India News (इंडिया न्यूज़), Prayagraj : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पाक्सो व SC/ST एक्ट के तहत कुछ हद तक झूठी एफआईआर दर्ज होती है। यह आरोपी को समाज में बेइज्जत करने और सरकार से मुआवजा लेने के लिए होते हैं। कोर्ट ने कहा यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ महिलाएं इस कानून का पैसे वसूलने के हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।
- कुछ मामले पैसे वसूली का हथियार बने, इसे रोका जाए
- केंद्र व राज्य झूठी एफआइआर दर्ज करने पर पीड़िता पर करें कार्रवाई
- सरकार से लिए मुआवजे की हो वापसी
केस झूठा पाए जाने पर पीड़िता के खिलाफ हो कार्यवाही
कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस संवेदनशील मामले में केस झूठा पाए जाने पर जांच के बाद पीड़िता के खिलाफ धारा 344 की कार्यवाही करें और सरकार से लिए गए धन की पीड़िता से वसूली की जाए। कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी को सशर्त अग्रिम जमानत पर 50 हजार रूपए के निजी मुचलके व दो प्रतिभूति लेकर गिरफ्तारी के समय रिहा करने का भी आदेश दिया है । यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने आजमगढ़, फूलपुर के अजय यादव की अग्रिम जमानत अर्जी को निस्तारित करते हुए दिया है।
बयान में था विरोधाभास
याची का कहना था कि कोई घटना हुई ही नहीं, उसने कोई अपराध किया ही नहीं। 8 साल पहले नाबालिक पीड़िता से शारीरिक संबंध बनाने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई। पीड़िता की प्राथमिकी व पुलिस को दिए धारा 161 के बयान में विरोधाभास है। एक में कहा वर्ष 2012 मे शारीरिक संबंध बनाए तो पुलिस को दिए बयान में कहा कि वर्ष 2013 मे शारीरिक संबंध बनाए। 2011 की घटना की FIR 11 मार्च 2019 को दर्ज कराई गई। 28 मार्च 19 को मेडिकल जांच में पीड़िता की आयु 18 वर्ष बताई गई।
बता दें कि सही अभियुक्त दयालु यादव को अग्रिम जमानत मिल चुकी है। याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उसे झूठा फंसाया गया है। जो अपराध कभी हुआ ही नहीं, उसके लिए उसे आरोपित किया गया है। जिसे कोर्ट ने दुर्भाग्यपूर्ण माना।
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