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चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की इस विधि से करें पूजा, जाने स्वरूप, शुभ मुहूर्त, मंत्र और महत्व

चैत्र नवरात्रि में मां भगवती के नौ दिव्य स्वरूपों की उपासना की जाती है। इन सबमें चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की उपासना विधि-विधान से की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 28 मार्च 2023, मंगलवार के दिन है।

वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सप्तमी तिथि के दिन देवी कालरात्रि की उपासना करने से भय, रोग एवं दोष दूर हो जाते हैं। साथ ही साधक के जीवन पर नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है। तो यहां जानिए चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन माता कालरात्रि का स्वरूप, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र और इसका महत्व।

माता कालरात्रि का स्वरूप

माता कालरात्रि की चार भुजाएं हैं और इनकी सवारी गर्दभ यानि गधा है। माता कालरात्रि के दाएं भुजा में अभय और वरद मुद्रा है। वहीं, बाएं भुजा में खड्ग और वज्र नामक अस्त्र विद्यमान हैं। मां कालरात्रि के उग्र रूप में शुभ शक्तियां आसीन हैं, इसलिए इन्हें शुभांकरी नाम से भी जाना जाता है।

चैत्र नवरात्रि माता कालरात्रि पूजा मुहूर्त

चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि प्रारंभ: 27 मार्च शाम 03 बजकर 57 मिनट से – चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि समाप्त: 28 मार्च शाम 05 बजकर 32 मिनट पर – सौभाग्य योग: 27 मार्च रात्रि 09 बजकर 50 मिनट से 28 मार्च रात्रि 10 बजे तक – द्विपुष्कर योग: प्रातः 06 बजकर 16 मिनट से दोपहर 04 बजकर 02 मिनट तक

माता कालरात्रि पूजा विधि

माता कालरात्रि की पूजा मध्यरात्रि यानी निशिता काल में करने से साधक को विशेष फल प्राप्त होता है। साथ ही सभी संकटों का नाश हो जाता है। ऐसा यदि संभव नहीं है तो सुबह जल्दी उठें और स्नान-ध्यान क व्रत का संकल्प लें। फिर माता कालरात्रि की प्रतिमा पर गंगाजल अर्पित करें। इसके बाद रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, मिष्ठान, सिंदूर इत्यादि से मां कालरात्रि की विधवत पूजा करें।

देवी कालरात्रि को लाल रंग बहुत प्रिय है। इसलिए हो सके तो माता कालरात्रि की पूजा के समय साधक लाल रंग का वस्त्र पहनें और उन्हें लाल पुष्प जैसे- लाल गुलाब या लाल गुड़हल का फूल अर्पित करें। पूजा के पश्चात मां कालरात्रि को पान सुपारी, गुड़ और हलवे का भोग अर्पित करें।

माता कालरात्रि पूजा मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता । लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी ।। वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा । वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ।।

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