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क्यों नहीं होती एक ही गोत्र में शादी? हकीकत जान उड़ जाएंगे होश!

सनातन धर्म में गोत्र की परंपरा का विशेष महत्व है। गोत्र प्रणाली इसीलिए शुरू हुई ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक ही वंश में आपस में विवाह न हो।

गोत्र का अर्थ है वह वंश या कुल जिसके अंतर्गत कोई व्यक्ति आता है और यह प्रणाली सप्तऋषियों से संबंधित है।

कुल सात गोत्र होते हैं कश्यप, वशिष्ठ, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, भरद्वाज और विश्वामित्र।  प्रत्येक हिंदू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज के रूप में जाना जाता है और उनका गोत्र उनके पूर्वज ऋषि से जुड़ा होता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लड़का-लड़की का एक गोत्र होने से मतलब यह है कि उनके पूर्वज एक ही हैं। इस कारण वे आपस में भाई-बहन माने जाते हैं। 

विवाह के समय के समय माता का गोत्र, पिता का गोत्र और दादी का गोत्र छोड़कर बाकी किसी भी गोत्र में विवाह किया जा सकता है। 

यह परंपरा इसलिए बनाई गई ताकि खून के रिश्तों में विवाह से बचा जा सके और संतानों में आनुवंशिक दोषों की संभावना न हो।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, एक ही गोत्र में विवाह से उत्पन्न संतान में मानसिक और शारीरिक विकृतियां हो सकती हैं। इसके अलावा, यह परिवार और समाज में भी अशांति का कारण बन सकता है।

विज्ञान भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि एक ही गोत्र या वंश में विवाह करने से आनुवंशिक दोष उत्पन्न हो सकते हैं।

गोत्र प्रणाली का उद्देश्य न केवल वैवाहिक जीवन को सफल बनाना है, बल्कि समाज में आनुवंशिक दोषों को रोकना भी है। यह परंपरा हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता और वैज्ञानिक सोच का उदाहरण है। 

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