India News(इंडिया न्यूज), Martand Singh, Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में अब काफी कम समय रह गया है, ऐसे में देशभर की सभी बड़ी पार्टियों ने इसे लेकर कमर कस ली है और अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देते नजर आ रहे हैं। केंद्र की एनडीए समर्थित बीजेपी सरकार को हराने के लिए विपक्षी पार्टियों ने एक गठबंधन किया है, जिसे इंडिया नाम दिया गया है इंडिया गठबंधन में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ ही कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टियों में से एक है।

कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में सबसे बड़ी समस्या

घोसी उपचुनाव में जीत मिलने के बाद इंडिया गठबंधन को यूपी में एक रौशनी दिखी है, गठबंधन की जीत से उत्साहित कांग्रेस ने भी अपनी तैयारियों को धार देना शुरू कर दिया है। पार्टी अब सीटों को लेकर सिलसिलेवार मंथन कर रही है। लेकिन विपक्ष के सामने एक बड़ी चुनौती भी है कि वो यहां कैसे सीटों का बंटवारा करेंगे, सबसे बड़ी समस्या कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में होने वाली है क्योंकि यहीं दोनों पार्टियां यूपी में विपक्ष के बड़े चेहरे के तौर पर जानी जाती रही हैं।

पूर्व सांसद पूर्व विधायक और पूर्व प्रत्यशियों को बुलाया गया

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर लगातार बैठकों का दौर चल रहा है, मंगलवार को भी पार्टी कार्यालय पर एक बैठक बुलाई गई, इस बैठक में पूर्व सांसद पूर्व विधायक और पूर्व प्रत्यशियों को बुलाया गया। प्रदेश अध्यक्ष अजय राय की अध्यक्षता में हुई इस बैठक का मकसद सीटवार फीडबैक लेना था, पार्टी का थिंक टैंक चाहता है कि लोकसभा चुनाव में सक्रिय होने से पहले पुराने उम्मीदवारों से फीड बैक लेकर इसका आंकलन कर लिया जाए कि आखिर किस सीट पर पार्टी की क्या स्थिति है। साथ ही जमीनी स्तर पर कांग्रेस को लेकर लोग क्या सोच रखते हैं।

सबसे ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश में

लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश में ही हैं, ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उत्तर प्रदेश सबसे अहम रहने वाला है। फिलहाल अभी तक गठबंधन की ओर से सीट वितरण को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है, माना जा रहा है कि 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में एक ही सीट जीत पाने वाली कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 20 सीटों पर प्रमुखता से अपनी दावेदारी पेश कर सकती है।

रायबरेली ही एकमात्र ऐसी सीट है जिसे कांग्रेस बचा पाने में सफल रही

कांग्रेस के अंदर अपने खोए जनाधार को पाने के लिए लगातार मंथन हो रहा है, इसके साथ ही पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक की तरफ भी लौटने का पूरी शिद्दत से प्रयास कर रही है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में पार्टी की स्थिति कुछ खास नही रही है, दरअसल उत्तर प्रदेश की रायबरेली ही एकमात्र ऐसी सीट है, जिसे बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बचा पाने में सफल रही थी। ऐसे में कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर कांग्रेस की ओर से एक बार फिर सोनिया गांधी यहां से उम्मीदवार रहेंगी ऐसी बातें पार्टी की तरफ से कही जा रही हैं। कांग्रेस पार्टी उन सीटों पर ज्यादा मंथन कर रही है जिसमें पिछले दो आम चुनावों में सेकंड और थर्ड नंबर पर उसके प्रत्याशी रहे हैं।

2019 के आम चुनाव में अमेठी, फतेहपुर सीकरी और कानपुर लोकसभा सीट पर दूसरे स्थान पर रहने के कारण इन सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर सकती है, इन सीटों पर क्रमशः राहुल गांधी, राज बब्बर और श्रीप्रकाश जायसवाल दूसरे स्थान पर थे।

जिन सीटो पर 1 लाख से ज्यादा वोट मिले उन पर पूरा फोकस

इसके अलावा कांग्रेस उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद, बाराबंकी, हमीरपुर, धौरहरा, अकबरपुर, सहारनपुर, संतकबीरनगर, कुशीनगर, लखनऊ, उन्नाव और वाराणसी में तीसरे स्थान पर होने के साथ ही एक लाख से ज्यादा वोट पाने में सफल रही थी, ऐसे में कांग्रेस इन सीटों पर भी दावेदारी के लिए जोर लगा सकती है। इसके अलावा साल 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डाले तो प्रतापगढ़, मिर्जापुर, रामपुर और खीरी में भी एक लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं की कांग्रेस इन्हीं सीटों पर अपना पूरा फोकस रखने वाली है।

2009 के बाद कांग्रेस का तेजी से गिरा ग्राफ

हालांकि इसके अलावा पार्टी एक अलग फॉर्मूले पर भी काम कर रही है, 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपी के अंदर कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा था। उस चुनाव में कांग्रेस ने जिन सीटों पर जीत दर्ज की उनमें अकबरपुर, अमेठी, रायबरेली, बहराइच, बाराबंकी, बरेली, धौरहरा, डुमरियागंज, फैजाबाद, फर्रुखाबाद, गोंडा, झांसी, कानपुर, खीरी, कुशीनगर, महाराजगंज मुरादाबाद, प्रतापगढ़, श्रावस्ती, सुल्तानपुर और उन्नाव प्रमुख थीं। लेकिन 2009 के बाद कांग्रेस का ग्राफ तेजी से गिरा। पार्टी में प्रयोग तमाम हुए लेकिन धीरे-धीरे इसके पुराने नेता या तो दूसरी पार्टी में चले गए या उम्र के साथ राजनीति से ही दूर हो गए, जगदंबिका पाल, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह और डॉ संजय सिंह अब भाजपा में जा चुके हैं वहीं अन्नू टंडन समाजवादी हो चुकी हैं।

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