अरुण कुमार कैहरबा
International Happiness Day: खुशी एक मानसिक दशा है, लेकिन यह राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक स्थितियों पर निर्भर करती है। लोगों द्वारा चुनी गई अच्छी सरकारों द्वारा यदि जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सडक़ आदि की बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर दी जाएं। महंगाई पर नियंत्रण लगाया जाए और संकट के समय सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए, तो लोगों की प्रसन्नता का स्तर अपने आप बढ़ जाएगा।
समाज में लिंग, जाति, सम्प्रदाय, रंग, भाषा, बोली व क्षेत्र आदि के आधार पर कोई भेदभाव ना हो। सामाजिक भाईचारा, सद्भावना और सहयोग का वातावरण हो। सभी को आगे बढ़ने के अवसर मिलें। आर्थिक रूप से सम्पन्न वर्ग निर्धन लोगों का सहयोग करे। सरकार ऐसी नीतियां बनाए, जिससे आर्थिक विषमता बढ़ने ना पाए। कोई भूखा ना रहे। सभी को रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ मान-सम्मान भी मिले तो भी लोग खुशहाली का जीवन जी पाएंगे।
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खुशहाली धरती पर रहने वाले प्रत्येक मनुष्य का बुनियादी अधिकार है। यह अधिकार सुनिश्चित करने के लिए देश व दुनिया में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहे लोगों को कार्य करना चाहिए।
दुनिया के देशों में प्रसन्नता का मापन करके गत कई वर्षों से विश्व खुशहाली सूचकांक तैयार तैयार किया जा रहा है। वर्ष 2022 में गत शुक्रवार को जारी की गई रिपोर्ट में फिनलैंड को लगातार पांचवें साल खुशहाली के मामले में पहला स्थान मिला है।
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वहीं, तालिबानी शासन से त्रस्त अफगानिस्तान सबसे निचले पायदान पर रहा है। 146 देशों में भारत ने 136 वां स्थान पाया है। हालांकि गत वर्ष की रिपोर्ट की तुलना में तीन अंकों का सुधार हुआ है। पिछली बार 149 में से भारत का स्थान 139वां था। इस बार भी हम नीचे के दस देशों से तो बाहर हैं, लेकिन एकदम 11वें स्थान पर हैं। ऊपरी पायदान में फिनलैंड के बाद डेनमार्क, आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, स्वीडन, नार्वे, इजरायल, न्यूजीलैंड क्रमश: पहले दस स्थानों पर रहे हैं। इन देशों में प्रसन्नता का स्तर ऊंचा होना अध्ययन का विषय होना चाहिए।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में भारत की गिनती होती है। लेकिन क्या वजह है कि खुशी के मामले में हम कहीं पीछे खड़े हैं। यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मालदीव, इंडोनेशिया, चीन सहित सभी देश हमसे आगे हैं। भारत की जनता खुश क्यों नहीं है।
इसका विशेषण किया जाए तो हम पाते हैं कि यहां गैर-बराबरी दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से बढ़ रही है। गरीब और अमीर में जमीन-आसमान का अंतर है। गरीब के पास खाने को रोटी, तन ढ़ांपने के लिए कपड़ा और रहने के लिए घर तक नहीं है। दूसरी तरफ बड़े-बड़े घरानों की पूंजी कोरोना जैसी वैश्विक संकट में भी बढ़ती ही गई।
गरीब की मदद करने वाली सरकारी योजनाओं के ढिंढोरा खूब पीटे गए हैं, लेकिन वे पात्र की मदद करने की बजाय अपात्र की मदद ज्यादा करती हैं। भ्रष्टाचार दीमक की तरह आम लोगों के लाभ को चाट रहा है। बीपीएल, अन्त्योदय, आवास योजना, मनरेगा सहित अनेक योजनाओं में भ्रष्टाचार किसी से छिपा हुआ नहीं है।
ऐसे में आम आदमी दुखी रहता है। ऐसे में नशे का फैलाव हो रहा है। अपराध दिनों-दिन बढ़ रहे हैं। जब तक सभी लोगों को बुनियादी सुविधाएं ही नहीं मिलेंगे, तब तक प्रसन्नता की कल्पना नहीं की जा सकती।
आजादी के बाद जनकल्याणकारी राज्य की जो कल्पना स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने की थी। उस पर चलने की बजाय अब नए-नए नाम से निजीकरण और उदारीकरण की नीतियों को अपनाया जा रहा है। शिक्षा लगातार महंगी होती गई है। भारत की महंगी पढ़ाई के कारण ही अकेले यूक्रेन में 20 हजार से अधिक युवा पढ़ाई करने के लिए गए हुए थे।
इसी तरह से अन्य देशों में भी जाने वाली प्रतिभाओं की संख्या का पता लगे तो हम हैरान हो जाएंगे। देश में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल कोरोना के संकट में हम देख ही चुके हैं। गंभीर बीमारी की स्थिति में इलाज करवाने के लिए सब कुछ गिरवी रखना पड़ता है। ऐसे में बड़ी आबादी तो यह भी नहीं जानती कि खुशी किस चिडिय़ा का नाम है।
संसद व राज्य विधानसभाओं में जनता द्वारा चुने गए नुमाइंदों के वेतन-भत्ते हर साल बढ़ते हैं। लेकिन वहीं कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को समाप्त करके एनपीएस लागू कर दिया गया। वर्षों तक सरकारी सेवा में रहने वाले सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन के अधिकार से वंचित कर दिए गए हैं। स्थाई रोजगार देने की बजाय युवाओं को अनुबंध व ठेका प्रथा के तहत रोजगार देने की योजनाएं बनाई जा रही हैं।
ऐसे में निराश युवाओं में दूसरे देशों में जाने की होड़ लगी है। भारत के बहुत बड़े क्षेत्र में रहने वाले लोगों रीति रिवाज और परंपराएं भी खुशी में बाधक हैं। लोग खुशी के लिए नहीं जीते, परंपराओं को ढ़ोने के लिए जीते हैं। घर व समाज में उत्सव के पलों का अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि जब घर में शहनाई बज रही होती है, ढोल-नगाड़े बज रहे होते हैं और लोग नृत्य कर रहे होते हैं, तब भी उस समारोह के आयोजक अनेक प्रकार के तनावों से जूझ रहे होते हैं।
विवाह समारोह की बात करें तो यहां पर दहेज का दानव आज भी समारोह की सारी खुशियों पर ग्रहण लगाए हुए है। बच्चों विशेषकर लड़कियों के विवाह के लिए जन्म से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। रुपये इकट्ठे करने शुरू हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे लोग आनंद के लिए जीने का लक्ष्य रखते ही नहीं, विवाहों के लिए जीते हैं। बच्चों की पढ़ाई खर्चीली होते जाने की वजह से भी माता-पिता के लिए धन-संचय की मजबूरी बढ़ती जा रही है।
When is International Happiness Day celebrated: खुशहाली सूचकांक देशों के लिए दिशा सूचक है। नीति-निर्माताओं के लिए इसमें बहुत बड़ी सीख है। सरकारी स्तर पर भी राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक बनाया जाना चाहिए और इस पर नजर रखनी चाहिए। 20 मार्च को हर वर्ष विश्व खुशहाली दिवस मनाया जाता है।
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When did International Day of Happiness start: 2012 में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के जरिये इसकी शुरुआत की गई थी। यह दिवस जनता की खुशियों व खुशहाली को नीति निर्माण के केन्द्र में रखने पर बल देता है। हर मनुष्य जीवन में खुश रहने के लिए तमाम उपाय करता है। लेकिन दुखी रहने की आदत की वजह से भी वह दुख भोगता है।
Theme for Happiness Day 2022: स्वार्थपरता दुख का बड़ा कारण है। 2022 में खुशहाली दिवस के लिए ‘शांत रहें, बुद्धिमान रहें व दयालु बनें’ विषय रखा गया है। यह विषय हमें अपनी आदतें बदलने का संदेश देता है। अक्सर हम मुश्किल हालात में शांत रहने से चूक जाते हैं। बुद्धिमत्ता के साथ मुश्किलों का सामना नहीं कर पाते हैं और दूसरों के प्रति निष्ठुर बने रहते हैं। यहां तक कि जरूरतमंद के प्रति भी मदद का हाथ नहीं बढ़ाते हैं। यही दुखों का कारण है। खुशी पर लगा ताला हम खोल सकते हैं। एक कदम आगे आएं, लोगों को खुश करें और खुश रहें।
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