कोर्ट के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया कि लड़की ने अपना धर्म हिंदू से मुस्लिम में परिवर्तित किया है और इसके बाद, स्वेच्छा से याचिकर्ता वारिस अली के साथ विवाह किया था और धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किए गए अपने बयान में उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसने एक लड़की को जन्म दिया है और बच्चे का पिता वारिस अली है। कोर्ट में ये तर्क दिया गया की आवेदक वारिस अली ने कोई अपराध नहीं किया है, ये द्विपक्षीय निर्णय है।
इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि भारत में कोई भी व्यक्ति अपना धर्म बदल सकता है, लेकिन केवल मौखिक या लिखित घोषणा से धर्म परिवर्तन नहीं होता। कोर्ट ने राज्य की ओर से उपस्थित अधिवक्ता को यह सत्यापित करने का निर्देश दिया कि ऐसा धर्म परिवर्तन कानूनी बाधाओं को पार करने या किसी दबाव या लालच में आकर नहीं किया गया हो और यह भी पता लगाया जाए कि धर्म परिवर्तन केवल विवाह के लिए तो नहीं किया गया है, अब इस मामले की अगली सुनवाई अब 6 मई को होगी।
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