उत्तराधिकारी बलवीर ने पूर्ण कराई अंतिम प्रक्रिया
इंडिया न्यूज, प्रयागराज:
पोस्टमार्टम के बाद महंत के पार्थिव देह को सबसे पहले शहर में घुमाते हुए संगम में गंगा नदी में स्नान कराया गया। तदोपरांत वैदिक मंत्रोच्चारण और शिव उद्घोष में भू-समाधि दी गई। भू-समाधि के दौरान 13 अखाड़े के साधु-संत मौजूद रहे।
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अंतिम प्रक्रिया में एक क्विंटल फूल, एक क्विंटल दूध, एक क्विंटल पंच मेवा, मक्खन आदि भी समाधि में डाला गया। अंतिम प्रक्रिया में परदे से गोपनीय प्रक्रिया भी की गई।
महंत नरेंद्र गिरि की अंतिम इच्छा थी कि उनकी समाधि बाघंबरी मठ में नीबू के पेड़ के पास दी जाए। यह बात उन्होंने अपने सुसाइड नोट में भी लिखी है।
उधर, महंत के बहनोई भागीरथी सिंह ने कहा कि महंत दूसरों को ज्ञान देते थे, वह कभी आत्महत्या नहीं कर सकते।
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साधु परंपरा के अनुसार सबसे पहले पार्थिव शरीद को संगम में स्नान कराया जात है। इसके बाद में नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। जैसे एक संत का श्रृंगार होता है, वैसे ही उनका श्रृंगार किया जाएगा। फूल मालाएं पहनाई जाती है और उनके शिष्यों और अनुयायियों द्वारा उन्हें दक्षिणा दी जाती है। उसके बाद ही विधिवत संत परंपरा के अनुसार समाधि दी जाती है।
समाधि देने के अगले दिन से ही बाकायदा धूप दीप और दोनों समय उन्हें भोग लगाया जाएगा। एक वर्ष पूरा होने के बाद समाधि के ऊपर शिवलिंग स्थापित किया जाएगा, जिस पर सुबह और शाम जलाभिषेक होगा और धूप, दीप व अगरबत्ती से पूजन अर्चना की जाएगी।
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