India News (इंडिया न्यूज), Global Population Trends: लगभग एक दशक से दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ी है। दुनिया जनसख्यां बढ़ने को लेकर लगातार चिंता में है। क्योंकि दुनिया की जनसंख्या आज के समय में 8 अरब के आंकड़े को भी पार कर चुकी है, लेकिन हालिया अध्ययन इस ओर इशारा कर रहे हैं कि आने वाले दशकों में यह वृद्धि उलट सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जन्म दर घटने की वजह से दुनिया भर में आबादी में कमी आएगी, जिसका असर खासतौर पर अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा। इस बदलाव की चेतावनी भारत के साथ ही वैश्विक स्तर पर दी जा रही है। इसको लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कुछ हफ्ते पहले जिक्र किया था।
दुनिया की आबादी में वृद्धि का सिलसिला औद्योगिक क्रांति के बाद शुरू हुआ था, और 20वीं सदी में यह और तेज़ हो गया। 1900 में जहां दुनिया की जनसंख्या 1 अरब थी, वहीं 2000 तक यह बढ़कर 6 अरब और 2022 तक 8 अरब हो गई। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि जल्द ही जनसख्यां बहुत कम हो जायेगी। आकड़ों के अनुसार 2055 तक 155 देशों में जन्म दर इतनी घट जाएगी कि आबादी स्थिर ही नहीं रह सकेगी। इस ट्रेंड के 2100 तक 198 देशों तक फैलने की संभावना बन रही है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जनसंख्या वृद्धि में गिरावट का मुख्य कारण तेजी से घटती जन्म दर है। अगर यही स्थिति रही तो मृत्युदर, जन्म दर से अधिक हो जाएगी, जिससे जनसंख्या में स्थिरता बनाए रखना बहुत मुश्किल बन जाएगा। हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि कम होती जनसंख्या से संसाधनों पर दबाव बहुत कम होगा और प्रदूषण भी घट जायेगा। लेकिन इसका असर कई अन्य क्षेत्रों पर पड़ने वाला है।
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इसका सबसे बड़ा असर वर्क फ़ोर्स पर पड़ेगा। आने वाले वर्षों में वर्क फोर्स में कमी आएगी, जिसका सीधा असर उत्पादकता और विकास पर पड़ेगा। साथ ही, बूढ़ी होती आबादी से करदाताओं की संख्या घटेगी, जिससे सामाजिक सेवाओं को बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा। चिकित्सा क्षेत्र पर भी भारी दबाव पड़ेगा क्योंकि वृद्ध जनसंख्या को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता होगी।
भारत भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं रहेगा। जहां आज चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों में घटती जनसंख्या की समस्या उत्पन्न हो रही है, वहीं भारत में भी यह स्थिति गंभीर हो सकती है। भारत की आबादी में वृद्ध व्यक्ति की संख्या बढ़ेगी, जिससे समाज पर दबाव आएगा। इसके अलावा, सामाजिक संरचना में बदलाव के कारण भारतीय परिवारों में पारंपरिक बंधन कमजोर हो सकते हैं। मोहन भागवत ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि अगर समाज को बेहतर स्थिति में रखना है, तो परिवारों में तीन बच्चों की संख्या को बढ़ावा देना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह बदलाव राजनीतिक और सामाजिक तौर पर भी बड़े प्रभाव डालेंगे। जहां एक ओर संसाधनों पर दबाव कम होगा, वहीं दूसरी ओर असामान्य जनसंख्या वितरण से नई चुनौतियाँ खड़ी होंगी। दुनिया के कई देशों में ऐसी स्थितियाँ बन सकती हैं, जहाँ सरकारें और समाज इन बदलते परिवेश के साथ तालमेल बिठाने में संघर्ष करेंगी। घटती जनसंख्या और बढ़ती वृद्धावस्था भविष्य में दुनिया के लिए गंभीर आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ पैदा कर सकती हैं, और इसका समाधान सभी देशों को एकजुट होकर तलाशना होगा।
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