मरने के बाद पिण्डदान से व्यक्ति का एक सूक्ष्म शरीर बनता है। इस शरीर में बसकर आत्मा को एक साल में इतनी दूरी तय करनी पड़ती है जितनी दूरी कोई भी व्यक्ति पूरे जीवन में नहीं चलता होगा।
इस दूरी को तय करने के लिए न तो आपको मोटर साईकल मिलने वाली है और न कार, यह दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है।
भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के संवाद पर आधारित पुराण गुरुड़ पुराण सहित विष्णु पुराण एवं कठोपनिषद् में भी इस बात का उल्लेख किया गया है।
गरुड़ पुराण के पहले अध्याय में लिखा है कि व्यक्ति के मृत्यु के बाद पापी मनुष्य को ढाई मुहूर्त में यानी लगभग 24 घंटे में यमदूत वायुमार्ग से यमलोक ले जाते हैं।
यमराज व्यक्ति के कर्मों का लेखा जोखा करते हैं इसके बाद यमदूत वापस व्यक्ति की आत्मा को लेकर पृथ्वी पर आते हैं।
13 दिनों में परिजनों द्वारा दिये गए पिण्डदान से व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर तैयार होता है। इस सूक्ष्म शरीर में बसकर आत्मा तेरहवीं के दिन यमलोक की यात्रा शुरू करता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक की दूरी 99 हजार योजन है यानी 11 लाख 99 हजार 988 किलोमीटर।