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तीन तलाक से अलग है तलाक-ए-हसन, इस्लाम में पुरुष 'तलाक' ले सकता है : सुप्रीम कोर्ट

Naresh Kumar • LAST UPDATED : August 16, 2022, 5:59 pm IST
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तीन तलाक से अलग है तलाक-ए-हसन, इस्लाम में पुरुष 'तलाक' ले सकता है : सुप्रीम कोर्ट

Talaq-e-Hasan

इंडिया न्यूज, New Delhi News। Talaq-e-Hasan : याचिकाकर्ता बेनजीर हीना ने सुप्रीम कोर्ट में सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और प्रक्रिया बनाने के लिए याचिका लगाई थी। जिस पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि मुस्लिमों में ‘तलाक-ए-हसन’ के जरिये तलाक देने की प्रथा तीन तलाक की तरह नहीं है और महिलाओं के पास भी ‘खुला’ का विकल्प है।

‘तलाक-ए-हसन’ क्या है?

तीन तलाक की तरह ‘तलाक-ए-हसन’ भी तलाक देने का एक तरीका है, लेकिन इसमें 3 महीने में 3 बार एक निश्चित अंतराल के बाद तलाक बोलकर रिश्ता खत्म किया जाता है। इस्लाम में पुरुष ‘तलाक’ ले सकता है, जबकि कोई महिला ‘खुला’ के जरिए अपने पति से अलग हो सकती है।

अनुच्छेद-142 के तहत भी लिया जा सकता है तलाक

जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की बेंच ने कहा कि अगर पति और पत्नी एक साथ नहीं रह सकते तो रिश्ता तोड़ने के इरादे में बदलाव न होने के आधार पर संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत तलाक दिया जा सकता है।

मनमाने तलाक के तरीकों को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध

बता दें कि बेंच ‘तलाक-ए-हसन’ और ‘एकतरफा न्यायेत्तर तलाक के सभी अन्य रूपों को अवैध तथा असंवैधानिक” घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में दावा किया गया है कि तलाक के ये तरीके मनमाने, असंगत और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

यह तीन तलाक के तरीके से अलग

वहीं बेंच ने कहा कि यह उस तरीके से तीन तलाक नहीं है। विवाह एक तरह का करार होने के कारण आपके पास खुला का विकल्प भी है। अगर दो लोग एक साथ नहीं रह सकते, तो हम भी शादी तोड़ने का इरादा न बदलने के आधार पर तलाक की अनुमति देते हैं। अगर ‘मेहर’ (दूल्हे द्वारा दुल्हन को नकद या अन्य रूप में दिया जाने वाला उपहार) दिया जाता है तो क्या आप आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हैं।

हम इसे एजेंडा नहीं बनाना चाहते

कोर्ट ने कहा कि हम याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं है। हम इसे किसी भी वजह से कोई एजेंडा नहीं बनाना चाहते। याचिकाकर्ता बेनजीर हीना की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया था, लेकिन उसने तलाक-ए-हसन के मुद्दे पर फैसला नहीं दिया था।

अदालत के हस्तक्षेप के बिना भी शादी तोड़ना संभव

सुप्रीम कोर्ट ने पिंकी आनंद से कहा कि यदि याचिकाकर्ता को ‘मेहर’ से अधिक राशि का भुगतान किया जाता है तो क्या वह तलाक की प्रक्रिया पर समझौता करने के लिए तैयार होगी। उसने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि ‘मुबारत’ के जरिए इस अदालत के हस्तक्षेप के बिना भी शादी तोड़ना संभव है। कोर्ट अब इस मामले पर 29 अगस्त को सुनवाई करेगा।

‘तलाक-ए-हसन’ की पीड़िता है याचिकाकर्ता

बता दें कि गाजियाबाद निवासी हीना ने सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और प्रक्रिया बनाने के लिए केंद्र को निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया है। हीना ने दावा किया कि वह ‘तलाक-ए-हसन’ की पीड़िता है।

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