संबंधित खबरें
गूगल मैप्स के सहारे कार में सफर कर रहे थे 3 लोग, अधूरे फ्लाईओवर में जा घुसी गाड़ी, फिर जो हुआ…सुनकर मुंह को आ जाएगा कलेजा
‘ये मुगलों का दौर नहीं…’, संभल जामा मस्जिद सर्वे पर ये क्या बोल गए BJP प्रवक्ता? सुनकर तिलमिला उठे मुस्लिम
शरद पवार, प्रियंका चतुर्वेदी और संजय राउत का क्या होगा राजनीतिक भविष्य? दोबारा राज्यसभा जाने के रास्ते हुए बंद
60 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी फिर भी कैसे जीत गई BJP? सपा उम्मीदवार की जमानत हो गई जब्त, अखिलेश नोंचने लगे अपना माथा
बाला साहेब की विरासत को मिट्टी में मिला गए उद्धव ठाकरे, कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन पर अपनी हिंदूवादी विचारधारा को लगाया दांव पर, क्या अब कर पाएंगे वापसी?
‘मां मैं जल्द आ जाऊंगा…’, मौत से दो दिन पहले अपनी बूढी से कांस्टेबल ने किया था ये वादा, लेकिन दे गया दगा
क्या है अखाड़ों का इतिहास और परंपरा
इंडिया न्यूज, प्रयागराज:
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध मौत सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। आज चहुंओर महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध मौत का मामला गूंज रहा है। उनका शव प्रयागराज के उनके बाघंबरी मठ में ही फंदे से लटका मिला। उनकी मौत को लेकर अलग-अलग एंगर सामने आ रहे हैं।
आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं सदी में 13 अखाड़े बनाए गए थे। उक्त अखाड़ों का गठन हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए किया गया था। उस दौर में वैदिक संस्कृति और यज्ञ परंपरा संकट में थी, क्योंकि बौद्ध धर्म तेजी से भारत में फैल रहा था और बौद्ध धर्म में यज्ञ और वैदिक परंपराओं का निषेध था। मूलत: धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की एक सेना की तर्ज पर ही अखाड़ों को तैयार किया गया था। नासिक कुंभ को छोड़कर बाकी कुंभ मेलों में सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते हैं। नासिक के कुंभ में वैष्णव अखाड़े नासिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं।
अखाड़ों की अपनी व्यवस्थाएं होती हैं, लेकिन आदि शंकराचार्य ने इन 10 अखाड़ों (शैव और उदासीन) की व्यवस्था चार शंकराचार्य पीठों के अधीन की है। इन अखाड़ों की कमान शंकराचार्यों के पास होती है। बता दें कि अखाड़ों की व्यवस्था के लिए कमेटी के चुनाव होते हैं, लेकिन अखाड़ा प्रमुख का पद अलग होता है, जो अखाड़ों की अगुवाई करता है। 10 शैव अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर का पद सबसे बड़ा और मुख्य होता है, ये अखाड़े के प्रमुख आचार्य होते हैं, जिनके मार्गदर्शन में अखाड़े काम करते हैं।
शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े हैं। इन अखाड़ों का नाम जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, महानिवार्णी अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है।
अखाड़ा शब्द की बात करें तो यह शब्द कुश्ती से जुड़ा हुआ है, लेकिन जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। पहले आश्रमों के अखाड़ों को साधुओं का जत्था कहा जाता था। बता दें कि अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। हालांकि, कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ‘अखाड़ा’ शब्द का आगमन हुआ है।
वैसे अखाड़ों में साधुओं के शामिल होने की प्रक्रिया आसान नहीं होती। शैव परंपरा में नागा साधु बनने के लिए अखाड़े को काफी समय देना होता है। इसके लिए अखाड़ों की अपनी अलग व्यवस्था है। अखाड़े में एकदम आने पर किसी को दीक्षा नहीं दी जाती। अगर कोई साधु बनने का इच्छुक है तो उसे कुछ समय अखाड़े में रखकर ही अपनी सेवाएं देनी होती है। साधुओं के साथ रहकर उनकी सेवा और इसी दौरान अपने गुरु को चुनना होता है। सेवा का समय 6 महीने से लेकर 6 साल तक भी हो सकता है। इस दौरान अखाड़ा के लिए व्यक्ति को अपने सांसारिक जीवन का त्याग करना पड़ता है, खुद का पिंडदान करना होता है। करीब 36 से 48 घंटे की दीक्षा प्रक्रिया के बाद उसे नए नाम के साथ अखाड़े में एंट्री दी जाती है।
वहीं ये भी बता दें कि अखाड़े के साधु-संतों के मुताबिक अखाड़े लोकतंत्र से ही चलते हैं। जूना अखाड़े में छह साल में चुनाव होते हैं। कमेटी बदल दी जाती है। हर बार नए को चुनते हैं, यह इसलिए ताकि सभी को नेतृत्व का मौका मिल सकें।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.