India News UP(इंडिया न्यूज़),UP News: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर धर्म और सनातन संस्कृति को लेकर टिप्पणी की है, जो चर्चा का विषय बन गई है। यह टिप्पणी उन्होंने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक कार्यक्रम के दौरान की। अपने संबोधन में सीएम योगी ने भगवान कृष्ण का जिक्र करते हुए कहा कि धर्म का अर्थ पलायन नहीं है, बल्कि यह साहस और कर्तव्य के पालन का प्रतीक है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हरियाणा की सरकार पवित्र सरस्वती नदी के पुनर्जीवन के लिए काम कर रही है। उन्होंने इस पहल को पवित्र कार्य बताते हुए सभी संतों और भक्तों से जुड़ने की अपील की। योगी ने कहा कि सनातन धर्म की विरासत से जुड़े पवित्र स्थलों का संरक्षण सरकार की प्राथमिकता में है और ‘डबल इंजन’ यानी राज्य और केंद्र की सरकारें मिलकर इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भगवान कृष्ण के संदर्भ में सीएम योगी ने कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व पर जोर दिया और कहा कि इस भूमि से भगवान कृष्ण ने धर्म का संदेश दिया था। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने इस धरती से सज्जनों की रक्षा और दुष्टों को खत्म करने का संदेश दिया था। योगी ने धर्म के बारे में स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म का मतलब कभी भी पलायन नहीं होता। किसी भी संत, महात्मा या ऋषि ने धर्म के नाम पर पलायन को नहीं अपनाया, बल्कि धर्म का पालन साहस और संकल्प के साथ किया।
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मुख्यमंत्री ने कहा कि धर्म के दो महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं – एक है सज्जन शक्ति का संरक्षण और दूसरा दुर्जन शक्ति का विनाश। उन्होंने कहा कि यह सिद्धांत हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी लागू होता है। यदि हम अपने जीवन में धर्म का पालन करें, तो समाज में अच्छे और बुरे के बीच संतुलन बनाए रखा जा सकता है। योगी आदित्यनाथ ने आदि शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए कहा कि केरल में जन्मे आदि शंकराचार्य ने पूरे देश में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने शास्त्रार्थ और जनजागरण के माध्यम से सनातन धर्म की पताका को मजबूत किया और इस अभियान को जीवित रखा।
उनका योगदान आज भी हमारी संस्कृति में देखने को मिलता है। योगी ने कहा कि विकास तभी सार्थक होगा जब हम अपनी विरासत का संरक्षण करेंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और धर्म का संरक्षण संस्कृत भाषा के जरिए ही संभव है। संस्कृत के प्रति अनुराग रखने वाले लोग ही इस दायित्व को निभा सकते हैं। इसके लिए आज के युवाओं में संस्कृत के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव होना जरूरी है।
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