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जानें बजट के 10 कठि‍न शब्‍दों का मतलब

बजट एस्टिमेट यानी बजट अनुमान: आने वाले वित्त वर्ष में केंद्र सरकार जो कमाई और खर्च का अनुमान बताती है, उसे बजट एस्टिमेट या बजट अनुमान कहते है.

फिस्कल डेफिसिट (राजकोषीय घाटा): अगर सरकार की कमाई कम हो रही है और खर्च ज्यादा हो रहा है तो इसका मतलब है सरकार घाटे में है, तो उसे फिस्कल डेफिसिट कहते हैं.

एक्चुअल (वास्तविक): केंद्र सरकार ने दो साल पहले वास्तव में जितना कमाया है और जितना खर्च किया है, उसे एक्चुअल कहा जाता है.

रिवाइज्ड एस्टिमेट (संशोधित अनुमान): पिछले फाइनेंशियल ईयर में सरकार ने कमाई और खर्च का जो अनुमान लगाया था, उसमें बदलाव करके पेश करती है, तो उसे रिवाइज्ड एस्टिमेट कहा जाता है.

फाइनेंस बिल (वित्त विधेयक): केंद्रीय बजट पेश होने के बाद संसद में आमतौर पर सरकार फाइनेंस बिल पेश करती है. इसमें सरकार की कमाई का ब्यौरा होता है.

एप्रोप्रिएशन बिल (विनियोग विधेयक): फाइनेंस बिल के साथ ही एप्रोप्रिएशन बिल भी पेश किया जाता है. इस बिल में केंद्र सरकार के खर्च की पूरी जानकरी होती है.

फिस्कल सरप्लस (राजकोषीय मुनाफा): अगर सरकार की कमाई ज्यादा हो रही है और उसके मुकाबले खर्च कम है, इसका मतलब है सरकार को फायदा हो रहा है. इसे फिस्कल सरप्लस कहते हैं.

रेवेन्यू डेफिसिट (राजस्व घाटा): कमाई का जो टारगेट सरकार ने सेट किया था, अगर उतनी कमाई नहीं हो पाती है तो उसे रेवेन्यू डेफिसिट कहते हैं.

डिसइन्वेस्टमेंट (विनिवेश): जब सरकार सरकारी कंपनियों की कुछ हिस्सेदारी बेचकर कमाई करती है, तो उसे डिसइन्वेस्टमेंट कहते हैं.

टैक्स (कर): यह दो तरह का होता है. डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स. डायरेक्ट टैक्स उसे कहते हैं जो सरकार आम आदमी से वसूलती है- जैसे- इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स. वहीं, इनडायरेक्ट टैक्स उसे कहा जाता है जो आम आदमी से इनडायरेक्टली लिया जाता है। जैसे- एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स और कस्टम ड्यूटी.

इनकम टैक्स (आयकर): आप जो भी कमाते हैं उस पर जो टैक्स लगता है उसे इनकम टैक्स कहते हैं. आसान भाषा में समझें तो जिस भी जगह से आपको आमदनी हो रही है और उस पर ब्याज मिल रहा है तो उस पर भी इनकम टैक्स देना होगा, अगर वो उस दायरे में आता है.

कॉर्पोरेट टैक्स: कॉर्पोरेट, कंपनियां या फर्म अपनी कमाई पर सरकार को टैक्स देती हैं. उसे कॉर्पोरेट टैक्स कहते हैं.

एक्साइज ड्यूटी (उत्पाद शुल्क): एक्साइज ड्यूटी (उत्पाद शुल्क): देश में तैयार होने वाले सामानों पर जो कर यानी टैक्स लगता है, उसे एक्साइज ड्यूटी कहते हैं.

कस्टम ड्यूटी (सीमा शुल्क): ऐसा सामान जो दूसरे देश से आ रहा है या दूसरे देश में भेजा जा रहा है, उस पर एक शुल्क लगाया जाता है जिसे सीमा शुल्क या कस्टम ड्यूटी कहते हैं.

कंटिन्जेंसी फंड (आकस्मिक कोष): इमरजेंसी की स्थिति में सरकार जिस फंड से पैसा निकालती है, उसे कंटिन्जेंसी फंड कहते हैं. हालांकि, इसमें से पैसा निकालने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी नहीं होती.

कंसोलिडेटेड फंड (समेकित कोष): सरकार जो भी कमाती है, उसे कंसोलिडेटेड फंड में रखा जाता है. इससे पैसा निकालने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी होती है.

रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (राजस्व व्यय):देश चलाने के लिए सरकार जो खर्च करती है उसे रेवेन्यू एक्सपेंडिचर कहते हैं. सरकार इसका इस्तेमाल सैलरी देने, कर्ज देने, सब्सिडी देने और राज्य सरकारों को ग्रांट देने में करती है.

कैपिटल एक्सपेंडिचर (पूंजीगत व्यय):  ऐसा खर्च जिससे सरकार को कमाई होती है, उसे कैपिटल एक्सपेंडिचर कहा जाता है. ये खर्च सरकार निवेश में या स्कूल- कॉलेज, सड़क, अस्पताल बनाने में इस्तेमाल करती है.

शॉर्ट टर्म गेन (अल्पकालिक पूंजीगत लाभ): जब कोई शेयर बाजार में एक साल से कम समय के लिए पैसा लगाकर उस पर मुनाफा कमाता है, तो उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहा जाता है.

लॉन्ग टर्म गेन (दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ):जब किसी शेयर बाजार में एक साल से ज्यादा वक्त तक पैसा लगाकर उस पर मुनाफा कमाते हैं तो उसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहा जाता है.

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