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Uttarakhan Assembly elections 2022 हरक अपने बिछाये जाल में फंसे, हरीश रावत खेमा वापसी के पक्ष में नही

Harpreet Singh • LAST UPDATED : January 17, 2022, 8:05 pm IST
अजीत मैंदोला, नई दिल्ली :

Uttarakhan Assembly elections 2022 : बीजेपी से निष्कासित नेता हरक सिंह रावत इस बार अपने बिछाये जाल में खुद ही फंस गए हैं। बीजेपी ने उनको इस तरह उलझाया कि वह जब तक कुछ समझ पाते उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया।

सूत्रों का कहना है बीजेपी ने नफा नुकसान का पूरा पता लगाने के बाद उन पर एक्शन लिया। रावत को निकालने से यह भी सन्देश गया है कि बीजेपी उत्तराखण्ड को लेकर निश्चिन्त है।
रावत अपने तीन दशक के राजनीतिक कैरियर में पहली बार इस तरह फंसे हैं कि दूसरे दल में सौदेबाजी फाइनल होने से पहले ही बाहर कर दिया गया। वर्ना जब भी बीजेपी व कांग्रेस में पाला बदल किया ठसक के साथ किया। अब कांग्रेस का राग जरूर अलाप रहे है, लेकिन वापसी की राह बहुत आसान नही है। रावत की पूरी उम्मीदें हरीश रावत की खिलाफत में लगे कांग्रेसी नेताओं से हैं।

सूत्रों की माने तो हरीश रावत खेमा हरक सिंह रावत की वापसी के खिलाफ Uttarakhan Assembly elections 2022

उत्तराखण्ड में पार्टी के चेहरे हरीश रावत ने सीधे नही, लेकिन आलाकमान को सन्देश दे दिया है कि इन्हें लेने से पहले 2016 को जरूर ध्यान में रखा जाये। सूत्रों की माने तो हरीश रावत खेमा हरक सिंह रावत की वापसी के खिलाफ है।क्योंकि हरक अगर कांग्रेस में शामिल किये जाते हैं तो हरीश रावत पार्टी में पूरी तरह से अलग थलग पड़ जाएंगे।प्रीतम सिंह खेमा मजबूत हो जाएगा।
दरअसल कांग्रेस में इस बार असल झगड़ा पुराने कांग्रेसियों को वापस लेने को लेकर ही रहा है। हरीश रावत को जब अभियान समिति का मुखिया बना कर उत्तराखण्ड वापस भेजा गया उन्होंने पहले अपने हिसाब से सन्गठन में बदलाव कराया। गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्य्क्ष बना प्रीतम सिंह को विधायक दल का नेता बनवा दिया। उसके बाद सबसे बड़ी शर्त यही रखी कि पुराने कांग्रेसियो को वापस नही लिया जायेगा।
यहीं से कांग्रेस दो गुटों में बंट गई। पूर्व प्रदेश अध्य्क्ष प्रीतम सिंह और उनके समर्थकों ने हरीश रावत को साइड करने के हिसाब से बीजेपी में दलबदल के लिये तैयार बैठे नेताओं को टटोला। सबसे पहले यशपाल आर्य और उनके बेटे की वापसी करवा दी। हरीश रावत गुट सजग हो गया। लेकिन इस बीच प्रभारी देवेंद्र यादव ने दिल्ली के नेताओं की शह पर उत्तराखण्ड में खुलकर दखल देना शुरू कर दिया।

हरीश रावत विरोधी गुट देवेंद्र के साथ

हरीश रावत विरोधी गुट देवेंद्र के साथ हो गया। दिल्ली से रणनीति बनाई गई रावत को साइड किया जाए। जिससे सरकार बनने पर अपनी पंसद के व्यक्ति को सीएम बनाया जा सके।
इसमें हरक सिंह रावत पूरी तरह से फिट बैठते थे।क्योंकि खनन से लेकर जमीनो के मामले के वे सही जानकार माने जाते हैं।आज उत्तराखण्ड में खनन माफिया,वन माफिया,जमीन माफिया ,शराब माफिया सब का बोलबाला है।
खैर हरक की वापसी की भनक लगते ही हरीश रावत खेमा सजग हो गया। रणनीति के तहत ही रावत ने ट्वीट कर दिल्ली वालों का खेल खराब कर दिया। हरीश रावत ने ट्वीट के बाद आलाकमान के साथ हुई बैठक में सब कुछ साफ कर दिया। उस समय हरीश रावत समर्थक उनके मीडिया सलाहकार सुरेंद्र अग्रवाल ने तो देवेंद्र यादव पर लेन देन के गंभीर आरोप लगा दिए थे।
आलाकमान की तरफ से उनकी अगुवाई में चुनाव लड़ने का आश्वासन मिलने के बाद हरीश रावत ने फिर अपने तरीके से फैसले लेने शुरू कर दिये। इसके चलते पूर्व प्रदेश अध्य्क्ष किशोर उपाध्याय को साइड करवाया गया। सूत्रों का कहना इस बीच रावत के बनाये प्रदेश अध्य्क्ष गोदियाल ने देवेंद्र यादव खेमे में इंट्री मार ली।
उधर हरक सिंह रावत इन नेताओं के संपर्क में बने रहे। सूत्रों का कहना है हरक सिंह दोनो तरफ सौदे बाजी करने लगे। बीजेपी अपने लोगों को टिकट ओर पंसदीदा सीट। उधर कांग्रेस में सीएम पद पर नजर।हरीश रावत विरोधी खेमा सीएम पद का भरोसा नही दे पा रहा था।
लेकिन कोशिश में लगा था हरक कांग्रेस में आ जाएं।जिससे हरीश रावत को बैलेंस किया जाये। लेकिन बीजेपी ने ऐसा दांव खेला हरक फंस गए। हालांकि निकाले जाने के बाद उन्होंने सहानभूति पाने के लिये रोते हुये खूब बयान दिये।साथ ही कांग्रेस की जय जय कार भी की।लेकिन इस बार वह उस तरह का दल बदल नही कर पाए जिससे सत्ताधारी पार्टी को कोई नुकसान होता।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी एक दम से स्वागत नही किया।सूत्रों का कहना है कांग्रेस ने उनसे कहा है कुछ विधायक साथ लाओ। उनके साथ कांग्रेस में जाने वाले  करीबी विधायकों ने आज गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की।बीजेपी इसी कोशिश में कोई विधायक और नेता साथ न जाये।
उधर कांग्रेस में हरीश रावत ओर उनके समर्थक नेता विरोध में है। हरीश रावत का विरोध हरक की वापसी रोक पायेगा इसको लेकर आशंका है।क्योंकि हरक पैसे के मामले में मजबूत हैं और कई सीटों का चुनाव खर्चा उठाने में सक्षम हैं।
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