शुरू हुआ No Shave November, जानिए इसके बारे में

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
नवंबर का महीना शुरू हो गया है और अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों में “नो-शेव नवंबर” (No Shave November) की चर्चा बढ़ गई है। लोग बड़ी संख्या में गूगल पर इसके बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस हैशटैग के साथ तस्वीरें भी दिखाई देना शुरू हो गई हैं। इसके नाम से “नो-शेव नवंबर” लग रहा है कि पूरे नवंबर में शेव, कटिंग नहीं करवाना है, लेकिन इसका मकसद बड़ा ही नेक है।

कैसे हुई No Shave November की शुरूआत

नो शेव नवंबर कॉन्सेप्ट की शुरूआत के पीछे की कहानी बहुत प्रेरणा दायक है। दरअसल, नवंबर 2007 में शिकागो में रहने वाले मैथ्यू हिल की कैंसर से लड़ते हुए मौत हो गई थी। इसके बाद मैथ्यू हिल के आठ बच्चों ने अपने पिता को सम्मान देने और उन्हीं की तरह कैंसर से लड़ रहे लोगों की मदद के लिए कुछ करने का फैसला लिया। इसके बाद ही वर्ष 2009 में मैथ्यू हिल फाउंडेशन की शुरूआत हुई और देखते ही देखते “नो शेव नवंबर” दुनिया भर में मशुहूर हो गया।

क्या है No Shave November

“नो शेव नवंबर” किसी फन या कम्पीटिशन के लिए नहीं, बल्कि “नो शेव नवंबर” लोगों में कैंसर के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए शुरू किया गया कॉन्सेप्ट है। दरअसल 2009 अमेरिका स्थित “मैथ्यू हिल फाउंडेशन” ने शुरू किया था। यह संस्था कैंसर के प्रति जागरुकता बढ़ाने की दिशा में काम करती है और “नो-शेव नवंबर” भी इसी अभियान का हिस्सा है।

क्या है No Shave November कॉन्सेप्ट

“मैथ्यू हिल फाउंडेशन” की वेबसाइट के अनुसार “नो-शेव नवंबर” का लक्ष्य कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाना और मरीजों की आर्थिक रूप से मदद करना है। लोगों से कहा जा रहा है कि वे एक महीने की शेविंग का यह पैसा बचाकर फाउंडेशन को दान करें, जो इसे कैंसर रोगियों की देखभाल पर खर्च करेगा।

No Shave November के रूल्स

मैथ्यू हिल फाउंडेशन के कॉन्सेप्ट “नो-शेव नवंबर” के नियम सरल हैं। 30 दिनों के लिए रेजर को हाथ नहीं लगाना है और बालों के रखरखाव पर होने वाले खर्च को संस्था में दान करना है।

कैंसर रिसर्च में लगा रहा पैसा

“मैथ्यू हिल फाउंडेशन” अमेरिका का एक गैर-सरकारी संगठन है। 2009 से अब तक “नो-शेव नवंबर” कॉन्सेन्ट के जरिए “मैथ्यू हिल फाउंडेशन” 5 मिलियन डॉलर का चंदा जुटा चुका है, जिसे यह संस्था कैंसर पर रिसर्च में खर्च कर रही है। “मैथ्यू हिल फाउंडेशन” के संस्थापकों का मानना है कि “आज दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें कैंसर से हो रही हैं, इसलिए इसके इलाज पर रिसर्च के साथ ही लोगो में जागरुकता फैलाना जरूरी है।”

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