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इंडिया न्यूज़ | Monkeypox : मंकीपॉक्स ने दुनियाभर में अपनी दहशत फैला रखी है। कोरोना के बाद यह एक नए किस्म का वायरस है जो जानलेवा साबित हो सकता है। दुनियाभर में मंकीपॉक्स के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं। वहीं इस बीच सोवियत संघ के पूर्व वैज्ञानिक कर्नल कनाट अलीबकोव का चौंकाने वाला बयान सामने आया है। पूर्व वैज्ञानिक का कहना है कि रूस 1990 के दौरान मंकीपॉक्स को एक बायो हथियार के तौर पर प्रयोग करना चाहता था। मंकीपाक्स में शरीर पर दाने उभर जाते हैं। जिसे ठीक होने में दो से तीन सप्ताह का समय लग जाता है।
#Monkeypox has so far been reported from 11 countries that normally don't have the disease. WHO is working with these countries & others to expand surveillance, and provide guidance.
There are about 80 confirmed cases, and 50 pending investigations. More likely to be reported. pic.twitter.com/YQ3pVJVNVQ— World Health Organization (WHO) (@WHO) May 20, 2022
एक तरफ जहां पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। उसी बीच मंकीपॉक्स ने दुनियाभर के देशों में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। मंकीपॉक्स के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस समय मंकीपॉक्स फ्रांस, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, स्वीडन, यूके, फ्रांस, इटली, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा और अमेरिका समेत कई देशों में तेजी से बढ़ रहा है। भारत में अभी तक मंकीपॉक्स का कोई केस नहीं मिला है। भारतीय सरकार ने मंकीपॉक्स पर लगााम लगाने के लिए सख्ती बढ़ा दी है।
पूरी दुनिया में कहर मचा रहे मंकीपॉक्स के बारे में एक नई बात प्रचलित हो रही है। इस समय दुनिया के कई देशों में मंकीपॉक्स के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं। मंकीपॉक्स के बारे में पूर्व सोवियत वैज्ञानिक ने चौंकाने वाला खुलाासा किया है। पूर्व सोवियत वैज्ञानिक कर्नल कनाट अलीबकोव ने इंटरव्यू के दौरान रूस और मंकीपॉक्स को आपस में जोड़ा है। पूर्व वैज्ञानिक का कहना है कि 1990 में सोवियत संघ ने मंकीपॉक्स् को एक बायो वैपन के तौर पर प्रयोग करने की तैयार कर ली थी।
उन्होंने बताया कि सोवियत संघ के टूटने से पहले तक वह बायोलॉजिकल हथियार प्रोग्राम के डिप्टी हेड थे। अलीबकोव के इस बयान के बाद से दुनियाभर में हलचल मच गई है कि क्या मंकीपॉक्स रूस का बायो लॉजिकल वैपन है?
बायोलॉजिकल हथियार एक तरह का बैक्टिरिया, फंगस, वायरस, हो सकता है। जो काफी तेजी से दुनियाभर में फैल सकता है। इन्हें इस्तेमाल कर दुनिया की बड़ी आबादी को बीमार किया जा सकता है। कई मामलों में यह खतरनाक साबित हो सकता है और इससे मौत भी हो सकती है। अगर इसे समय रहते नहीं रोका जाता है तो यह महामारी का रूप भी ले सकता है। इसकी चपेट में इंसान, जानवर, पेड़-पौधे भी आ सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार बायोलॉजिकल वैपन काफी घातक हो सकते हैं। इन्हें दो श्रेणियों में रखा जाता है। पहली श्रेणी को वेपनाइज्ड एजेंट और दूसरी श्रेणी को मैकनिज्म कहते हैं। इन वैपन का इस्तेमाल किसी देश या कम्युनिटी को बड़े लेवल पर तबाह करना है। ऐसे हथियार का इस्तेमाल मवेशियों में संक्रमण फैलाने, फसल को खराब करने के लिए भी किया जा सकता है। किसी देश को बड़े आर्थिक संकट में डालने के लिए यह हथियार इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
वेपनाइज्ड एजेंट : वेपनाइज्ड एजेंट वो बायोलॉजिकल हथियार होता है जिसमें किसी वायरस, बैक्टिरिया, फंगस, टॉक्सिन का इस्तेमाल होता है।
डिलीवरी मैकनिज्म : यह बायोलॉजिकल हथियार का दूसरा रूप है। जिसमें बायोवैपन को किसी बम या रॉकेट की मदद से छोड़ा जाता है। कई देशों ने ऐसे बम, रॉकेट और मिसाइल इजाद कर लिए हैं, जिनकी मदद से बायो हथियारों को ले जाया जा सकता है।
1972 में एक अंतरराष्ट्रीय कानून बना था। जिसमें बायोलॉजिकल हथियारों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई गई थी। कानून में यह तय हुआ था कि कोई भी देश न तो बायोलॉजिकल हथियारों को बनाएगा और न ही टॉक्सिन हथियारों का इस्तेमाल करेगा। इस कानून पर रूस समेत 183 देशों ने हस्ताक्षर किया था। यह अंदेशा लगाया जाता रहा है कि कानून पास होने के बाद भी कई देश छुपकर इन हथियारों का निर्माण कर रहे हैं। ऐसे में सोवियत वैज्ञानिक की कही बात सच भी हो सकती है।
मंकीपॉक्स को स्पष्ट तौर पर बायोलॉजिकल हथियार नहीं कहा जा सकता। यह अभी जांच का विषय है। पूर्व वैज्ञानिक के बयान की बात करें तो रूस मंकीपॉक्स का इस्तेमाल हथियार के तौर पर करना चाहता था। मंकीपॉक्स के बारे में अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल की रिपोर्ट में पता चला है कि इस बीमारी का पहला केस 1958 में आया था। उस समय रिसर्च का हिस्सा रहे बंदरों में ये संक्रमण मिला था।
बताया जाता है कि इन बंदरों में चेचक जैसे लक्षण पाए गए थे। डब्लयूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला केस 1970 में मिला था। कांगो के रहने वाला 9 साल का बच्चा इस बीमारी से सकं्रमित होने वाला पहला मरीज था। 1970 के बाद 11 अफ्रीकी देशों में इस संक्रमण के मरीज मिले। दुनिया में मंकीपॉक्स अफ्रीका से आरंभ हुआ था। 2003 में अमेरिका, सितंबर 2018 में इजरायल और ब्रिटेन में मंकीपॉक्स के केस मिले। 2019 में नाइजीरिया से सिंगापुर लौटे यात्रियों में भी इस बीमारी के लक्षण देखे गए।
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