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महाकुंभ में शाही स्नान से धुल जाएंगे सारे पाप, जानिए कितनी पुरानी है परंपरा?

आज से प्रयागराज में महाकुंभ का मेला शुरू हो गया है और इसका समापन 26 फरवरी को होगा।

कुंभ मेला 12 साल बाद आता है, जिसका आयोजन भारत के चार शहर हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन में होता है।

लेकिन क्या आपको पता है इसे शाही स्नान क्यों कहा जाता है और इसका क्या महत्व है?

कुंभ के समय कुछ विशेष दिनों पर किए जाने वाले स्नान को शाही स्नान कहते है और सबसे पहले शाही स्नान की अनुमति नागा साधुओं के होती है।

वहीं इस दिन वो लोग हाथी, घोड़े और रथ पर बैठकर गंगा स्नान के लिए आते हैं, इस वजह से ही इसको शाही स्नान नाम दिया गया। जानकारों के मुतबिक, शाही स्नान की परंपरा वैदिक काल से चलती आ रही है।

इस बार कुंभ मेले में छह शाही स्नान होंगे, सबसे पहला शाही स्नान 13 जनवरी को होगा, दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी, तीसरा 29 जनवरी, चौथा 2 फरवरी, पांचवां 12 फरवरी और आखिरी स्नान 26 फरवरी को होगा।

शाही स्नान को बहुत खास माना गया है इस दिन संगम में डुबकी लगाने से कई गुणा पुण्य मिलता है, ऐसा कहा जाता है कि स्नान करने से न कि इस जन्म बल्कि पिछले जन्म के पाप भी खत्म हो जाते है।

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