कोरोना महामारी (Coronavirus) के भयानक मंजर को शायद ही कोई भुला पाया होगा। इस दौरान सभी ने वैक्सीन के महत्व को पहचाना था।
जन्म के साथ ही व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों से बचाने के लिए अलग-अलग तरह की वैक्सीन लगाई जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर वैक्सीन की शुरुआत कैसे हुई थी?
क्या आपको पता है कि दुनिया की सबसे पहली वैक्सीन कब और किसने बनाई थी? अगर नहीं, तो जानें वैक्सीन का दिलचस्प इतिहास
WHO की मानें तो 1400 से 1700 के दशक तक, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने जानबूझकर स्वस्थ लोगों को चेचक यानी स्मॉलपॉक्स के संपर्क में लाकर बीमारी को रोकने का प्रयास किया। ये प्रथाएं 200 ईसा पूर्व से ही चल रही थीं।
वेरियोलेशन, जिसे इनोक्यूलेशन के नाम से भी जाना जाता है। यह पदार्थ त्वचा को इंजेक्ट कर या नाक के जरिए सांस लेकर लोगों तक पहुंचाया जाता है।
इससे यह उम्मीद की जाती थी कि व्यक्ति को स्मॉलपॉक्स जैसा माइल्ड प्रोटेक्टिव इन्फेक्शन होगा, जो जानलेवा नहीं होगा। इस प्रक्रिया का मकसद स्मॉलपॉक्स के खिलाफ इम्युनिटी बिल्ड करना था।
इसके कई साल बाद 1796 में, इंग्लिश फिजिशियन एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि काऊपॉक्स (एक बोवाइन वायरस, जो मवेशियों से इंसानों तक फैलता है) से पीड़ित लोग स्मॉल पॉक्स से बच सकते हैं।
इसके लिए उन्होंने काऊ पॉक्स से संक्रमित एक दूधवाले के हाथ में हुए घाव से पस जमा किया।
इसके बाद मई 1796 में इस जमा किए गए पस को जेनर ने 8 साल के जेम्स फिप्स को टीके के तौर पर लगाया।
इसके परिमाणस्वरूप वह कुछ दिनों तक बीमार रहा और कुछ दिनों बाद फिप्स पूरी तरह से रिकवर हो गए।
वैक्सीन देने को दो महीने बाद जुलाई 1796 में, जेनर ने फिप्स की प्रतिरोधक क्षमता को टेस्ट करने के लिए स्मॉलपॉक्स से पीड़ित एक व्यक्ति के घाव से निकले पस के साथ फिप्स को टीका लगाया।
इसके बाद भी फिप्स बिल्कुल स्वस्थ थे और इस तरह वह चेचक यानी स्मॉलपॉक्स के खिलाफ टीका लगवाने वाले पहले इंसान बन गए हैं।
गाय के लिए इस्तेमाल होने वाले लैटिन शब्द वैक्सा से ही टीके को अंग्रेजी नाम वैक्सीन दिया गया।
भारत में इस वैक्सीन की पहली डोज मई 1802 में आई। तीन साल की बच्ची अन्ना डस्टहॉल 14 जून, 1802 को स्मॉलपॉक्स का टीका पाने वाली भारत की पहली व्यक्ति बनीं।