रख दिया था। इसके बाद कई वर्षों तक महान योद्धा काकतीय सेनापति सीतारामचंद्र शास्त्री ने 100 स्तंभों वाले इस खूबसूरत मंदिर का संरक्षण किया था।

हालाँकि, साल 1323 में मोहम्मद बिन तुगलक ने बोधन किले पर हमला कर सीतारामचंद्र शास्त्री को अपना गुलाम बनाते हुए इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर कर दिया था। यही नहीं, उनका नाम बदलकर आलम खान रख दिया था। तुगलक की सेना के जाते ही महान योद्धा काकतीय सेनापति सीतारामचंद्र शास्त्री ने हिंदू धर्म अपना लिया था। इसके बाद, जब तुगलक की सेना ने बोधन किले पर आक्रमण किया तो किसी को भी बंदी नहीं बनाया गया बल्कि लोगों के साथ भयंकर मारकाट की गई और किले को तोड़ दिया गया। साथ ही, तुगलक ने सीतारामचंद्र शास्त्री का सिर भी काट दिया और इंद्रनारायण स्वामी मंदिर को देवल मस्जिद में बदल दिया।

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद

ज्ञात हो, ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा परिसर एक विवादित संरचना है। इसे मुगल आक्रांता औरंगजेब ने पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर के खंडहरों पर बनाया गया था। इससे पहले, कुतुब अल-दीन ऐबक समेत कई अन्य इस्लामी शासकों ने इस परिसर को ‘अपवित्र’ किया था।

आज भी इस प्राचीन मंदिर के हिस्से मस्जिद की बाहरी दीवारों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। खासकर पश्चिमी दीवार पर मंदिर के अवशेषों को साफ तौर पर देखा जा सकता है। इसके अलावा, वर्तमान मंदिर के अन्य हिस्सों में भी हिंदू पूजा स्थल के विध्वंस, मस्जिद के निर्माण के पर्याप्त ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। ज्ञात हो, काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर, विवादित मस्जिद परिसर से सटा हुआ है। इस मंदिर में श्रद्धालु पूजा और प्रार्थना कर सकते हैं। इसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने साल 1780 में करवाया था।

इस्तांबुल में हागिया सोफिया

इतिहास में ऐसे सबूत उपलब्ध हैं जिनसे कहा जा सकता है हागिया सोफिया एक चर्च था, लेकिन अब यह एक मस्जिद है।हागिया सोफिया को छठी शताब्दी में तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में आग से नष्ट हुए एक पुराने चर्च के स्थान पर बनाया गया था। जानकारी हो, पूर्व में इसे जस्टिनियन चर्च के नाम से जाना था। इसका निर्माण साल 537 में तत्कालीन शासक जस्टिनियन ने किया था। इसके बाद, यह सैकड़ों वर्षों तक एक चर्च बना रहा। लेकिन फिर, ओटोमन की सेना ने शहर पर आक्रमण कर दिया।

शहर पर कब्जा करने के बाद, ओटोमन्स ने 1453 में चर्च को एक मस्जिद में बदल दिया। आक्रमणकारी सुल्तान मेहमद द्वितीय ने चर्च में सभी ईसाई कार्यों और प्रार्थनाओं को रोकने का आदेश देते हुए इसे मस्जिद में बदल दिया था। इसके बाद, यह साल 1935 तक एक मस्जिद बना रहा। हालाँकि, फिर तुर्क साम्राज्य के पतन के बाद तुर्की गणराज्य के पहले राष्ट्रपति और संस्थापक द्वारा इसे एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया था। शुरुआत में, इस संग्रहालय में धार्मिक अनुष्ठानों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन बाद में साल 1991 में एक परिसर के एक हिस्से को प्रार्थना कक्ष के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई। साथ ही, इस्लामिक प्रार्थना अज़ान के लिए मीनारों का उपयोग करने की भी अनुमति दी गई।

साल 2018 में, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन ने हागिया सोफिया को एक मस्जिद में बदलने के अपने इरादे की घोषणा की थी। इसके बाद, आधिकारिक तौर पर साल 2020 में इसे एक मस्जिद घोषित किया गया। इस प्रकार, यह अब एक मस्जिद है, जहाँ नियमित अजान, नमाज और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हागिया सोफिया में, गैर-मुस्लिम पर्यटक के रूप में जा सकते हैं। लेकिन, उन्हें प्रार्थना कक्ष में प्रवेश की अनुमति नहीं है और उन्हें इस्लामी स्थलों पर लागू सभी नियमों का पालन करना होता है।

जेरूसलम में अल अक्सा मस्जिद

इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में प्रमुख आक्रोश का एक बड़ी वजह इजरायली यहूदियों और फिलिस्तीनी मुस्लिमों के बीच धार्मिक विभाजन है। यहूदी धर्म का सबसे पवित्र स्थान टेंपल माउंट जेरूसलम में है। जहाँ, प्रार्थना करने के लिए यहूदी एकजुट होते हैं। टेम्पल माउंट कॉम्प्लेक्स अल-अक्सा मस्जिद का हिस्सा है। हालाँकि, अल-अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ द रॉक के बनने से पहले, टेंपल माउंट पर एक भव्य यहूदी मंदिर था।

टेंपल माउंट को यहूदियों का दूसरा सबसे पवित्र मंदिर कहा जाता है। हालाँकि, 70वीं ईस्वी में यहूदियों के विद्रोह के बाद सजा के रूप में रोमन साम्राज्य द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया था। टेंपल माउंट को 516 ईसा पूर्व में बनाया गया था। वहीं, यहूदियों के सबसे बड़े पवित्र स्थल सोलोमन के मंदिर को 586 ईसा पूर्व में नव-बेबीलोनियन साम्राज्य द्वारा नष्ट कर दिया गया था। फाउंडेशन स्टोन, वर्तमान में यहूदियों के लिए सबसे पवित्र स्थल, डोम ऑफ द रॉक पर ही स्थित है। हालाँकि, यहूदियों को इसमें जाने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह इस्लामिक मस्जिद अल-अक्सा के अंदर स्थित है।

मक्का में काबा और आसपास की मस्जिद

इस्लामी इतिहासकारों के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद को 620 ईस्वी में मक्का छोड़ना पड़ा था। 629/630 ईस्वी में वापस लौटने पर, उन्होंने काबा को मूर्तियों से ‘साफ’ कर दिया। वेबसाइट ‘Wiki Daiyah’ के अनुसार, अब्दुल्ला बिन मसूद ने उल्लेख किया है, “अल्लाह के रसूल ने मक्का में प्रवेश किया, तब काबा के चारों ओर तीन सौ साठ मूर्तियाँ थीं।”

इसके बाद, उसने अपने हाथ में ली हुई एक छड़ी से मूर्तियों को मारना शुरू कर दिया और कहा: ‘सत्य (यानी इस्लाम) आ गया है और झूठ (अविश्वास) गायब हो गया है। वास्तव में झूठ (अविश्वास) हमेशा के लिए गायब हो जाता है।” [कुरान 17: 81] गौरतलब है कि बांग्लादेश से निर्वासन झेल रही लेखिका तसलीमा नसरीन ने पिवहले साल अक्टूबर में दुर्गा पूजा के अवसर पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हुए हमलों के बाद भी इस मुद्दे को उठाया था।

उन्होंने कहा था कि पैगंबर मोहम्मद ने खुद काबा में इस्लाम की उत्पत्ति से पूर्व के अरब देवताओं की 360 मूर्तियों को नष्ट कर दिया था। बांग्लादेशी मुस्लिम सिर्फ उनके नक्शेकदम पर चल रहे हैं।

 

 

Get Current Updates on News India, India News, News India sports, News India Health along with News India Entertainment, India Lok Sabha Election and Headlines from India and around the world.