India News (इंडिया न्यूज),UP News: यह सुंदर मानस सरोवर की कन्या सरयू नदी बड़ी ही पवित्र है और कलियुग के पाप रूपी तिनकों व वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकने वाली है।

नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि॥

यानी, यह सुंदर मानस सरोवर की कन्या सरयू नदी बड़ी पवित्र है और कलियुग के पाप रूपी तिनकों और वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकने वाली है।

अयोध्या वालों की सरजूजी

बौद्ध ग्रंथों की सरभ। यूनान की सोलोमत्तिस। स्कंदपुराण की नेत्रदा। ऋग्वेद की सरयू। और अयोध्या वालों की सरजूजी। अगर दुनिया एक खूबसूरत पश्मीना शॉल है, तो वही अयोध्या के सिरहाने बहती सरयू उस पश्मीना पर हाथों से बुने गए संस्कार हैं। अवधी में कहावत है, सरयू में नित दूध बहत है, मूरख जाने पानी। मतलब इस नदी में दूध बहता है और मूरख ही इसे पानी कहेगा।

बाकी नदियों की तरह सरयू भी एक मां

पंडित सुशोभन मिश्रा तीस सालों से हर दिन गोस्वामी तुसलीदास घाट पर सरयू में स्नान करने आते हैं। वह कुछ देर यहीं बैठकर सरयू के सुकून को महसूस करते हैं। वो कहते हैं सरयू सत्य है। लोग इसकी मिट्टी तक साथ ले जाते हैं। और फिर अपने घरों की नींव, पौधों और परवरिश में उसे शामिल कर लेते हैं। देश की बाकी नदियों की तरह सरयू भी एक मां है।

40 साल हुए सरयूजी में नाव चलाते

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में रहने वालों की मां। उन केवट-मांझी-निषाद की मां जो इसके बूते ही जीते हैं। बीरचंद्र माझी को 40 साल हुए सरयूजी में नाव चलाते। उन्होंने नावों को स्टीमर और मोटर बोट में बदलते देखा है। कहते हैं अब तो अयोध्या में क्रूज भी आ रहा है। अंग्रेजों के समय अयोध्या से कोलकाता तक नाव से कारोबार होता था। राजघाट पर रहने वाले 82 साल के संयमलाल भी कोलकाता, अपनी बड़ी सी नाव पर चार ट्रक सामान लादकर ले जाते थे।

ज्यादा लोग उनकी नावों पर घूमने जाएंगे

अब सिर्फ 140 स्टीमर-मोटर बोट हैं अयोध्या में। जो तुलसीदास घाट, लक्ष्मण घाट, रामघाट, गुप्तारघाट और गोलाघाट से यात्रियों को घुमाती हैं। और इनके खिवैया कई बार एक दिन में 2-3 हजार कमा लेते हैं, फिर कई बार हफ्ता यूं ही सूखा निकल जाता है। वो कहते हैं, राम अब तक ठौर में नहीं थे, कोई अयोध्या पर ध्यान ही नहीं देता था। अब प्राणप्रतिष्ठा होगी तो वो भी काफी खुश हैं। क्योंकि ज्यादा दर्शन करनेवाले आएंगे तो ज्यादा लोग उनकी नावों पर घूमने जाएंगे।

लोग हमें तिलक-चंदन करते

लेकिन जो सम्मान आयोध्या के मांझी का है वो कहीं नहीं। अनिल मांझी थोड़ा शर्माते-संकुचाते, बड्डा सा टेडी-बियर बंधी अपनी लाल सीटों और गुलाबी तिरपाल वाली बोट पर बैठे-बैठे ही कहते हैं, ‘लोग हमें तिलक-चंदन करते हैं। गले लगा लेते हैं। पैर धोते हैं। पैर छूते भी हैं। और दान दक्षिणा दिए बिना नहीं जाते। कुछ लोग पायजेब-बिछिया, कपड़ा-लत्ता, गेहूं-मकई, बर्तन-कुकर दान देते हैं। वो क्या है ना, हमें वो राम को सरयू पार करवानेवाले केवट का रूप मानते हैं।

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