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इंडिया न्यूज़ (Bihar: Caste Census): बिहार में लंबे समय से जातीय जनगणना की बात हो रही थी। बिहार के साथ ही देश के अन्य राज्यों में जातीय जनगणना की मांग रही थी। जब 2011 में जनगणना हुई थी, तब भी जातीय आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई थी। हालांकि, रिपोर्ट को जारी नहीं किया गया था। बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक राज्यों में जातीय जनगणना हो चुकी है। बिहार में सात जनवरी से जनगणना शुरू हो गई है।
बिहार में जातिगत जनगणना के खिलाफ हिंदू सेना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। याचिका में जातीय जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गई थी। जिसे आज कोर्ट ने खारिज कर दिया। जनगणना की शुरूआत में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा था कि जातीय जनगणना से तैयार रिपोर्ट के आधार पर योजनाएं बनाई जाएंगी।
Supreme Court refuses to entertain various pleas challenging Bihar Government's decision to conduct caste-based census across the State.
The court grants liberty to petitioners to approach the concerned High Court and to seek appropriate remedies as per law. pic.twitter.com/9Ke8jZIYt9
— ANI (@ANI) January 20, 2023
बिहार में राजनीतिक दलों ने लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहे थे। राजनीतिक दलों का कहना है कि इससे दलित, पिछड़ों की सही संख्या मालूम चलेगी। जातीय जनसंख्या के अनुसार ही राज्य में योजनाएं बनाई जाएंगी। 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को बिहार विधानसभा और विधान परिषद में जातीय जनगणना कराने से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया था। इसे भाजपा, राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दे दिया था। हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ थी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है। हालांकि, नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर दिया था। बिहार सरकार ने इस साल मई तक जनगणना को पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
जनगणना के पहले चरण में घरों की गिनती शुरू कर दी गई है। इसकी शुरुआत पटना के वीआईपी इलाकों से हुई है। अभी तक राज्य सरकार की तरफ से मकानों को कोई नंबर नहीं दिया गया है। वोटर आईकार्ड में अलग, नगर निगम के होल्डिंग में अलग नंबर हैं। पंचायत स्तर पर कोई नंबरिंग ही नहीं है। शहरी क्षेत्र में हाउसिंग सोसायटी की ओर कुछ मोहल्लों में मकानों की नंबरिंग की गई है। इस चरण में सभी मकानों को स्थायी नंबर दिया जाएगा।
दूसरे चरण में जाति और आर्थिक जनगणना का काम होगा। इसमें लोगों के शिक्षा का स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी आदि), गाड़ी, मोबाइल, किस काम में दक्षता है, आय के अन्य साधन, परिवार में कितने कमाने वाले सदस्य हैं, एक व्यक्ति पर कितने आश्रित हैं, मूल जाति, उप जाति, गांव में जातियों की संख्या, जाति प्रमाण पत्र से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे। जातीय जनगणना के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। हालांकि, यह राशि बढ़ भी सकती है।
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