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कहानी समाजवादी पार्टी और कुनबे के मुखिया मुलायम सिहं यादव के राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव की

PUBLISHED BY: Priyanshi Singh • LAST UPDATED : October 10, 2022, 3:14 pm IST
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कहानी समाजवादी पार्टी और कुनबे के मुखिया मुलायम सिहं यादव के राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव की

दिल्ली: सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने आज (सोमवार) को दुनिया को अलवीदा कह दिया। बता दें  उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के निधन के बाद हर कोई दुख जाहिर कर रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपती देश के बड़ें- बड़ें नेताओं ने इस खबर पर दुख जाहिर किया है। बता दें उन्होंने आज सुबह 8.16 पर अंतिम सांस ली। वह 82 साल के थे। मुलायम सिंह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में वह वेंटिलेटर पर थे।मुलायम सिंह को यूरिन इन्फेक्शन, सांस लेने में दिक्कत, और रक्तचाप की शिकायत के बाद आईसीयू में एडमिट किया गया था। समाजवादी पार्टी और कुनबे के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। ऐसे में आज हम आपको मुलायम सिंह के जीवन से जुड़े उन पहलुओं से रूबरू कराएंगे जो बेहद अहम रहे हैं।

मुलायम सिंह यादव का परिवार और बचपन

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जिले के सैफई गाँव में हुआ था। उनकी माता मूर्ति देवी व पिता सुघर सिंह एक किसान परिवार से तालुक रखते थे। बता दें मुलायम सिंह यादव अपने पाँच भाई-बहनों में रतन सिंह यादव से छोटे व अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह और कमला देवी से बड़े हैं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके चचेरे भाई हैं। मुलायम सिंह के पिता सुघर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे किन्तु पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात उन्होंने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। मुलायम कुछ दिनों तक मैनपुरी के करहल स्थ‍ित जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे।

मुलायम सिंह यादव की शादीशुदा जिंदगी

मुलायम सिंह की विवाहीत जिंदगी काफी सुर्खियों में रही है दरअसल मुलायम सिंह की दो शादियां हुईं। पहली पत्नी मालती देवी का निधन मई 2003 में हो गया था। यूपी के पूर्व सीएम अखि‍लेश यादव मुलायम की पहली पत्नी के बेटे हैं। मुलायम की दूसरी पत्नी हैं साधना गुप्ता। फरवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट में मुलायम ने साधना गुप्ता से अपने रिश्ते कबूल किए तो लोगों को नेताजी की दूसरी पत्नी के बारे में पता चला। साधना गुप्ता से मुलायम के बेटे प्रतीक यादव हैं।

मुलायम सिंह यादव का राजनीति में शुरूआती सफर

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक सफर की बात करें तो ये बेहद शानदार रहा है। मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत महज 15 वर्ष की आयु में की थी। दरअसल उनहोंने 1954 में महान समाजवादी नेता डॅा. राममनोहर लोहिया के नहर रेट आंदोलन में भाग लिया और जेल गए। मुलायम सिंह समाजवादी नेता रामसेवक यादव के प्रमुख अनुयायी (शिष्य) थे तथा इन्हीं के आशीर्वाद से मुलायम सिंह 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर प्रथम बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए। इमरजेंसी के दौरान मुलायम सिंह यादव 19 माह तक जेल में भी रहे। 1977-78 में रामनरेश यादव और बनारसीदास मंत्रीमंडल में सहकारिता एंव पशुपालन मंत्री बनाए गए। इसके बाद से उनहोने उस सफर की शुरूआत की जिसके लिए वो जाने जाते हैं। मुलायम सिंह ने नंवबर 1992 को लखनऊ में समाजवादी पार्टी की स्थापना की। इसके बाद से वो उत्तर प्रदेश की सियासी दुनिया में मंत्री जी और नेता जी के नाम से जाने जाने लगे।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में नेता जी का सफर

एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह ने अपना राजनीतिक जीवन उत्तर प्रदेश में विधायक के रूप में शुरू किया। मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश के सबसे ताकतवर राजनीतिक के तौर पर भी जाना जाता है। बहुत कम समय में ही मुलायम सिंह का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश में नज़र आने लगा था। खास बात ये है कि वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज का सामाजिक स्तर को ऊपर करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में यादव समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह की पहचान है। उत्तर प्रदेश में सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में मुलायम सिंह ने साहसिक योगदान किया।

 

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव का आगमन

2012 में समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला। यह पहली बार हुआ था कि उत्तर प्रदेश में सपा अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में थी। नेता जी के पुत्र और सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से उठाया और प्रदेश के सामने विकास का एजेंडा रखा। अखिलेश यादव के विकास के वादों से प्रभावित होकर पूरे प्रदेश में उनको व्यापक जनसमर्थन मिला। चुनाव के बाद नेतृत्व का सवाल उठा तो वरिष्ठ साथियों के विमर्श के बाद नेताजी ने बेटे अखि‍लेश को सूबे के सीएम की कुर्सी सौंप दी और समाजवादी पार्टी में दूसरी पीढ़ी ने दस्तक दी। अखिलेश यादव ने नेता जी के बताए गये रास्ते पर चलते हुए उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाया। गौरतलब है 2017 के बाद अखिलेश यादव और मुलायम सिंह के रिश्ते में खटास देखने को मिला है।

प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए थे नेता जी 

समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के इरादे से मुलायम ने केंद्र की राजनीति का रुख किया। 1996 में मुलायम सिंह यादव 11वीं लोकसभा के लिए मैनपुरी सीट से चुने गए। उस समय केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उसमें मुलायम भी शामिल थे। मुलायम देश के रक्षामंत्री बने थे। हालांकि, यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई। मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे, लेकिन वहां से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद बनाया।

मुलायम सिंह के सियासी करियर पर सबसे बड़ा दाग

2 जून 1995 को लखनऊ में हुआ स्टेट गेस्ट हाउस कांड मुलायम सिंह के सियासी करियर पर सबसे बड़ा दाग है। 1993 के यूपी चुनाव में बसपा और सपा में गठबंधन हुआ था, जिसकी बाद में जीत हुई। मुलायम सिंह यूपी के सीएम बने। लेकिन, आपसी खींचतान के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इससे मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई थी। नाराज सपा के कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच कर मायावती को घेर लिया। यहां मायावती कमरा नंबर-1 में रुकी हुईं थीं। उनके साथ बसपा के एमएलए और कार्यकर्ता भी मौजूद थे। इस दौरान सपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें मारपीट कर बंधक बना लिया। मायावती ने अपने आप को बचाने के लिए कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था। करीब 9 घंटे बंधक बने रहने के बाद बीजेपी नेता लालजी टंडन ने अपने समर्थकों से साथ वहां पहुंचकर मायावती को वहां से सुरक्षित निकाला। इसी घटना के बाद से मायावती, लालजी टंडन को अपना भाई मानने लगीं।

मुलायम सिंह पर पुस्तकें

मुलायम सिंह पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इनमे पहला नाम “मुलायम सिंह यादव- चिन्तन और विचार” का है जिसे अशोक कुमार शर्मा ने सम्पादित किया था। इसके अतिरिक्त राम सिंह तथा अंशुमान यादव द्वारा लिखी गयी “मुलायम सिंह: ए पोलिटिकल बायोग्राफी” अब उनकी प्रमाणिक जीवनी है। लखनऊ की पत्रकार डॉ नूतन ठाकुर ने भी मुलायम सिंह के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक महत्व को रेखांकित करते हुए एक पुस्तक लिखने का कार्य किया है।

ये भी पढ़ें – Mulayam Singh Yadav: आखिर बहु डिंपल की वजह से ऐसा क्या हुआ, जिस वजह से मुलायम सिंह यादव नहीं बन पाए थे देश के प्रधानमंत्री

 

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