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इंडिया न्यूज, Bangalore News। Flood In Bengaluru : हर साल मानसून के आने से पहले बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन जैसे ही बारिश शुरू होती है तो सभी दावे धरे के धरे रह जाते हैं। ऐसा ही हाल कर्नाटक का भी हुआ है। वैसे तो हर शहर के जमीन की स्थिति अलग होती है, लेकिन फिर भी वहां पर किए जा रहे निर्माण, चाहे वह सड़क हो, इमारत हो या फिर किसी अन्य तरीके का निर्माण जिनपर वहां की व्यवस्था निर्भर करती है।
इन दिनों सिलिकॉन सिटी बेंगलुरु बारिश और बाढ़ की चपेट में है। खूबसूरत मौसम, आईटी हब के लिए प्रसिद्ध यह शहर एक ऊंचाई वाले रिज पर बसा है। जहां पर पानी कावेरी और पोनाइयार या दक्षिणा पिनाकिनी नदियों के वाटरशेड में विभाजित है। इस शहर में कई घाटियां हैं। जहां से बहने वाला पानी इन दोनों नदियों में जाता है।
यदि बात करें बेंगलुरु की जमीन की बनावट की तो शहर का मुख्य हिस्सा ऊंचाई वाले रिज पर बसा है। जबकि घाटियों का उपयोग कृषि और सिंचाई जैसे लक्ष्यों के लिए किया जाता था। सिंचाई के लिए घाटी से सटे मैदानी इलाकों में मेढ़ों का निर्माण किया गया था। ताकि पानी को रोका जा सके।
इनकी वजह से कई जगहों पर झीलें बन गई हैं। हर झील का अपना कमांड एरिया है, जहां से उसका पानी लेकर सिंचाई किया जाता है। यानी अपने आसपास के इलाकों को सींचती हैं ये झीलें।
ऊंचाई वाले इलाकों से घाटियों की तरफ पानी के बहाव के लिए जलमार्ग बने हुए थे। कुछ प्राकृतिक तौर पर कुछ इंसानों द्वारा बनाए गए। पुराने जलमार्गों को रीडिजाइन करके आर्टिफिशियल नहरें बनाई गईं। ताक हर झील से उसके कमांड एरिया में मौजूद जमीनों की सिंचाई हो सके।
साथ ही पानी की मात्रा ज्यादा हो तो उसे डाउनस्ट्रीम में बहाया जा सके। ऐसे इलाकों में मौजूद कई छोटी नहरें जो किसी की निजी संपत्ति थीं, वो बंद हो गईं। तो पानी का दबाव बड़ी और पुरानी नहरों पर बढ़ गया। या फिर वो पानी इन छोटी नहरों से बाहर निकलकर जमीन पर फैल गया।
जानकारी अनुसार इस शहर की आबादी 1901 में 1.6 लाख थी। आज के समय में 1 करोड़ से ज्यादा लोग यहां पर रहते हैं। तेजी से बढ़ी आबादी की वजह से शहर में जमीन की जरुरत भी बढ़ा दी। इसकी वजह से शहर तेजी से फैलने लगा।
लेकिन लोगों ने जमीन की बनावट को नहीं समझा। घाटियों और ऊंचाई वाले इलाकों में निर्माण करते रहे। अब पुरानी टोपोग्राफी तो रही नहीं। पानी की छोटी-छोटी निकासी और नहरें बंद होती चली गईं।
इस नए निर्माण से न सिर्फ जमीन के अंदर पानी के जाने की स्थिति बिगड़ी बल्कि घाटियों में पानी के बहाव में भी अंतर आया। निजी संपत्तियों के पास मौजूद पुराने छोटे निकासी के माध्यम खत्म होते चले गए।
इसकी वजह से दिक्कत ये होने लगी। भारी बारिश में पानी का दबाव जब बढ़ा तो निकासी का कोई रास्ता ही नहीं बचा। जो रास्ते थे वो बंद हो चुके थे। इसकी वजह से पानी जमा होने लगा।
जो नहरें पहले सिर्फ सिंचाई के लिए बनाई गईं थीं, अब वो इतनी ज्यादा मात्रा के जलभराव और बहाव को संभालने के लिए उपयुक्त नहीं थीं। ढेर सारे निर्माण कार्यों, सीवेज के बहाव और कचरे के जमाव की वजह से नहरों में पानी का बहाव रुकता चला गया।
बेंगलुरु में बाढ़ और जलजमाव की वजह है घाटियों में रुकावट। ऐसे बहुत कम ही मामले हैं जब घाटियों के अलावा किसी और इलाके में बाढ़ आई हो, या जलजमाव हुआ हो। रिजेस यानी ऊंचाई वाले इलाकों में जलजमाव की घटनाएं सड़कों के किनारे इंजीनियरिंग की गुणवत्ता और स्टॉर्म ड्रेन्स की वजह से हुई थीं।
बेंगलुरु के दो इलाकों की हालत इस बार बहुत ही खराब रही। पहला फटे एूङ्मरस्रंूी जो कि आउटर रिंग रोड पर है। दूसरा सरजापुर रोड पर मौजूद रेनबो ड्राइव। इन इलाकों में पहले भी बाढ़ आती रही है।
इन इलाकों में जमीन की बनावट निर्माण कार्यों की वजह से बिगड़ चुकी है। यहां मौजूद जलनिकासी के माध्यम पर्याप्त नहीं है। कम पड़ रहे हैं। इसलिए यहां जलजमाव ज्यादा हो रहा है।
तेजी से बढ़ती बेंगलुरु शहर की आवादी के कारण किए गए सड़कों के निर्माण के कारण भी पानी की निकासी नहीं हो पाती। ऐसा ही बेंगलुरु-मैसूर एक्सप्रेस-वे के कारण भी हो रहा है। इसके कुछ हिस्सों ने जमीन की बनावट को ही बदल दिया है।
इस एक्सप्रेस-वे और उसके टोल गेट के निर्माण ने घाटी की शक्ल ही बदल दी। ये दोनों ही घाटी के बीचों-बीच बने हैं। इसकी वजह से पानी का बहाव बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इसलिए अब इस हाइवे के दोनों तक भयानक बाढ़ या जलजमाव की स्थिति बनती है।
वैसे तो किसी भी शहर का मास्टर प्लान इस तरह बनाया जाता है कि शहर को पूरी तरह से सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन बेंगलुरु शहर का मास्टर प्लान लैंड मार्केट को सही से लागू करने में विफल रहा है।
एड-हॉक डेवलपमेंट को वैध करना और मास्टर प्लान में मार्केट को विकसित करने में विभिन्नताओं ने दिक्कत पैदा की है। इसकी वजह से शहर के विकास में लैंड यूज का जो प्रस्तावित प्लान था वो विफल हो गया है।
इसके अलावा लगातार बढ़ रहे कॉन्क्रीट के जंगलों ने मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता को खत्म कर दिया है। अनियोजित शहरीकरण और जमीन की स्थिति में बदलाव, तेज बारिश में पानी के बहाव को समुचित तरीके से चलाने वाले ढांचों की कमी और सतही जल को रोक पाने वाले बफर जोन की कमी की वजह से बेंगलुरु जैसे शहरों में बाढ़ और जलजमाव की स्थिति बन रही है।
मुंबई और चेन्नई जैसे तटीय शहरों में तूफानों की वजह से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि शहर का सारा पानी समुद्र में जाता है। अगर समुद्र से पानी वापस आने लगे तो दिक्कत होने लगती है। क्योंकि ऐसे किसी भी शहर की स्टॉर्म ड्रेन क्षमता यानी बारिश के पानी को निकालने की क्षमता समुद्र की तरफ से आने वाले पानी से कम होता है।
इसलिए जरूरी है कि हम शहरों के विकास के दौरान उनके पैटर्न को समझें। जमीन की बनावट का ध्यान रखें। निर्माण कार्यों पर नजर रखें। साथ ही शहर के इकोसिस्टम और पर्यावरण का भी।
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