इंडिया न्यूज।
हर साल 29 अक्टूबर को वर्ल्ड सोरायसिस डे (World Psoriasis Day 2021) मनाया। सोरायसिस त्वचा (skin) से जुड़ी एक बीमारी होती है। जिसका उम्र से कोई लेना देना नहीं होता है, परंतु यह बीमारी अधिकांशत: वयस्कों को होती है। चर्म रोग से जुड़े विशेषज्ञ इस बीमारी को डायबिटीज, हृदय रोग और तनाव से जोड़कर देखते हैं। आयुर्वेद में इस बीमारी का मुख्य कारण शरीर की कमजोर रोग प्रतिरोधक प्रणाली को माना जाता है। क्योंकि जब शरीर की इम्युनिटी कमजोर हो जाती है तो बैक्टीरिया का पहला हमला त्वचा पर होता है। आज हम आपको इस लेख में इसके लक्षण, कितने प्रकार का होता है सोरायसिस, इस बीमारी से कौन-कौन से अंग होते हैं प्रभावित, कहीं ये जैनेटिक समस्या तो नहीं, कब होती है रोगियों को ज्यादा परेशानी और इसके उपचार के लिए घरेलु उपाय आदि बताएंगे।
World Psoriasis Day 2021 Quotes Wishes Messages
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सोरायसिस त्वचा से जुड़ी आटोइम्यून डिजीज है। (psoriasis risk factors) इस रोग में त्वचा पर कोशिकाएं तेजी से जमा होने लगती हैं। सफेद रक्त कोशिकाओं के कम होने के कारण त्वचा की परत सामान्य से अधिक तेजी से बनने लगती है, जिसमें घाव बन जाता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। बीमारी के बढ़ जाने पर लाल चकत्ते से खून निकल सकता है। कभी-कभी इसमें सूजन भी हो जाती है। यह मानसिक विकार भी उत्पन्न कर सकती है। सोरायसिस (myths and facts about psoriasis) के कारण रोगी का आम जीवन परेशानियों से भर जाता है (psoriasis awareness)।
यह रोग कम उम्र के बच्चों के हाथ पांव, गले, पेट या पीठ पर होता है। यह बीमारी छोटे-छोटे लाल-गुलाबी दानों के रूप में दिखाई पड़ती है। ज्यादातर हाथ के ऊपरी हिस्से, जांघ और सिर पर होती है। तनाव, त्वचा में चोट और दवाइयों के रिएक्शन के कारण यह रोग उत्पन्न होता है।
ये एक दुर्लभ तरह का रोग है। ये ज्यादातर वयस्क में पाया जाता है। इसमें अक्सर, हथेलियों, तलवों या कभी-कभी पूरे शरीर में लाल दानें हो जाते हैं, जिसमें मवाद हो जाता है। देखने में संक्रमित प्रतीत होता है। यह ज्यादातर हाथों और पैरों में होता है, लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। इसके कारण कई बार बुखार, मतली आदि समस्याएं हो जाती हैं।
ये सोरायसिस और अर्थराइटिस का जोड़ है। 70 फीसदी रोगियों में तकरीबन 10 साल की उम्र से इस सोरायसिस की समस्या रहती है। इसमें जोड़ों में दर्द, उंगलियों और टखनों में सूजन आदि की समस्याएं होती है।
प्लेक सोरायसिस एक आम तरह का सोरायसिस है। प्लेक सोरायसिस के कारण शरीर पर सिल्वर (चांदी) रंग और सफेद लाइन बन जाती है। इसमें लाल रंग के धब्बे के साथ जलन होने लगती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकती है, लेकिन ज्यादातर कोहनी, घुटने, सिर, पीठ में नीचे की ओर होती है। इसमें त्वचा पर लाल, छिलकेदार मोटे या चकत्ते निकल आते हैं।
शरीर की 80 प्रतिशत से अधिक त्वचा पर जलन के साथ लाल चकत्ते हो जाते हैं। शरीर का तापमान असामान्य हो जाता है। हदय की गति बढ़ जाती है। यह पूरी त्वचा में फैल जाती है। इससे त्वचा में जलन होती है। इसमें खुजली, ह्रदय गति बढ़ने और शरीर का तापमान कम ज्यादा होने जैसी समस्याएं होती है। इसके कारण संक्रमण, निमोनिया भी हो सकता है।
इसमें स्तनों के नीचे, बगल, कांख, या जांघों के ऊपरी हिस्से में लाल-लाल बड़े चकत्ते बन जाते हैं। ये ज्यादा पसीने और रगड़ने के कारण होते हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से
जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, तो नयी कोशिकाएं तेजी से बनने लगती हैं। यह त्वचा इतनी कमजोर होती है कि पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती हैं। इसमें लाल दाने और चकत्ते दिखाई देने लगते हैं।
आनुवांशिक (वंशानुगत रूप से) रूप से
* यह एक आनुवांशिक बीमारी है, जो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे को होती है।
*अगर माता-पिता में से किसी एक को यह रोग है, तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 15 फीसदी तक बढ़ जाती है।
*अगर माता-पिता दोनों को यह बीमारी है तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 60 फीसदी अधिक हो जाती है।
कई बार वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी रोग का कारण बनता है। यदि आप गले के अलावा त्वचा के इंफेक्शन से पीड़ित हैं, तो ये सोरायसिस से ग्रस्त हो सकते हैं। यदि आपके घर में कोई भी व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है, तो यह समस्या आपको भी हो सकती है। त्वचा पर कोई घाव जैसे- त्वचा कट जाना, मधुमक्खी काट लेना या धूप में त्वचा का झुलसना। यह सोयरासिस होने का कारण बन सकता है। तनाव, धूम्रपान और अधिक शराब का सेवन करने से भी सोयरासिस से ग्रस्त हो सकते हैं। शरीर में विटामिन डी की कमी होने, एवं उच्च रक्तचाप से संबंधित कुछ दवाइयां खाने से भी यह रोग होता है।
यह बीमारी किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है। जो शरीर के इन अंगों में हो सकती है। जैसे हथेलियों, पांव के तलवे, कोहनी, घुटने व पीठ पर अधिक होती है।
कई लोग एलोपैथिक उपाय (psoriasis treatment) से सोराइसिस का इलाज करने की कोशिश करते हैं, लेकिन बीमारी का उचित इलाज नहीं हो पाता है। ऐसे में आयुर्वेदिक उपाय ज्यादा बेहतर परिणाम दे सकते हैं।
* हल्दी और गुलाब जल का लेप बना लें। इसे रोज सुबह-शाम लगाएं। इससे सोरायसिस का उपचार होता है। यह एक फायदेमंद नुस्खा है।
* फिटकरी के पानी से नहाएं। इससे सोरियासिस से होने वाली खुजली और रूखापन दूर होता है। इसके लिए नहाने के पानी में 2 कप फिटकरी डाल लें। 15 मिनट तक पानी में प्रभावित अंग को डुबाएं रखें।
* एलोवेरा के ताजे पत्ते का गूदा निकालकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। आपको हल्के हाथों से मालिश करना है। रोज ऐसा करने से खुजली से आराम मिलता है।
* आप मूंगदाल, मसूरदाल शामिल कर सकते है। सोरायसिस के मरीजों को अजवाइन, सौंफ, हींग, काला नमक, जीरा, लहसुन और हल्के गर्म पानी का उपयोग करना चाहिए।
* काला नमक और चीनी की जगह देसी खांड ले सकते है।
आयुर्वेद में सोरायसिस मरीजों को शरीर साफ-सुथरा रखने पर जोर दिया जाता है। क्योंकि यदि आपका शरीर साफ रहेगा तो सोरायसिस को फैलने से रोका जा सकता है। सोरायसिस के मरीजों को संतुलित और पौष्टिक भोजन का सेवन करना चाहिए। अपनी दिनचर्या में सुधार करना चाहिए। जीवन में तनाव को नही आने देना चाहिए। आयुर्वेद का सोरायसिस और अन्य बीमारियों के बारें में एक ही मत है, कि सबसे पहले अपनी डाइट में सुधार करना चाहिए और शुरूआती लक्षणों में ध्यान देना चाहिए। तभी जल्द से जल्द रोग पर काबू पाया जा सकता है।
वैसे तो जब तक बीमारी ठीक नही होती है। तब तक हर किसी को दिक्कत होती है पर कुछ मौसम विशेष में सोरायसिस के मरीजों को परेशानियों को सामना करना पड़ता है। अधिक सर्दी में सोरायसिस के मरीजों को ज्यादा तकलीफ उठानी पड़ती है। अधिक तनाव में होते हैं। चकत्तो में जलन होने लगती है। चोट लग जाने पर यदि त्वचा छिल गई है तो बहुत ज्यादा परेशानी होती है। कुछ दवाओं के सेवन से संक्रमण का डर बना रहता है। यदि आप धूम्रपान और शराब का सेवन करते है तो भी आपको समस्या हो सकती है।
* नये अनाज का सेवन करने से बचें।
* मैदा, चना, मटर, उड़द की दाल इत्यादि खाद्य पदार्थों का परहेज करना चाहिए।
* अधिक खट्टे फलों का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए।
* तेल युक्त और मसालेदार भोजन नही करना चाहिए, और नॉनवेज खाने से बचना चाहिए।
* सब्जियों में सरसों, टमाटर, बैंगन, कंद-मूल को कम खाना चाहिए।
* दही, दूध, कोल्ड ड्रिंक का सेवन ज्यादा नहीं करना चाहिए।
* खाने में कम नमक और कम चीनी का प्रयोग करें।
* आयुर्वेद में विरुद्ध आहार पूर्ण वर्जित है इसलिए ऐसे आहार बिल्कुल न लें जो इस बीमारी को ओर ज्यादा बढ़ा दें। जैसे मछली के साथ दूध।
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