India News (इंडिया न्यूज), When and How Will Humans Become Extinct From the Earth: कई जानवरों के विलुप्त होने के बाद अब इंसानों के विलुप्त होने का मुद्दा भी वैज्ञानिकों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल, वैज्ञानिकों ने इंसानों के विलुप्त होने की भविष्यवाणी की है। अपनी भविष्यवाणी में उन्होंने इसका कारण और साल भी बताया है। यह दावा इंग्लैंड की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने हालिया शोध में किया गया है।

कब विलुप्त होंगे धरती से मनुष्य?

शोधकर्ताओं का कहना है कि अगले 250 मिलियन सालों में मनुष्य और सभी स्तनधारी जीव विलुप्त हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझते हुए वैज्ञानिकों ने इसके आधार पर एक मॉडल तैयार किया है, जिसकी मदद से बताया गया है कि मनुष्य और अन्य स्तनधारी जीव धरती पर कितने समय तक जीवित रह पाएंगे।

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विलुप्त होने का क्या है कारण?

शोधकर्ता अलेक्जेंडर फ़ार्न्सवर्थ के अनुसार, धरती पर मनुष्यों और अन्य स्तनधारियों को 40 से 70 डिग्री सेल्सियस तापमान का सामना करना पड़ेगा। भविष्य को देखते हुए यह अंधकारमय लगता है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर मौजूदा स्तर से दोगुना हो सकता है। मनुष्य और अन्य प्रजातियां गर्मी से लड़ने और शरीर को ठंडा रखने में असमर्थ होंगी। खास बात यह है कि इस अध्ययन में वायुमंडल में बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों को शामिल नहीं किया गया है। इस लिहाज से इंसानों का विलुप्त होना अध्ययन में बताई गई तारीख से पहले भी हो सकता है।

क्यों और कैसे बिगड़ेंगे हालात?

शोध में कहा गया है कि पृथ्वी एक सुपरकॉन्टिनेंट बनने की ओर बढ़ रही है, जिसका केवल 8 से 16 प्रतिशत हिस्सा ही अगले 250 सालों में रहने लायक बचेगा। इसे पैंजिया अल्टिमा के नाम से जाना जाएगा। यहां का तापमान तेजी से बढ़ेगा। नमी का असर देखने को मिलेगा। दुनिया भर में तापमान कम से कम 15 डिग्री तक बढ़ जाएगा और दुनिया बुरे हालातों से गुजरेगी। पृथ्वी आज की तरह रहने के लिए मजेदार जगह नहीं रह जाएगी।

रिपोर्ट में कहा गया है, केवल वही प्रजातियां जीवित रहेंगी, जो तापमान के असर से खुद को दूर रख पाएंगी। जलवायु संकट के कारण इंसानों के विलुप्त होने का मुद्दा वैज्ञानिकों के बीच बहस का विषय बन गया है। जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि सरकारों को जलवायु परिवर्तन की सबसे खराब स्थिति से जुड़े परिणामों पर ध्यान देने की जरूरत है। यदि तापमान अपेक्षा से अधिक बढ़ता है तो पृथ्वी पर समस्त मानव जीवन के विलुप्त होने की संभावना भी बढ़ जाएगी। जो मानव के लिए विनाशकारी साबित होगा।

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सरकारों को बड़े कदम उठाने होंगे

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ एक्सटिंक्शन रिस्क के प्रोफेसर डॉ. ल्यूक केम का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का एक छोटा सा स्तर भी जलवायु परिवर्तन पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है। हर सामूहिक विलुप्ति घटना में जलवायु परिवर्तन की भूमिका रही है।

मार्च में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु आपातकाल से निपटने के लिए दुनिया भर की सरकारों को बड़े कदम उठाने की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है, तो सभी क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लगातार कम करना होगा। उन्होंने कहा कि वैश्विक उत्सर्जन पहले से ही कम होना चाहिए और 2030 तक इसे लगभग आधा करना होगा।