India News (इंडिया न्यूज़), Shivpuri Vidhan Sabha Seat, मध्यप्रदेश: राजनीतिक भाग दौड़ के बीच मध्य प्रदेश के चुनाव की तारीख ऐलान होने के बाद सरगर्मियां तेज हो गई है। ऐसे में राजनीतिक दलों की तरफ से अपनी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी लगातार जारी है। वही मध्य प्रदेश के सियासत में शिवपुरी जिला काफी खास अहमियत रखता है। वैसे तो यह सीट बीजेपी और सिंधिया परिवार के गढ़ के रूप में जानी जाती है। वहीं जिले की बात करें तो इसमें पांच विधानसभा सीट आती हैं। जिसमें तीन सीटों पर कांग्रेस तो दो सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। खास बात यह है की सीट पर यशोधरा राजे सिंधिया को विधायक के रूप लंबे समय से चुना जाता रहा है।

वही बता दे की शिवपुरी सीट की विधायक यशोधरा ने पहले ही चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया था। ऐसे में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की सीट से चुनाव लड़ने की संभावना बताई जा रही है। वहीं ज्योतिरादित्य की लड़ने की संभावना को देखते हुए कांग्रेस ने यहां पर बड़ा गेम खेल दिया है।

कितनी आबादी तो कितने वोट

इसके अलावा पिछौर सीट की बात की जाए तो पिछौर सीट से विधायक और दिग्गज नेता केपी सिंह को शिवपुरी सीट से टिकट दी गई है। वहीं भाजपा ने अभी तक यहां से उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है। इसके साथ ही कांग्रेस से भाजपा छोड़कर आने वाले पूर्व विधायक वीरेंद्र सिंह रघुवंशी को पहली लिस्ट में टिकट नहीं मिली थी। वहीं उन्हें कांग्रेस की ओर से शिवपुरी या कोलासर से कहीं से भी टिकट नहीं दी गई है।

2018 चुनाव की बात की जाए तो शिवपुरी सीट के प्रदर्शन को देखते हुए भाजपा की यशोधरा को 84,570 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के सिद्धार्थ लाढ़ा के खाते में 55,822 वोट जमा हुए थे। इसी तरह यशोधर ने यह चुनाव जंग 28,748 मतों से जीती थी। वही तब के चुनाव में इस सीट पर कुल 2,40,528 वॉटर थे। जिसमें पुरुष वोटर की संख्या 1,27,586 थी। वहीं महिलाओं की संख्या 1,12,933 थी। वहीं इनमें कुल 1,62,183 वॉटर ने ही वोट डाला था। जिनका प्रतिशत 68.3 बनता है।

कैसा था राजनीतिक इतिहास

शिवपुरी सीट की राजनीतिक इतिहास के बारे में बात करें तो यह सीट यशोधरा राजे सिंधिया की वजह से जानी जाती है। 1990 से लेकर अब तक कांग्रेस को महेश एक ही सीट पर जीत मिल पाई है। जबकि भाजपा को 6 बार जीत का स्वाद चखने को मिला है। बता दे की 1998 में बीजेपी की टिकट पर पहली बार यशोधरा विधायक चुनी गई थी। वहीं 2003 में चुनाव में जीत हासिल भी की थी।

2007 में ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए यशोधर ने शिवपुरी सीट छोड़ दी थी, लेकिन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा। वहीं 2008 के चुनाव में बीजेपी के माखनलाल राठौर ने यहां पर फिर से पार्टी के लिए जीत हासिल की और इस सिलसिला को शुरू कर दियाइसके बाद यशोधरा राजी फिर से राज्य की राजनीति में लौटी और उन्होंने 2013 और 2018 की चुनाव में जीत हासिल की, यशोधरा यहां से चार बार विधायक चुनी जा चुकी हैं। लेकिन इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं।

कैसा रहा आर्थिक सामाजिक ताना-बाना

शिवपुरी सीट की खासियत के बारे में बताएं तो यहां पर जातिगत समीकरण खास मायने रखता है। यहां पर राजमहल का असर साफ देखने को मिल सकता है। फिलहाल इस सीट पर सबसे अधिक वोटर वैश्य बिरादरी के हैं। जिनकी संख्या करीब 50,000 है। इसके बाद 40,000 आदिवासी, 20,000 ब्राह्मण समाज के वोटर मौजूद है।

 

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