Lakhimpur Violence Priyanka recharges Congressmen, no guarantee of voter’s satisfaction
अजीत मेंदोला, नई दिल्ली
Lakhimpur Violence : कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का इस बार का यूपी दौरा काफी हद तक संदेश देने के मामले में सफल कहा जा सकता है। लखीमपुर कांड में उनकी गिरफ्तारी ने देशभर के कांग्रेसियों को रिचार्ज किया। इसके बाद दलित बस्तियों में झाड़ू लगाकर, बनारस में पूजा पाठ से कार्यकर्ताओं को अलग संदेश देने की कोशिश की। पर असल मुद्दा और सवाल यही है क्या इससे यूपी में कांग्रेस के वोट प्रतिशत पर कोई असर पड़ेगा? क्या वोटर रीझेगा? जवाब यही मिल रहा है कि अभी के चुनाव में शायद नहीं। जानकारों का मानना है कि यूपी में कांग्रेस के वोट प्रतिशत पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। अगर आधा एक प्रतिशत का असर पड़ा तो सीधे भाजपा को लाभ मिलेगा और सपा को नुकसान हो सकता है। वहीं पंजाब में सिख वोटर का लाभ मिल सकता है और उत्तराखंड में केवल तराई के किसान बाहुल्य इलाकों में कांग्रेस लाभ ले सकती है। पंजाब और उत्तराखंड में कांग्रेस के पास नेता और कार्यकर्ता हैं, लेकिन यूपी में तो सबसे बड़ा संकट चेहरों और नेताओं का ही है। हालत यह हो गई है कि प्रियंका गांधी दिल्ली लौटती हैं तो पता चलता है फलां नेता पार्टी छोड़कर चला गया।
तमाम कोशिशों के बाद भी प्रियंका गांधी बचे हुए पार्टी के गिनती के नेताओं में भरोसा जगाने में सफल नहीं हो पा रही। भाजपा की कोशिश भी यही रहने वाली है कि वह सपा के मुकाबले कमजोर समझे जाने वाली कांग्रेस से टक्कर दिखाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस अगर चर्चाओं में आती है और कहीं मुकाबले में दिखती है तो सीधा सपा और बसपा के वोट बैंक पर असर पड़ेगा। राज्य सरकार के खिलाफ पड़ने वाला नकारात्मक वोट बंटा तो भाजपा को उसका लाभ मिल सकता है। लखीमपुर कांड और किसान आंदोलन से भाजपा की छवि पर असर पड़ा है, लेकिन योगी सरकार ने लखीमपुर कांड में किसान नेता राकेश टिकैत को जिस तरह से भरोसे में लेकर आंदोलन को ज्यादा बढ़ने से रोका, उससे भाजपा को राहत तो मिली, लेकिन कानून व्यवस्था का मुद्दा गर्मा गया। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने पूरे मामले में उतनी आक्रमकता नहीं दिखाई, जितना कांग्रेस ने दिखाई। प्रियंका की मदद के लिए राहुल गांधी आगे आए।
राहुल गांधी ने भी घटनास्थल का दौरा कर पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की थी। कांग्रेस ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि वह आंदोलन में लीड ले। उसने ली भी, लेकिन इस आंदोलन ने कहीं न कहीं विपक्षी एकता की भी पोल खोलकर रख दी। हालत यह रही कि 20 अगस्त को सोनिया गांधी के बुलावे पर बैठक में शामिल होने विपक्षी दलों के नेताओं ने अलग-अलग दौरे कर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की। टीएमसी जैसी पार्टी के नेता भी लखीमपुर खीरी का दौरा कर यूपी में अपनी जगह तलाशने में जुट गए। इसी टीएमसी के करीबी प्रशांत किशोर ने प्रियंका के दौरे पर सवाल उठाकर कांग्रेस को परेशानी में डाल दिया। हैरानी की बात यह है कि राहुल और प्रियंका खुद प्रशांत के सुझाव मान पार्टी में लाने की कोशिश में लगे थे। गोवा में कांग्रेस में सेंध लगाने का काम भी प्रशांत ने किया। हालांकि मामला सामने आने के बाद कांग्रेस ने प्रशांत को आड़े हाथों लिया, लेकिन इससे कांग्रेस का ही नुकसान हुआ। टीएमसी इसी कोशिश में लगी भी कि वह कांग्रेस का विकल्प बने। उत्तर प्रदेश में टीएमसी कांग्रेस के साथ आने वाली नहीं है। राहुल और प्रियंका गांधी के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आगामी चुनाव वाले राज्यों में पार्टी की स्थिति कैसे सुधारी जाए। यूपी में तो छोटे दल भी कांग्रेस से गठबंधन से परहेज कर रहे हैं। नेता पार्टी छोड़कर जा रहे है। प्रियंका ही अकेली कांग्रेस दिखाई दे रही हैं। संगठन खड़ा तो किया लेकिन दमदार नही है।प्रदेश अध्य्क्ष अजय कुमार कोई असर ही नहीं छोड़ पाए।
जानकारों का मानना है कि गांधी परिवार ने यूपी को बहुत हल्के में लिया। राहुल गांधी हारने के बाद यूपी छोड़ गए। सोनिया गांधी अब उम्रदराज होने के चलते कहीं आ जा नहीं सकती। प्रियंका ने यूपी की जिम्मेदारी ली, लेकिन पार्ट टाइम ही राजनीति की। नए चेहरों पर लगाया दांव बहुत सफल नहीं रहा। प्रियंका खुद मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनना चाहती, क्योंकि जीतने की कोई गारंटी नहीं है। पार्टी के पास अपना खुद का कोई चेहरा नहीं है जिस पर दांव खेला जाए। प्रियंका गांधी ट्वीट कर वीडियो डाल उस दिन चर्चा में रह सकती हैं, लेकिन सवाल यही है कि ऐसा करने से वोट मिलेंगे या नहीं। जानकारों का मानना है अगर प्रियंका ने अपने को लगातार चुनाव तक यूपी में ऐसे ही बनाए रखा तो वोट प्रतिशत बढ़ने का लाभ ही कांग्रेस को मिल सकता है।
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