Chipko Movement Started In Uttarakhand :
इंडिया न्यूज, देहरादून:
इन दिनों प्रदेश की राजधानी में चिपको आंदोलन का जिर्क हर जगह हो रहा है। इस बार भी पर्यावरण प्रमियों ने 1973 की तहर ही पेड़-पौधों को कटने से बचाने का प्रण किया हुआ है। दरअसल देहरादून में सड़क के विस्तारिकरण के लिए करीब 2200 हरे-भरे पेड़ों को काटे जाने की तैयारी की जा चुकी है। इसी के विरोध में पर्यावरण संगठन आंदोलन के राह पर निकल चुके हैं। स्कूली बच्चे भी इन संगठनों की इस मुहिम में बराबर के हिस्सेदार बन रहे हैं।
जोगीवाला से सहस्त्रधारा तक होना है सड़क का विस्तार (Chipko Movement Started In Uttarakhand)
राज्य सरकार और शासन की ओर से जोगीवाला से सहस्त्रधारा चौराहे तक रिंग रोड के विस्तारीकरण का काम शुरू नहीं हो पाया है, लेकिन उससे पहले ही पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले तमाम सामाजिक संगठन पेड़ों के काटे जाने के विरोध में चिपको आंदोलन पर उतर आए हैं। पर्यावरणविदों, सामाजिक संगठनों के साथ ही सोशल मीडिया में भी हरे-भरे पेड़ों की जिंदगी बचाने को लेकर मुहिम शुरू हो गई है।
पेड़ों को मौली बांधकर लिया रक्षा का संकल्प (Chipko Movement Started In Uttarakhand)
रविवार को पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी और कार्यकतार्ओं ने एक और चिपको आंदोलन की शुरूआत की। उन्होंने पेड़ों को मौली बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लिया।
आखिर क्या था चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आंदोलन था। यह उस समय के उत्तर प्रदेश के चमौली जिले में शुरू किया गया था। इस आंदोलन के द्वारा किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध किया था। यह आंदोलन 1973 में शुरू हुआ था और जल्द ही पूरे एक क्षेत्र में फैल गया था। उस समय आंदोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। आंदोलन में 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर सरकार के कदम को असफल कर दिया था। इस आंदोलन की मुख्य उपलब्धि ये रही कि इसने केंद्रीय राजनीति के एजेंडे में पर्यावरण को एक संघन मुद्दा बना दिया था। इस आंदोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी।