यह बात लाहौर के एक इलाकें की है, जहां एक समय पर तवायफों का मुजरा देखने को मिलता था।
विभाजन के बाद नवाब, लखनऊ और हैदराबाद से हीरामंडी देखने आते थे।
मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर थे, जो 1970 में फिल्म "कासो" के लिए एक अभिनेत्री ढूंढ रहे थे।
ख्वाजा मजहर ने लाहौर की हीरामंडी में नरगिस को देखा और उन्हें अपनी फिल्म की हीरोइन बनाने का निर्णय लिया।
नरगिस की खूबसूरती से पूरा लाहौर प्रभावित था। वह पहले ही कई फिल्मों में काम कर चुकी थीं, जैसे फिल्म "इशरत" (1964)।
फिल्म "कासो" की शूटिंग के दौरान ख्वाजा मजहर को नरगिस से प्यार हो गया और उन्होंने शादी का प्रस्ताव दिया।
वहां के नियम के अनुसार, अगर कोई लड़का लड़की से शादी करता था, तो उसे उसकी "उचित कीमत" चुकानी पड़ती थी।
मजहर ने कीमत चुका कर नरगिस को अपने साथ ले लिया।
नरगिस की माँ को यह शादी पसंद नहीं आई और उन्होंने नरगिस को वापस बुला लिया।
नरगिस ने जब कोठे पर रहना शुरू किया, तो उसका दिल मजहर से हटने लगा।
एक दिन जब मजहर ने नरगिस से वापस चलने के लिए कहा और उसने मना कर दिया, तो गुस्से में आकर मजहर ने पिस्टल निकाल कर नरगिस को गोली मार दी।
गोली लगने से नरगिस की वही मौके पर ही मौत हो गई और ये सिलसिला उसकी सांसों की तरह वही खत्म हुआ लेकिन इसके किस्से आजतक जिंदा है।