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बिजनेस डेस्क/नई दिल्ली (Business Learning: Pre-money and Post-money valuation are measures of valuation of companies) : वो कहते है न कि अगर पैसे हो तो पैसे देने वाले भी हजारों मिलते है लेकिन जब पैसे ना हो तब पैसे मिलना बहुत बड़ी बात होती है। ठीक ऐसा ही कुछ स्टार्टअप के साथ भी होता है। कोई भी बिजनेस शुरू से बिजनेस नहीं होता, सबसे पहले वो एक स्टार्टअप होता है। इस स्टार्टअप का सबसे बड़ा काम अपने बिजनेस आइडिया से निवेशकों का भरोसा जितना है। आसान भाषा में प्री-मनी और पोस्ट-मनी वैल्यूएशन दोनों ही कंपनियों के मूल्यांकन के उपाय हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि कंपनी की वैल्यू कितनी है।
प्री-मनी के नाम में ही इसका जवाब छिपा है। प्री-मनी वैल्यूएशन का मतलब कंपनी में पैसा डालने से पहले उस कंपनी की वैल्यू का आंकलन करना। किसी भी स्टार्टअप के लिए प्री-मनी का वक्त एक नाजुक समय होता है। प्री-मनी वैल्यूएशन कंपनी का आंकलन करती है कि किसी भी निवेश से पहले स्टार्टअप कितना मूल्यवान हो सकता है। प्री-मनी वैल्यूएशन किसी कंपनी की वैल्यू को दर्शाति है जिसमें बाहरी फंडिंग या फंडिंग का नवीनतम दौर शामिल नहीं होता है।
अब तक आप पोस्ट-मनी वैल्यूएशन का मतलब समझ गए होंगे। अगर नहीं तो हम आपको समझाते हैं कि पोस्ट-मनी वैल्यूएशन क्या बला है। पोस्ट-मनी वैल्यूएशन का मतलब, पैसा प्राप्त करने और उसमें निवेश करने के बाद कंपनी की कीमत कितनी है। पोस्ट-मनी वैल्यूएशन में बाहरी फाइनेंसिंग या नवीनतम पूंजी शामिल होते हैं।
मान लीजिए कि कोई निवेशक किसी स्टार्टअप में निवेश करना चाहता है। उद्यमी और निवेशक दोनों सहमत हैं कि कंपनी 10 लाख की है और निवेशक 2.5 लाख डालेगा। 2.5 लाख में ओनरशिप कितना मिलेगा वो इस बात पर निर्भर करता है कि यह 10 लाख प्री-मनी या पोस्ट-मनी वैल्यूएशन है या नहीं।
यदि 10 लाख का मूल्यांकन प्री-मनी है, तो कंपनी का मूल्य निवेश से पहले 10 लाख होगा और निवेश के बाद 12.5 लाख का मूल्य होगा। यदि 10 लाख का मूल्यांकन 2.5 लाख के निवेश को ध्यान में रखता है, तो इसे पोस्ट-मनी कहा जाता है।
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