India News (इंडिया न्यूज), Fireflies Twinkled At Night: 90s के लोगों को अपने बचपन के दिन जरूर याद आते होंगे। आपने हमेशा अपने गावों और घरों के आसपास जुगनू देखें होंगे। जिनकी रौशनी से ही पूरा गांव जगमग रहता होगा। लेकिन क्या आपने हाल के वर्षों में किसी रात टिमटिमाता हुआ कोई जुगनू देखा है? अगर नहीं देखा, तो आप अकेले नहीं हैं। जुगनू, जो कभी गर्मियों में टिमटिम करते फिरते थे, अब लगभग गायब ही हो चुके हैं। हो सकता है गावों के साफ माहौल में जंगल में आपको वो अब दिख भी जाये लेकिन शहरों में तो जुगनुओं का दिखाई देना मानों नामुमकिन ही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बदलाव हमारे पर्यावरण की बिगड़ती सेहत का गहरा संकेत है।
भारत में जुगनुओं की लगभग 50 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जबकि दुनियाभर में इनकी संख्या 2200 से अधिक है। लेकिन इनका अस्तित्व खतरे में है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वी.पी. उनियाल बताते हैं कि जुगनू दरअसल बीटल्स की एक प्रजाति हैं, जिन्हें आम भाषा में ‘फायरफ्लाई’ या ‘लाइटनिंग बग’ कहा जाता है। ये जीव अपने शरीर से रासायनिक प्रक्रिया के जरिए रोशनी उत्पन्न करते हैं।
Fireflies Twinkled At Night
जुगनू केवल देखने में आकर्षक नहीं होते, बल्कि वे हमारे वातावरण के ‘बायो इंडिकेटर’ भी हैं। यानी यदि किसी स्थान पर जुगनू दिखाई देते हैं तो समझा जा सकता है कि वहां की मिट्टी, हवा और पानी अभी भी जैविक रूप से समृद्ध है। ये मिट्टी के भीतर अंडे देते हैं और उनका जीवनचक्र भी वहीं शुरू होता है, लेकिन प्रदूषण और रासायनिक कीटनाशकों के कारण अब यह चक्र टूट रहा है।
मुख रूप से, जुगनू खेतों में किसानों के मित्र होते थे। वे हानिकारक कीटों को खा जाते हैं जिससे फसल को नुकसान नहीं पहुंचता। लेकिन आज आधुनिक खेती और शहरीकरण ने उनके लिए ज़मीन ही खत्म कर दी है। खेतों में बढ़ते रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों ने उनकी प्रजनन क्षमता को बाधित कर दिया है। इनके गायब होने का सबसे बड़ा कारण प्रकाश प्रदूषण माना जा रहा है। पहले जहाँ पीली, मद्धम रोशनी का उपयोग होता था, आज ब्राइट LED लाइट्स से हर क्षेत्र जगमगा रहा है। यही रोशनी जुगनुओं के मेटिंग सिस्टम को प्रभावित कर रही है। नर जुगनू की चमक को मादा अब पहचान नहीं पाती, जिससे उनकी आबादी में गिरावट आ रही है।
डॉ. उनियाल कहते हैं कि जुगनुओं का चमकना केवल सुंदरता नहीं है बल्कि संकेत है कि हमारा पर्यावरण कितना संतुलित है। इनका तेजी से कम होना इस बात को बता रहा है कि हमारी धरती का इकोसिस्टम अब कमजोर हो रहा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अभी भी समय है कुछ बदलने का। यदि हम अपने घरों, बागानों और खेतों में अनावश्यक रोशनी कम करें, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग घटाएं और जैविक खेती को बढ़ावा दें तो जुगनुओं की वापसी मुमकिन है। स्थानीय पौधों का रोपण और बच्चों को इनके बारे में जागरूक करना भी एक कारगर कदम साबित हो सकता है। जुगनू सिर्फ एक कीट नहीं, बल्कि हमारे बचपन की यादों, हमारी संस्कृति और सबसे बढ़कर, हमारे पर्यावरण की के लिए जरुरी हैं। अगर उन्हें नहीं बचाया गया, तो अगली पीढ़ी शायद इन चमकते जीवों को केवल किताबों में ही देख पाएगी।