India News (इंडिया न्यूज), CJI Mohammad Hidayatullah Story : भारत में हिंदू-मुस्लिम मु्द्दा हमेशा ही चर्चा में रहता है, खासकर के चुनावों के समय, जब राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए हिंदू-मुस्लिम मु्द्दा जोरों से उछालती हैं। लोग भी इनकी बातों में आकर गलत कदम उठाते हैं। लेकिन आज हम आपको भारत के पहले मुस्लिम चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया मोहम्मद हिदायतुल्लाह के बारे में बताएंगे। जिनका जन्म तो एक मुस्लिम के तौर पर हुआ था, लेकिन अंतिम संस्कार हिंदू परंपराओं से किया गया। असल में हिदायतुल्ला मुस्लिम परिवार से थे लेकिन उनकी सोच और कार्यशैली धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर आधारित थी। आपको जानकर हैरानी होगी की उनके जीवन और कामकाज में भारतीय संस्कृति और परंपराओं का खासा असर था, जिसमें हिंदू धर्म और उसकी शिक्षाओं के प्रति एक गहरी समझ और सम्मान भी शामिल था।
इसके अलावा उन्होंने 5 साल के प्यार के बाद एक हिंदू लड़की से शादी की थी। माना जाता है कि जिस युवती से उनकी शादी हुई, वह नागपुर में तब कानून की छात्रा थीं, जब वह वहां कानून के बहुत लोकप्रिय प्रोफेसर थे। बहुत दिलचस्प और मनोरंजन अंदाज में स्टूडेंट्स को पढ़ाया करते थे। उनके छात्रों में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव भी थे।
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चीफ जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने एक हिंदू लड़की से शादी की थी, लड़की नाम पुष्पा बताया जाता है। पुष्पा उनकी स्टूडेंट थीं और जैन परिवार से ताल्लुक रखती थीं। बहुत संपन्न घर से ताल्लुक रखती थीं। आजादी से पहले दोनों के बीच प्यार शुरू हुआ। कई साल चलने के बाद उन्होंने शादी की ये जाहिर है कि दोनों के धर्म अलग थे। लिहाजा उन्हें अपने परिवारों को रजामंद करने में समय लगा होगा और खुद हिदायतुल्ला को अपनी ये प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ी होगी कि वह आजीवन कुंवारे ही रहेंगे। अंतरधार्मिक शादी होने की वजह से तब नागपुर में काफी चर्चित भी थी। क्योंकि जब ये शादी 1948 में हुई, तब तक हिदायतुल्लाह नागपुर हाईकोर्ट में जज बन चुके थे। उनकी पत्नी के पिता ए. एन. शाह अखिल भारतीय इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल थे। शादी के बाद भी उनके घर में हिंदू और मुस्लिम दोनों तरह के त्योहारों और परंपराओं का पालन किया जाता था।
हिदायतुल्लाह का अध्ययन न केवल इस्लामिक बल्कि हिंदू और भारतीय परंपराओं में भी गहन था। उन्होंने भारतीय ग्रंथों, खासकर गीता, वेद और उपनिषदों के संदर्भों का अध्ययन किया था। उनके कई निर्णय भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप थे। उन्होंने हमेशा सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखा। हिदायतुल्लाह ने अपनी जीवनी ‘माई ओन बॉसवैल’ भी लिखी जो बेहद दिलचस्प भाषा में थी। ये किताब एक सामान्य व्यक्ति से लेकर वकील तक के लिए काफी दिलचस्प और जानकारियां देने वाली है। इन सबके अलावा उनका निधन 18 सितंबर 1992 को मुंबई में हुआ। तब उन्हें दफनाया नहीं गया, जैसा मुस्लिम रीतिरिवाजों के अनुसार किया जाता है बल्कि उनका दाह संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार हिंदू परंपराओं के अनुसार ही हुआ।
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