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India has a Chance to Become a Big Player भारत के पास बड़ा खिलाड़ी बनने का अवसर

India News Editor • LAST UPDATED : September 27, 2021, 2:58 pm IST
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India has a Chance to Become a Big Player भारत के पास बड़ा खिलाड़ी बनने का अवसर

modi n biden

मोदी की अमेरिका यात्रा और क्वाड से आखिर क्यों बौखला रहा है चीन और पाकिस्तान?

विजय दर्डा
चेयरमैन, एडिटोरियल बोर्ड
लोकमत समूह

यदि आपने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात की लाइव तस्वीरें देखी हों तो आपने मोदीजी की बॉडी लैंग्वेज पर जरूर गौर किया होगा। उनके सधे हुए वक्तव्यों पर भी ध्यान दिया होगा। यह महसूस हो रहा था कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता आमने-सामने बैठे हैं और बातचीत बराबरी पर हो रही है। दरअसल वक्त की हकीकत को जो बाइडेन समझ रहे हैं और मोदीजी को पता है कि तमाम चुनौतियों के बीच भारत के लिए यह बड़ा अवसर भी है। कूटनीतिक चाल यदि सही तरीके से चली जाए तो हवा के रुख को अनुकूल बनाया जा सकता है।

कूटनीति बड़ी उलझी हुई चीज होती है। जो दिखता है, वह होता नहीं है और जो होता है, वह दिखता नहीं है। दोनों नेता एक-दूसरे की तारीफों के पुल बांध रहे थे लेकिन दोनों के मन में अलग-अलग विषय कौंध रहे होंगे। भारत की सबसे बड़ी चिंता इस वक्त अफगानिस्तान है क्योंकि वहां पाकिस्तान अपना खेल दिखा रहा है और चीन अपनी चाल चल रहा है। भारत जानता है कि अफगानिस्तान की सरजमीं का उपयोग भारत के खिलाफ पाकिस्तान करेगा ही करेगा!
भारत चाहता है कि इसे रोकने के लिए अमेरिका अपने दबाव का उपयोग करे। दूसरी तरफ अमेरिका की चिंता अफगानिस्तान से ज्यादा इस वक्त चीन और ईरान है क्योंकि चीन उसकी शीर्ष सत्ता को चुनौती दे रहा है और ईरान लगातार आंखें तरेर रहा है। कहते तो यह भी हैं कि अफगानिस्तान से निकलते वक्त यह सौदा भी हुआ है कि ईरान पर अफगानिस्तान की नजर रहेगी। बहरहाल, सत्तर वर्षों तक पाकिस्तान को पालने-पोसने वाले अमेरिका को पता है कि चीन के खिलाफ उसकी जंग में यदि कोई सहायक हो सकता है तो वह भारत है। भारत बड़ा देश है। बड़ा बाजार है और बड़ी ताकत भी है। अमेरिका देख रहा है कि पाकिस्तान तो पूरी तरह चीन की गोद में जा बैठा है।

अमेरिका के सामने स्पष्ट हो चुका है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर अरबों-खरबों डॉलर डकार कर भी पाक ने आतंकियों का ही साथ दिया है। ओसामा बिन लादेन को अपने घर में छिपाया। कहने का आशय यह है कि इस वक्त अमेरिका को भारत की सबसे ज्यादा जरूरत है। भारत दुनिया का बड़ा बाजार है और इस बाजार को शक्तिशाली बनाकर चीन की आर्थिक ताकत को कमजोर किया जा सकता है। बहुत सी अमेरिकी कंपनियां इस वक्त चीन में हैं और उन्हें भारत की ओर यदि मोड़ दिया जाए तो निश्चय ही चीन के आर्थिक साम्राज्यवाद को रोका जा सकता है। इस तरह की संभावना और किसी देश में नहीं है।भारत यह जानता है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में उसे भी अमेरिका की जरूरत है लेकिन कूटनीति का तकाजा है कि फूंक-फूंक कर कदम रखा जाए इसीलिए दोनों देश भविष्य के बारे में स्पष्ट कुछ भी कहने से बच रहे हैं। यहां आपके मन में यह सवाल पैदा हो सकता है कि अमेरिका को भारत की ज्यादा जरूरत है या फिर भारत को अमेरिका की? मेरी नजर में दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है लेकिन ज्यादा जरूरत अमेरिका को है क्योंकि उसकी सत्ता को चुनौती मिल रही है और जो बाइडेन का ग्राफ घरेलू स्तर पर तेजी से गिर रहा है। अफगानिस्तान से अचानक भाग खड़े होने के कारण दुनिया के स्तर पर अमेरिका की विश्वसनीयता कमजोर हुई है। उसकी प्रतिष्ठा को जो ठेस लगी है उसकी भरपाई में बड़ा वक्त लगेगा। इसीलिए भारत में भी यह सवाल पूछा जा रहा है कि अमेरिका पर आखिर कितना भरोसा किया जाए? और क्या अमेरिका से दोस्ती की कीमत पर रूस को खफा होने दिया जाए? मुझे लगता है कि रूस हमारा बहुत पुराना और भरोसेमंद साथी है। उसे दूर नहीं होने देना चाहिए। हमें किसी की गोद में बिल्कुल नहीं बैठना चाहिए। जहां तक अमेरिका, जापान, भारत और आॅस्ट्रेलिया के ह्यक्वाड्रिलैटरल डायलॉगह्ण यानी ह्यक्वाडह्ण का सवाल है तो मैं उसे सशक्त करने की पहल का स्वागत करता हूं क्योंकि इससे हमारे इलाके में चीन के साम्राज्यवाद पर रोक लगाने में निश्चय ही मदद मिलेगी।

हम उम्मीद कर रहे हैं कि इससे हमें सैन्य तकनीकी क्षेत्र में भी मदद मिलनी चाहिए। चीन का मुकाबला करना है तो हमें नई तकनीक हर हाल में चाहिए। भारतीय कूटनीति इस मामले में सही दिशा में चल रही है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम आर्थिक तौर पर जितना सक्षम होंगे, जंग का मैदान उतना ही दूर होता जाएगा। मौजूदा दौर में उसी की पूछ-परख होती है जिसके पास धन, ज्ञान और विज्ञान है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मोदीजी ने अपनी अमेरिका यात्र के दौरान पांच बड़ी कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) से मुलाकात की ताकि उन्हें भारत की ओर आकर्षित किया जा सके। इनमें एडोब के शांतनु नारायणन, जनरल एटॉमिक्स के विवेक लाल, क्वालकॉम के क्रिस्टियानो अमोन, फर्स्ट सोलर के मार्क विडमान और ब्लैक स्टोन के स्टीफन श्वार्जमैन शामिल हैं। शांतनु और विवेक भारतीय मूल के हैं। आपको बता दें कि एडोब आईटी और डिजिटल क्षेत्र की बहुत महत्वपूर्ण कंपनी है। जनरल एटॉमिक्स सैन्य ड्रोन निमार्ता कंपनी है और भारत बहुत से ड्रोन खरीदने वाला है।

क्वालकॉम सॉफ्टवेयर, सेमीकंडक्टर, वायरलेस और फर्स्ट सोलर ऊर्जा क्षेत्र की महारथी कंपनी है। ये हमारे साथ आ जाएं तो भारत के लिए यह एक लंबी छलांग होगी। लेकिन इस छलांग के लिए सूक्ष्म आकलन बहुत जरूरी है। हम केवल अमेरिका के मोह में न पड़ें बल्कि इस बात का विश्लेषण करें कि हमारे लिए क्या जरूरी है! वैश्विक राजनीति शतरंज के खेल की तरह है। हर चाल से कई चालें जुड़ी होती हैं लेकिन एक सटीक चाल सामने वाले को मात देने के लिए काफी होती है।

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