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UP News: 2024 को लेकर यूपी में मुस्लिम दलित गठजोड़ पर सभी पार्टियों की नजर

Itvnetwork Team • LAST UPDATED : September 1, 2023, 1:45 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Martand Singh, UP News: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं, उत्तर प्रदेश में भी सभी दल अपने वोट के समीकरण को साधने के लिए प्रयास कर रहे हैं। बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्षियों ने एकजुट होकर इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस, इंडिया बनाया है। वहीं बीजेपी ने इसे काउंटर करने के लिए नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी कि एनडीए के कुनबे में कुछ और दलों को जोड़कर उसकी संख्या खुद को मिलाकर 39 कर ली है, विपक्षियों के पास बीजेपी के मात देने के लिए सबसे बड़ा हथियार मुस्लिम वोट बैंक ही है, इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए यूपी में कांग्रेस, समजवादी पार्टी और बीएसपी खासी मेहनत कर रही है।

वो बात गुजरे जमाने की हो गई

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने के लिए प्रयासरत है। एक वक्त था जब दलित और मुस्लिम कांग्रेस के परंपरागत वोट माने जाते थे, लेकिन वो बात गुजरे जमाने की हो गई। आज ये दोनों ही वोट बैंक कांग्रेस का साथ छोड़ कर अलग अलग दलों के पास चले गए। यूपी में कांग्रेस सबसे ज्यादा कोशिश इसी वोट बैंक के लिए कर रही है, पार्टी की तरफ से लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं, पिछले दिनों कांग्रेस ने जय जवाहर जय भीम अभियान चला कर दलित बस्तियों में अपने अल्पसंख्यक नेताओं को भेजा था।

दलित बस्तीयों में जाकर हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे

कांग्रेस की कोशिश है कि प्रदेश में उसके साथ दलित और अल्पसंख्यक वोटबैंक दोबारा एकजुट हो जाए तो वह सियासी वैतरणी पार कर सकती है, अब अपने इसी अभियान को आगे बढ़ाते हुए पार्टी अपना संविधान अपना अभिमान अभियान शुरू करने जा रही है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष हिंदवी ने बताया कि पार्टी अपने ट्रेडिशनल वोट बैंक दलित और मुस्लिम को साथ लाने के लिए प्रयासरत है, मुस्लिम नेता दलितों के घर जाकर ये बताने की कोशिश करेंगे कि ये संविधान बदलने की सोच रखने वाली सरकार को बदलने के लिए हमे एक होना होगा। एक तारीख से छे तारीख तक माइनॉरिटी कांग्रेस के लोग दलित बस्ती जाकर हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे।

2007 में ब्राह्मणों को बसपा ने अहमियत दी

वहीं दूसरी तरफ 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से बसपा ने सबक लिया है, विधानसभा चुनाव में उसने ब्राह्मण-दलित कार्ड पर दांव खेला था, लेकिन उसकी हाथ गहरी निराशा लगी, बसपा एक सीट पर सिमट कर रह गई है। इसके बाद से मायावती दलित-अति पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कवायद कर रही हैं, बसपा ब्राह्मण समाज से दूरी बना लिया है और मुस्लिमों पर ही अपना फोकस केंद्रित कर रखा है। सूबे में प्रदेश से लेकर जिला और पंचायत स्तर तक मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने का अभियान चला रही है। दरअसल, 2007 से पहले दलित, अति पिछड़ा और मुसलमान ही बसपा का चुनावी समीकरण की धुरी रहे हैं, साल 2007 में ब्राह्मणों को बसपा ने अहमियत दी और प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली।

उत्तर प्रदेश में दलित 22 फीसदी है

लेकिन 2012 के बाद से बसपा के ग्राफ लगातार गिरा है, 2022 के चुनाव में मुसलमानों ने जिस तरह से एकतरफा सपा को वोट दिया है, उसके चलते बसपा यूपी में गिरकर 12 फीसदी पर वोटों पर आ गई। सूबे में दलित 22 फीसदी है और मुस्लिम 20 फीसदी है, यह दोनों वोट एक साथ आ आ जाते हैं तो फिर यह आंकड़ा 42 फीसदी हो जाता है और अति पिछड़ी जातियां जुड़ती है तो बसपा इस ताकत में आ जाएगी कि वह बीजेपी को चुनौती दे सके।

सपा की नजर बीएसपी के वोट बैंक पर

उधर समजवादी पार्टी भी मुस्लिम और दलित को अपनी तरफ खींचने की भरसक कोशिश कर रही है, समजवादी पार्टी ने दलित वोटरों को रिझाने का काम स्वामी प्रसाद मौर्य को सौपा है, कुछ दिनों पहले स्वामी प्रसाद ने हिन्दू धर्म और ब्राह्मणवाद को लेकर विवादित टिप्पणी की थी, और कई महीनों से उनका ये सिलसिला जारी। सियासी पंडित स्वामी के इस बयानबाजी को दलित वोट बैंक से जोड़ कर भी देख रहे हैं, दरअसल सपा की नजर बीएसपी के वोट बैंक पर है।

मुसलमानों के असली मुद्दे क्या हैं ?

वहीं मुसलमानों के मन में क्या चल रहा है, उनकी पहली पसंद कौन है, यूपी के विधानसभा चुनाव में एकमुश्त वोट करने वाले मुस्लिम समाज का रुख 2024 के आम चुनाव में किधर होगा, ऐसे ही कई सवालों के जवाब जानने के मिशन में सपा मुखिया अखिलेश यादव जुटे हुए हैं। वो लगातर मुस्लिम समुदाय के सियासी नब्ज की थाह ले रहे हैं, मुसलमानों के मिजाज को जानने-समझने के लिए कई तरह से सियासी जतन भी कर रहे हैं, इसी को लेकर अखिलेश यादव ने पिछले दिनों लखनऊ में मुस्लिम बुद्धिजीवियो की एक गुप्त बैठक बुलाई थी जिसमे कई रिटायर्ड आईपीएस, आईएएस और पूर्व न्यायाधीश थे। अखिलेश की कोशिश ये जानने की है कि आखिर पढ़ा लिखा मुस्लिम समाज आज की तारीख़ में चुनाव को लेकर क्या सोचता है मुसलमानों के असली मुद्दे क्या हैं।

रामपुर में 50 परसेंट से अधिक मुस्लिम

बात अगर बीजेपी की करें तो पार्टी अपने हिंदू वोट बैंक के साथ-साथ अपने मुस्लिम वोट बैंक को भी धीरे-धीरे बढ़ा रही है, ऐसे में बीजेपी के दोनों हाथों में जीत का लड्डू नजर आ रहा है। अगर 18वीं लोकसभा के लिए 2024 में होने वाले आम चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक बंटता है तो भी बीजेपी की जीत तय हो सकती है, उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने मुस्लिम बाहुल्य सीटें होने के बावजूद जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। आजम खान के गढ़ रामपुर में 50 परसेंट से अधिक मुस्लिम हैं, इसके बावजूद बीजेपी ने जीत दर्ज की, वहीं आजमगढ़ जो कभी मुलायम सिंह गढ़ था, वहां मुस्लिम-यादव समीकरण 40 परसेंट से अधिक होने के बाद भी बीजेपी ने जीत हासिल करके यह साबित कर दिया मुस्लिम वोट एकजुट होने का भी उसे फायदा मिलता है।

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