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लोहा बेचने से कथावाचक तक ऐसा रहा राजन जी महाराज का सफर, धर्म क्या...कौनसा रामायण सही ? देखें दिलचस्प इंटरव्यू 

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सनातन धर्म का महापर्व महाकुंभ का मेला सज चुका है और इसमे बड़े-बड़े साधु-संत संगम में डुबगी लगा रहे हैं। ऐसे में जहां चारों और सनातन धर्म की चर्चा हो रही है।

वहीं जानें मानें महाराज राजन जी अपना इंटरव्यू देने आएं। इस इंटरव्य में राजन जी महाराज ने लोहा बेचने से कथावाचक बनने का सफर, धर्म क्या है, कौन सी रामायण सही? इसकी जानकारी दी। इंडिया न्यूज़ के सहयोगी राघवेंद्र नाथ मिश्र से बातचीत की।

इंटरव्य में राजन जी महाराज अपने जीवन यात्रा के बारे में बताते हैं कि 14-15 वर्ष पहले 2009 में सबकुछ छोड़कर कलकत्ता से महाराज श्री के पास गए उनसे प्रेरणा ली और उन्हीं के प्रेरणा से वह इस क्षेत्र में आएं और उन्हीं के शरण में बैठ कर कथा गाने लगा।

 इंटरव्‍यू में कथावाचक राजन महाराज कहते हैं कि मैं कथा का 'क' भी नहीं जानता था, ना कभी सपने में भी सोचा था कि कथावाचक बनेंगे हम तो डॉक्‍टर बनना चाहते थे लेकिन बाद में बिजनेस से जुड़ गए हमने भाई के साथ मिलकर फैक्‍ट्री चलाई हमारा कारोबार बहुत अच्‍छा चलता था।  

2006 में महाराज श्री की कलकत्‍ता में कथा आयोजित हुई इससे मेरी गुरु जी से और निकटता आ गई 2007 में मेरा विवाह हुआ विवाह के बाद भी महाराज श्री से मिलने बात करने का सिलसिला जारी रहा।

15 अगस्त 2008 में वह पहली बार गुरू से मिलने कानपूर गए थे अचानक महाराज श्री ने मुझसे कहा, 'तुम पर सरस्‍वती जी की कृपा है और ब्राह्मण शरीर है। तुम्‍हारा शरीर लोहे की चीजें बनाने के लिए नहीं बना है। तुम राम जी की कथा गाओ।' उस समय मैंने उनसे तो कुछ नहीं कहा।

इसके बाद जब भी फोन पर बात हो तो महाराज जी यही पूछते कि कुछ सोचा क्‍या। फिर कुछ दिन बाद रायपुर में उनसे मुलाकात हुई तो पूरी रात गुरु जी यही समझाते रहे कि बेटा ये जीवन दोबारा नहीं मिलेगा फैक्‍ट्री तो भैया भी चला लेंगे। तुम रामकथा पढ़ो।

फिर मैंने महाराज श्री की बात मानी और रोज उनकी कथा सुनना शुरू किया 20 दिन में मैंने रामकथा याद कर ली फिर एक दिन घर में जो सत्‍संग हॉल था, उसमें हारमोनियम-तबले की व्‍यवस्‍था की और माइक लगाकर घर के ही लोगों को बिठाकर रामकथा सुनानी शुरू की।

 पहले दिन 4 घंटे कथा की इसके बाद जब कथा पूरी तो परिजनों ने मेरी आरती उतारी फिर कथा के बाद मैंने अपने पिता से कहा कि अब मुझे कथा ही गानी है बाबूजी ने मुझे गले लगाया और बोले मेरे जीवन भर का पुण्‍य सफल हुआ बस, इसके बाद फिर यह नई यात्रा प्रारंभ हो गई।

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