India News (इंडिया न्यूज), Jhansi Fire Incident: उत्तर प्रदेश में झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु केंद्र (SNCU) में 15 नवंबर 2024 को एक भयानक अग्निकांड हुआ, जिसमें 10 नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत हो गई। इस घटना ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया और अब यह सवाल उठने लगा कि क्या यह दुर्घटना थी या कोई आपराधिक कृत्य। हालांकि, मंडलायुक्त बिमल कुमार दुबे की जांच रिपोर्ट में इसे एक हादसा बताया गया है, और इसमें किसी प्रकार की लापरवाही या आपराधिक कृत्य नहीं पाया गया। रिपोर्ट के अनुसार, आग की वजह इलेक्ट्रिकल प्लग से हुई स्पार्किंग थी।
इस अग्निकांड के बाद प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की और मृत और घायल बच्चों के परिजनों को सहायता राशि उपलब्ध कराई। साथ ही, 6 बच्चों को उनके परिजनों को सौंप दिया गया। फिलहाल, 32 नवजातों का इलाज जारी है। इस अग्निकांड में हुए नुकसान के कारण प्रशासन ने एक चार सदस्यीय जांच समिति गठित की है, जो आग लगने के कारणों और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सुरक्षा उपायों की सिफारिश करेगी।
हादसे के बाद, प्रशासन ने वार्ड में भर्ती बच्चों की सूची जारी की। पहले बच्चों की संख्या 55 बताई गई थी, लेकिन बाद में जांच में पता चला कि हादसे के दौरान वार्ड में 49 बच्चे भर्ती थे। इनमें से 10 बच्चों की मौत घटना के दिन ही हो गई थी, जबकि अन्य बच्चों का इलाज जारी है। कुछ बच्चों के गुम होने की स्थिति भी उत्पन्न हुई थी, लेकिन बाद में यह साफ हो गया कि ये बच्चे उसी सूची में शामिल थे, जिनका इलाज अस्पताल में चल रहा था। प्रशासन ने इन बच्चों की तलाश की और उनकी पहचान की।
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इसी बीच, एक बच्चा ललितपुर में पाया गया, जिसे एक दंपति अपना बच्चा समझ कर ले गए थे। एक और बच्चा महोबा के निजी अस्पताल में भर्ती था, जबकि उसके असली माता-पिता झांसी के थे। इसके अलावा, कुछ अन्य बच्चों को भी परिजनों के पास पाया गया जो घटनास्थल से गुम हो गए थे। प्रशासन ने इन सभी बच्चों की सही पहचान की और परिजनों के बीच उन्हें सौंप दिया।
झांसी के एसएनसीयू में हुई इस दुर्घटना के बाद, राज्य सरकार ने इसकी गंभीरता को देखते हुए एक जांच समिति बनाई है, जिसमें स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। यह टीम जल्द ही अपनी रिपोर्ट पेश करेगी, ताकि घटना के कारणों का पता चल सके और भविष्य में इस तरह की घटना से बचने के उपाय सुझाए जा सकें।
हादसे के दौरान जो 49 बच्चे भर्ती थे, उनमें से 18 बच्चों का इलाज मेडिकल कॉलेज में जारी है, जबकि बाकी का इलाज अन्य अस्पतालों में चल रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि इलाज के बाद सभी बच्चों की हालत में सुधार हो रहा है और वे जल्द ही ठीक हो जाएंगे। इस घटना से यह स्पष्ट हो गया कि अस्पतालों में सुरक्षा के उपायों को और सख्त करने की आवश्यकता है, खासकर नवजात बच्चों के वार्ड में। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए प्रशासन को उपयुक्त उपायों की योजना बनानी चाहिए, ताकि किसी के जीवन से और किसी भी परिवार का दर्द न बढ़े।
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