क्यों राजस्थान में एक दिन बाद मनाई जाती हैं जन्माष्टमी बड़े ही अटपटे हैं यहां के रीति रिवाज
Prachi Jain
राजस्थान के एक प्राचीन श्री दूधाधारी गोपाल मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व 27 अगस्त को मनाया जाएगा, जो निम्बार्क सम्प्रदाय के तर्ज पर आयोजित होता है।
इस मंदिर में जन्माष्टमी के दूसरे दिन, यानी 28 अगस्त को नंद महोत्सव के साथ मलखंभ प्रतियोगिता होती हैं जिसे कृष्ण जन्मोत्सव की ख़ुशी में मनाया जाता हैं।
दूधाधारी मंदिर की स्थापना संवत 1609 में बसंत पंचमी के दिन हुई थी, और यह निम्बार्क सम्प्रदाय द्वारा निर्मित है।
जन्माष्टमी महोत्सव के दौरान वृंदावन से आए कलाकार झांकियों और फूलों से मंदिर को सजाते हैं, जिससे यह आयोजन और भी भव्य हो जाता है।
मलखंभ प्रतियोगिता में भक्त ग्वालों की वेशभूषा धारण कर भाग लेते हैं, जिसमें भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, और शाहपुरा सहित आसपास के लोग शामिल होते हैं।
प्रतियोगिता में एक खंभ पर मुल्तानी मिट्टी और तेल का मिश्रण लगाया जाता है, जिस पर भक्त पानी की बौछार के बीच अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हैं।
मलखंभ के शिखर पर लगी चार पोटलियों को हासिल करने वाले व्यक्ति को विजेता घोषित करते हैं, जो इस कठिन प्रतियोगिता खुद के कौशल और भक्ति का प्रदर्शन करता है।