सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में फ्री के वादों को बताया गंभीर मुद्दा,केंद्र सरकार से कहा आप इस पर स्टैंड लेने से क्यों हिचकिचाते है?

इंडिया न्यूज़(दिल्ली):सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों की घोषणा को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर एक स्टैंड लेने को कहा,कोर्ट ने केंद्र से पूछा की आप इस मुद्दे पर स्टैंड लेने से क्यों हिचकिचा रहे है.

कोर्ट ने केंद्र से यह भी विचार करने को कहा कि क्या समाधान के लिए वित्त आयोग के सुझाव मांगे जा सकते हैं? वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी उन्होंने कहा की चुनाव में फ्री वादों को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए,कुल 6.5 लाख करोड़ का कर्ज है,क्या हम देश को श्रीलंका बनाने की ओर ले जाना चाहते है,श्री उपाध्याय ने यह मांग भी की पार्टियों को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल की मान्यता देने में कुछ और मानदंडो को जोड़ा जाना चाहिए.

याचिका ने कहा गया की,चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है,निष्पक्ष चुनाव की जड़ें हिलाता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करता है,चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से निजी वस्तुओं/सेवाओं का वादा/वितरण,जो सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं हैं,संविधान के अनुच्छेद 14,162,266(3) और 282 का उल्लंघन करता है और मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त का वादा/वितरण रिश्वत और भारतीय दंड संहिता की S.171B और S.171C के तहत,अनुचित प्रभाव के समान है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना,न्यायमूर्ति कृष्णा मुरारी और हिमा कोहली की पीठ ने इसपर सुनवाई की,वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को भी अपनी राय रखने के लिए बुलाया गया,कपिल सिबल ने कहा की यह एक गंभीर मुद्दा है लेकिन राजनीतिक रूप से इसे नियंत्रित करना मुश्किल है,वित्त आयोग जब विभिन्न राज्यों को फण्ड आवंटन करता है तब वह राज्य का कर्ज और मुफ्त के वादों और योजनाओ को ध्यान में रख सकता है,इससे निपटने के लिए वित्त आयोग उपयुक्त प्राधिकारी है,शायद हम इस पहलू को देखने के लिए आयोग को आमंत्रित कर सकते हैं,केंद्र से इस पर निर्देश जारी करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

सरकार की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता केएम नटराज और चुनाव आयोग की तरफ से वकील अमित शर्मा पेश हुए,अमित शर्मा ने 10 अप्रैल 2022 को आयोग की तरफ से दाखिल शपथपत्र पर ध्यान दिलाते हुए कहा की चुनाव एक नीतिगत निर्णय है और आयोग नीतिगत निर्णय और सरकार के फैसलों को नियंत्रित नहीं कर सकता,उन्होंने कहा की चुनाव आयोग,चुनाव में आचार संहिता सभी मान्यता प्राप्त पार्टियों से चर्चा के बाद ही तय करता है,इस बारे में कोर्ट को केंद्र सरकार बेहतर बता सकती है की इसको लेकर क्या कानून होना चाहिए.

अतिरिक्त महाधिवक्ता केएम नटराज ने कहा की इन मुद्दों पर चुनाव आयोग ही कुछ कर सकता है.

इस पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा की आप यह क्यों नहीं कहते कि आपका इससे कोई लेना-देना नहीं है और चुनाव आयोग को फैसला करना है? हम पूछना चाहते है कि क्या भारत सरकार इस पर विचार कर रही है कि यह एक गंभीर मुद्दा है या नहीं?आप एक स्टैंड लेने से क्यों हिचकिचा रहे हैं?आप एक स्टैंड लें और फिर हम तय करेंगे कि यह मुफ्त की चीजे जारी रहेंगी या नहीं,आप एक विस्तृत जबाब इस पर दाखिल करे.

Roshan Kumar

Journalist By Passion And Soul. (Politics Is Love) EX- Delhi School Of Journalism, University Of Delhi.

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