India News (इंडिया न्यूज), Isha Foundation Case : सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो महिलाओं को बंधक बनाने वाले केस में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने फाउंडेशन के खिलाफ कथित अवैध कारावास के मामले में कार्यवाही बंद कर दी हैं। ये फैसला मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने लिया है. इसके अलावा मद्रास उच्च न्यायालय के आदेशों को भी आड़े हाथों लिया। इससे पहले याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस पिटीशन में आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों लता और गीता को ईशा फाउंडेशन के आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है। इसके बाद सद्गुरु ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसी के बाद 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच पर रोक लगा दी थी।
इस केस में फैसला सुनाने से पहले चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने दोनों महिलाओं से बात की थी। उसके बाद ही इस मामलें में कार्यवाही बंद करने का आदेश दिया। चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज की दोनों बेटियों से फोन पर बात की। दोनों से बात करने के बाद चीफ जस्टिस ने बताया कि दोनों महिलाएं अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं, और अपनी मर्जी से बाहर जा सकती है। रिटायर्ड प्रोफेसर ने आरोप लगाया था कि कोयंबटूर स्थित ईशा फाउंडेशन के आश्रम में दोनों महिलाओं को बंधक बना कर रखा गया है।
कोर्ट में ईशा फाउंडेशन का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी द्वारा किया जा रहा है। मुकुल रोहतगी ने शुक्रवार को हुई सुनवाई में अदालत को बताया कि महिलाएं 24 और 27 वर्ष की उम्र में स्वेच्छा से आश्रम में शामिल हुई थीं और अवैध रूप से बंधक बनाए जाने के दावे निराधार थे। आगे रोहतगी ने बताया कि दोनों महिलाओं ने 10 किलोमीटर मैराथन जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी भाग लिया और वे अपने माता-पिता के साथ नियमित संपर्क में हैं।
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